अतीक खान
-दिल्ली के आइआइटियन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति के उस आविष्कार का अपडेट वर्जन तैयार कर लिया है. जिसका जनक मोदी-शाह को माना जाता है. राष्ट्रवाद और धर्म. ये सियासत का ऐसा अमृत है, जिसे चखे बिना सत्ता सिंहासन का ख्वाब तामीर ही नहीं सकता. राजनीतिक दलों ने ऐसा मान लिया है. खैर, पहले से ही धर्म-राष्ट्रवाद से तर यूपी में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) आम इंसानों को इसका अमृतपान कराने हाजिर हो चुकी है. (Aam Aadmi Party Nationalism)
आगाज की जगह है अयोध्या. जहां केजरीवाल सरकार के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने तिरंगा संकल्प यात्रा निकाली. सड़कों पर तिरंगा लहराती भीड़ में आम आदमी के दुख-दर्द, बेरोजगारी, भूख और बुखार से तड़पकर मरते बच्चों की चीखों के लिए कोई जगह नहीं थी.
पत्रकारों से बातचीत में मनीष सिसौदिया ने कहा, “सौभाग्य से रामलला के दर्शन का अवसर मिला. संतों ने मुक्तकंठ से विजयीभव का आशीर्वाद दिया. रामलला के सामने अर्जी लगाई है. यूपी में आम आदमी की सरकार बनाने का मौका दें. हमारी सरकार भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलकर दिखाएगी. उनकी कृपा से दिल्ली में हमें ऐसी ही सरकार चलाने का मौका मिल रहा है.”
अयोध्या दर्शन को पहुंचे सिसौदिया को भाजपा ने भी आड़े हाथों लिया है. दिल्ली के भाजपा नेता कपिल मिश्रा, जोकि केजरीवाल नीत आप की ही राजनीतिक खोज हैं-ने लताड़ लगाते हुए कहा, ” बाबरी के विध्वंस के बाद बन रहे भव्य राम मंदिर में सिर झुकाए खड़े कालनेमि सिसोदिया और मारीच संजय को देखना. वह मजा गया.” मलतब कपिल मिश्रा ने संजय मिश्रा की तुलना मारीच से की है और सिसोदिया को कालनेमि बताया है. (Aam Aadmi Party Nationalism)
इसलिए क्योंकि मंदिर-मस्जिद पर फैसला आने से पहले सिसौदिया वहां कोई दूसरा सार्वजनिक संस्थान विकसित किए जाने के हिमायती रहे हैं. लेकिन अब वह धर्म और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़ रहे हैं. इसलिए भाजपा ने ही आप को उसकी असलियत बताने की कोशिश की है.
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अन्ना आंदोलन से जन्मी आप राजनीति में बदलाव के तमाम दावे लेकर आई थी. लेकिन हकीकत सामने है. दिल्ली के पिछले 2020 के इलेक्शन में जहां उसने सांप्रदायिक धुव्रीकरण की राजनीति का पूरा फायदा उठाया. अब वह अल्पसंख्यकों के मूल मुद्दों और उनकी समस्याओं पर मुंह खोलना भी गवारा नहीं समझती.
शाहीनबाग से साबिया के कत्ल तक खामोशी
दिल्ली विधानसभा 2020 का चुनाव नागरिकता संशोधन कानून के विरोध-प्रदर्शनों के बीच हुआ था. जिसमें आप ने 62 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. उस चुनाव में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का वो चुनावी नारा शायद याद हो. जिसमें उन्होंने कहा था कि कमल का बटन इतनी जोर से दबाना कि करंट शाहीन बाग में लगे. (Aam Aadmi Party Nationalism)
उसी चुनाव के बाद फरवरी 2020 में दिल्ली में दंगे भड़के. और इसमें करीब 53 लोग मारे गए थे. दंगों में केजरीवाल के घर के बाहर तक लोग मदद के लिए गिड़गिड़ाते रहे. कजेरीवाल की प्रतिक्रिया, राहत-सबकुछ सार्वजनिक है.
तब्लीगी जमात केस में बेनकाब केजरीवाल
पिछले साल जब, दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात के मरकज को लेकर जो नफरत का माहौल खड़ा किया गया था. उसमें केजरीवाल की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. केजरीवाल ही हैं, जिन्होंने अपनी राष्ट्रभक्ति प्रमाणित करने के लिए बिना एक क्षण गंवाए तब्लीगियों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत जता दी थी. ये जानकर कि निजामुद्दीन के तब्लीगी जमात मरकज में इज्तेमा लॉकडाउन लगने के पहले से ही चल रहा था. (Aam Aadmi Party Nationalism)
साबिया सैफी हत्याकांड पर चुप्पी
पिछले महीने दिल्ली के सिविल डिफेंस में तैनात साबिया सैफी को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. मुख्यमंत्री केजरीवाल के मुंह से सांत्वना के दो लफ्ज सुनाई नहीं पड़े. इतने विभत्स अपराध में पीड़िता के इंसाफ के लिए दो शब्द न बोल पाना, आखिर केजरीवाल की कौन सी मजबूरी दर्शाता है? भला इसके कि उन्हें भी पीड़ित मुसलमान के प्रति सहानुभूति दिखाने भर से राजनीतिक नुकसान का अंदेशा है. जो वे किसी भी सूरत में उठाना नहीं चाहते हैं.
आम आदमी की समस्याओं को उठाने से क्यों डरती आप
केजरीवाल ने शिक्षा और स्वास्थ्य की बुनियाद पर जो छवि गढ़ी है. इस बार की बारिश ने उसके पीछे की बदहाली की परतें हटा दी हैं. जिसमें दिल्ली के विकास के सपने जलभराव में दम तोड़ते नजर आ रहे थे. केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में अब आम लोगों के दुख-दर्द, तकलीफों पर बात करने के लिए जगह कम बची है. बल्कि राष्ट्रवाद और धर्म जरूरी मुद्दे हो गए हैं. (Aam Aadmi Party Nationalism)
सवाल बस इतना सा है कि, क्या भारत में वाकई राष्ट्र की सुरक्षा को कोई खतरा है? क्या वाकई में 100 करोड़ की आबादी वाले बहुसंख्यक समाज या उनके धर्म को कहीं से चुनौती मिल रही है?
सिसौदिया और संजय सिंह, अयोध्या की सड़कों पर तिरंगा संकल्प यात्रा के बजाय बुखार से दम तोड़ते बच्चों, महिला सुरक्षा, रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों के झंडाबरदार क्यों नहीं बने हैं? क्यों धर्म और राष्ट्रवाद की आड़ में यूपी की लपटों को हवा देने आए हैं?