दुनिया भर में बिल्लियों की लगभग 36 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें हमारे घरों के आसपास मंडराने वाली घरेलू बिल्ली से लेकर बाघ तक शामिल है। सभी बिल्लियां खूबसूरत, ताकतवर और शिकारी होती हैं। इसके चलते प्राचीन काल से इनके प्रति इंसान का भय और आकर्षण दोनों बना हुआ है। (Tigers Here To Eat)
बिल्लियों में सबसे बड़ा आकार बाघ का होता है। वे रौबीले होते हैं और जंगल में उनकी दहाड़ से किसी की भी रूह कांप सकती है। वे अकेले रहना पसंद करते हैं। अपने इलाके में किसी दूसरे बाघ को बरदाश्त नहीं कर पाते। इलाके के लिए लड़ते हैं। शेर समाजप्रिय होते हैं, एक परिवार में रहते हैं। लेकिन, बाघ रहस्यमयी और अकेले घूमने वाले प्राणी हैं।
बाघों की ताकत और सौंदर्य से हर कोई प्रभावित रहता है। इसके चलते बहुत सारे लोगों को यह भ्रम है कि बाघ के शरीर के हिस्से खाने से उनके अंदर भी वही ताकत और सौंदर्य पैदा होगा। खासतौर पर चीन, थाईलैंड, वियतनाम जैसे देशों में यह भ्रम बहुत बड़ा है। (Tigers Here To Eat)
दुनिया भर में मारे जाने वाले शेरों, बाघों और तेंदुओं की मौत के पीछे एक बड़ा कारण इन्हीं देशों के लोगों का यह भ्रम है। वे बाघों के शरीर के अलग-अलग पार्ट को सीधे खाना भी पसंद करते हैं। उनके शरीर के तमाम अंगों, हड्डियों आदि का इस्तेमाल दवाओं को बनाने में भी किया जाता है।
हालांकि, इसके पीछे कोई भी वैज्ञानिक शोध नहीं है कि बाघ के शरीर के अंग या उसकी हड्डियां किसी तरह की बीमारियों में मदद कर सकती हैं। पर यह जानलेवा अंधविश्वास बाघों की जान का दुश्मन बना हुआ है।
पहले कभी बाघों का शिकार खुद को बहादुर साबित करने के लिए किया जाता था। उसकी खाल और सिर को ड्राइंगरूम में सजाने का भी चलन था। इसे ट्राफी हंटिंग कहा जाता है। दुनिया भर में ट्राफी हंटिंग काफी कुछ कम हो गई है। लेकिन, अंधविश्वासी दवाइयों में इनका इस्तेमाल बेहद जानलेवा तरीके से बढ़ा है।
भारी पैमाने पर हुए इनके शिकार के चलते बाघों की संख्या बहुत कम रह गई। इसे देखते हुए शायद चीन ने सबसे पहले अस्सी के दशक में बाघों की फार्मिंग शुरू की। यहां पर बकरियों की तरह शेरों को खाने के लिए, उनके अंगों से दवाइयां बनाने के लिए पाला जाता है। माना जाता है कि आज बाघों के अलग-अलग फार्म में आठ हजार से भी ज्यादा बाघ पल रहे हैं। यह संख्या में दुनिया भर के जंगलों में रहने वाले बाघों से लगभग दोगुना है। (Tigers Here To Eat)
इस बेहद अमानवीय और क्रूर प्रक्रिया से अन्य देशों के जंगलों में रहने वाले बाघों की जान पर खतरा बना रहता है। जरूरी है कि इस प्रकार के तमाम अंधविश्वासों को पुरजोर विरोध किया जाए। उनके बारे में जानना भी जरूरी है और उसके बारे में राय बनाना भी जरूरी है।
(वन्यजीवों व पर्यावरण का समर्पित ब्लॉग जंगलकथा से साभार)