द लीडर। आज भले ही देश दुनिया में महिलाओं को पुरूष के बराबर का दर्जा दिया गया हो लेकिन अभी भी कई लोग महिलाओं को सिर्फ घरों में कैद करके रखते हैं। पहलें भी और अब भी पुरुषों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। क्योंकि हमारा देश पुरुष प्रधान देश है। इसलिए आज भी यहां पुरुषों को महिलाओं से ज्यादा महत्व दिया है। 20वीं सदी से पहले की बात करें तो महिलाएं सिर्फ घर पर ही रहती थी। यहां तक की उन्हें पढ़ाया भी नहीं जाता था। पहले लोग बेटियों को सिर्फ एक बोझ समझते थे। आज भी कहीं-कहीं लोग बेटियों को सिर्फ पराया धन और बोझ समझते हैं। और उनको आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है। लेकिन आज हम उस महिला की बात करेंगे जिन्होंने 20वीं सदी में सामाजिक बेड़ियों को तोड़ साइंस की दुनिया में अपना अलग मुकाम हासिल किया। और वो भारत की पहली वैज्ञानिक बनी थीं।
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डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि पाने वाली प्रथम महिला भी थीं
बता दें कि, साइंस की दुनिया में भारत के कई वैज्ञानिकों ने अपना परचम लहराया है और अपनी खोज से पृथ्वी के विकास में योगदान दिया है। हालांकि यह फील्ड हमेशा से ही मेल डोमिनटेड रही है, क्योंकि भारत के अंदर 20वीं सदीं तक महिलाओं को एक तरह से घर में कैद करके रखा जाता था, लेकिन इसके बाद भी इन सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर कई महिलाओं ने साइंस की दुनिया में अलग मुकाम हासिल किया। इनमें से ही एक थी डॉ. असीमा चटर्जी। जो एक सफल ऑर्गेनिक केमिस्ट होने के साथ भारत में डॉक्टरेट ऑफ साइंस की उपाधि पाने वाली प्रथम महिला भी हैं।
असीमा चटर्जी द्वारा किया गया कार्य
आसीमा चटर्जी ने अपने शोध के द्वारा प्राकृतिक उत्पादों के रसायन विज्ञान पर ध्यान केंद्रित किया और इसके परिणामस्वरूप ऐंठन-रोधी, मलेरिया-रोधी और कीमोथेरेपी दवाएं विकसित की। 1944 में वो प्रवक्ता के रूप कार्यरत हुई। देश आजाद हुआ तब 1954 में वो विज्ञान विभाग में रीडर के रूप में नियुक्त हुईं जहां वह अंतिम समय तक रहीं। एक दशक के बाद वे अति सम्माननीय चेयर, खैरा प्रोफेसर चेयर पद पर पदासीन हुईं।
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इस तरह असीमा प्रथम भारतीय महिला वैज्ञानिक हुईं। 1972 में यूजीसी से अनुदान प्राप्त विशेष प्रोग्राम की कोऑर्डिनेटर रही। यह काम प्राकृतिक उत्पादों की कैमिस्ट्री रिसर्च का था। उनके मेहनत से भारतीय मेडसीन के क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य किया वो जीवनपर्यन्त इस पद पर रही। यही उन्होंने मारसीलिया माइनुटा नाम की एंटी ऐपिलैप्टिक दवा का निमार्ण भी उन्होंने ही किया था। जिससे मलेरिया निवारक दवाओं का निमार्ण हुआ। उनकी दवा भारत में मलेरिया नियंत्रण में कामयाब रही है। उन्होंने विभिन्न अल्कलॉइड यौगिकों पर शोध करते हुए लगभग चालीस वर्ष बिताए। असीमा चटर्जी ने लगभग 400 पत्र भी लिखे जो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
असीमा चटर्जी की उपलब्धियां और सम्मान
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असीमा वो पहली महिला साइंटिस्ट बनी, जिनको इंडियन साइंस कांग्रेस एसोसिएशन में जनरल प्रेजिडेंट के रूप में इलेक्ट किया गया।
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डॉक्टर असीमा ने वेनेका अल्कोडिश को शोध के लिए चुना और कई गंभीर बिमारियों में इसके उपयोग को साबित किया। यह शरीर की कोशिकाओं में फैलकर कैंसर के फैलने की गति को काफी धीमा कर देता है।
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उसी साल उन्हें उनके साइंस के क्षेत्र में योगदान के लिए बंगाल चैम्बर ऑफ कॉमर्स के द्वारा वुमन ऑफ द ईयर का सम्मान प्राप्त हुआ।
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इससे पहले उन्हें फेलो ऑफ इंडियन नेशनल साइंस अकादमी, नई दिल्ली में इलेक्ट किया गया।
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आसिमा चटर्जी को सी वी रमन अवार्ड और शांति स्वरूप भटनागर अवार्ड जो साइंस के क्षेत्र में उच्चतम मेडल्स होते हैं से सम्मानित किया गया है।
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उनको 1975 में पदम् भूषण से भी नवाजा जा चुका है।
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उन्हें राज्य सभा के मेंबर के रूप में भी राष्ट्रपति द्वारा नॉमिनेट किया गया और वो 1990 तक इस पोस्ट पर सर्व करती रहीं।
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उन्होंने नेशनल और इंटरनेशनल जर्नल्स में 400 से ज़्यादा पेपर्स लिखे। वो सिक्स वॉल्यूम सीरीज, द ट्रीटीस ऑफ इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स की चीफ एडिटर रहीं जो कि सीएसआईआर द्वारा पब्लिश की गई।
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23 सितंबर 2017 को सर्च इंजन Google ने चटर्जी के जन्म की 100वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 24 घंटे का Google डूडल तैनात किया।
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असीमा चटर्जी का प्रारंभिक जीवन
असीमा चटर्जी का जन्म 23 सितंबर 1917 को बंगाल में हुआ था। उनके पिता इंद्र नारायण मुखर्जी एक डॉक्टर थे और वहीं इनकी माता का नाम कमला देवी ता। यह एक मध्यमवर्गीय परिवार था, जिसमें उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। उनके पिता वनस्पति विज्ञान में बहुत रुचि रखते थे और असीमा ने उनकी रुचि में हिस्सा लिया। जिसके बाद असीमा ने रसायन शास्त्र में स्कॉटिश चर्च कॉलेज से स्नातक डिग्री पूरी की। इसके बाद असीमा चटर्जी ने राजाबाजार साइंस कॉलेज परिसर से कार्बनिक रसायन विज्ञान में मास्टर डिग्री और 1944 में डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त की। वह विज्ञान में डॉक्टरेट हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थी। उनका डॉक्टरेट रिसर्च पादप उत्पादों के रसायन विज्ञान और सिंथेटिक कार्बनिक रसायन पर केंद्रित था। 2006 में 90 साल की उम्र में वह इस दुनिया से चली गईं।
2006 में 90 साल के उम्र में असीमा इस दुनिया को अलविदा कहकर चली गईं। डॉ. असीमा चटर्जी वह भारतीय महिला हैं जिनके बारे में स्कूलों में जरूर बताया जाना चाहिए जिससे लड़कियो में साइंस के प्रति रूचि पैदा हो और लड़कियां साइंस के क्षेत्र में अपनी भूमिकाएं तलाश सकें। इसके साथ ही वो आगे आके काम करे और देश का नाम रोशन करें।
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