टीवी सीरियल पर ‘अलिफ लैला‘ या ‘अरेबियन नाइट्स’ के रोमांचक किस्सों को देखा या सुना होगा। इन किस्सों का एक असल नायक भी था कभी। वह थे अब्बासी खलीफाओं में सबसे ज्यादा मशहूर खलीफा हारून रशीद।
उनका जन्म 17 मार्च 763 में हुआ और उनका 23 साल का शासनकाल अब्बासी खिलाफत का सुनहरा दौर था। तब बगदाद का विकास चरम सीमा पर था। खुशहाली, ज्ञान, कला खास पहचान थी।
हारून रशीद खुद दीन के पाबंद होने के साथ ज्ञान-विज्ञान के विकास को आलिमों-विद्वानों को प्रोत्साहित करने वाले थे। जब वे गलतियों पर टोकते या आलोचना करते तो वह बुरा न मानकर सुधार की कोशिश करते। हारून के बारे में कहा जाता है कि उनको जिहाद का शौक और शहादत की तमन्ना थी। एक साल हज करते और एक साल जिहाद।
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हारून रशीद के चीफ जस्टिस अबू यूसुफ थे। यह काजी साहब खलीफा तक के खिलाफ फैसला दे देते थे। खलीफा हारून ने अबू यूसुफ से एक किताब लिखवाई थी, जिसमें वे तरीके बताए गए जिनसे प्रजा पर जुल्म न हो सके और नाजायज तरीके से टैक्स न वसूल किया जा सके।
इस किताब का नाम ‘किताबुल-खिराज’ है। जब यह किताब पूरी हो गई तो हारून रशीद ने इसी के हिसाब से हुकूमत की। ‘बैतुल-हिकमत’ के नाम से एक संस्था स्थापित की जिसमें काम करने वाले आलिमों और अनुवादकों को मोटी तनख्वाहें दी जाती थीं।
रोम से मुसलमानों की लगातार लडा़इयां होती रहती थीं इसलिए हारून रशीद ने इस्लामी सल्तनत को हमलों से सुरक्षित रखने के लिए एशियाए कोचक की सरहदों पर किले बनवाए और शाम (सीरिया) के समुद्री तटों के किनारे छावनियां बनाईं।
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अब्बासी खलीफाओं ने पहली बार अपनी मदद और सलाह-मशविरा के लिए वज़ीर का पद कायम किया। हारून के ज़माने में यह्या और उसके बेटे फजल और जाफर मशहूर वजीर हुए हैं।
हारून रशीद का नियम था कि वह भेष बदलकर रातों को बगदाद की सड़कों और गलियों में घूमते थे जिससे लोगों के हालात परेशानियों को समझ सकें। उसके साथ जाफर बरमकी और एक गुलाम मसरूर भी जाते थे। इस कवायद के दौरान दिलचस्प घटनाएं होतीं, जो कहानी-किस्सों में मौजूद हैं।
अब्बासी खलीफाओं की हुकूमत एक सौ साल से ज्यादा रही। हारून रशीद के दौर का मुकाबला न्यायप्रिय खलीफा मामून रशीद से ही किया जा सकता है। उसके जमाने में तुर्कों में इस्लाम तेजी से फैला। काबुल के हुक्मरानों ने भी इस दौर में इस्लाम कबूल किया।