द लीडर : नफरत की बेरफ्तार हवाओं से उठती गर्द और गुबार, जब समाज के एक बड़े हिस्से की चेतना पर जमा होने लग जाए. उसकी सोच पर इतनी मोटी परतें बिछा दे कि, वह अपनी ही 20 करोड़ आबादी के नरसंहार का आह्वान करने लगे. दिल्ली के जंतर-मंतर से हिंसक नारे लगाए. जहां मॉब लिंचिंग सामान्य अपराध हों. एक आवारा भीड़ सड़क पर किसी मुसलमान को ढूंढ़ने लग जाए. चूड़ीवाले, फेरीवाले, डोसा-पानीपूरी (बताशा) वाले तो कभी कबाड़ी को घेरकर अपने इलाके में कारोबार से रोके. मारपीट कर भगाए. नफरत के सूबूत में हिंसा के वीडियो शेयर करे. ऐसे हालात में मुजफ्फरनगर किसान महापंचायत के मंच से, अल्लाहू अकबर और हर-हर महादेव की सदाएं, भारत की रूह को ताजगी देती हैं. (Allahu Akbar Har Har Mahadev)
मुजफ्फनरगर-2013 के सांप्रदायिक दंगों का गवाह है. जिसमें अधिकारिक रूप से 62 लोग मारे गए थे. जिनमें 42 मुसलमान और 20 हिंदू थे. सैकड़ों जख्मी हुए. हजारों बेघर हो गए. एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब 50 हजार लोग वहां से पलायन कर गए थे. दंगों से पहले भी एक महापंचायत हुई थी.
27 अगस्त से 17 सितंबर 2013 तक मुजफ्फरनगर दंगों की आग में झुलसता रहा. इसी नफरत की आग में इलाके का भाईचारा भी भस्म हो गया. लेकिन यहां नफरत की उम्र कोई 8 साल ही हो पाई. और अब उसी जगह से अल्लाहू अकबर और हर-हर महादेव का नारा गूंजा है. जिसे हिंदू और मुसलमान, दोनों ने पूरी दम से लगाया.
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5 सितंबर 2021 को अब-जब मुजफ्फनगर के राजकीय इंटर कॉलेज (GIC) मैदान में किसान महापंचायत हुई है. जिसमें देश के लाखों किसान जमा हुए. जहां हिंदू-मुस्लिम एकता का संकल्प लिया गया. समाज तोड़ने वालों से सतर्क करने के साथ समाज जोड़ने का आह्वान हुआ. उसी मुजफ्फरनगर में आज ही के समय, अगस्त-सितंबर 2013 में हिंदू-मुस्लिम फसाद में उलझे थे. (Allahu Akbar Har Har Mahadev)
इस अरसे में दंगा पीड़ितों के जख्म शायद ही भर पाएं हों. लेकिन जाटलैंड पर हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे की डोर मजबूत करने की पहल जरूर शुरू हो गई है. किसानों ने पूरे देश में सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ाई का ऐलान किया है. इसकी खूब सराहना हो रही है. इसलिए क्योंकि समाज पर इसका सकारात्मक असर होगा. सांप्रदायिक आधार पर बंटवारे का सिलसिला काफी हद तक थमेगा.
बढ़ती मॉब लिंचिंग, बेखौफ अपराधी
हाल ही में सांप्रदायिक आधार पर मारपीट और अभद्रता की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं. मध्यप्रदेश में चूड़ीवाले तस्लीम को इंदौर में बेरहमी से पीटा गया था. बाद में उनके खिलाफ पॉक्सो के तहत मामला दर्ज करके जेल भेज दिया गया.
देवास में फेरीवाले जहीर, उज्जैन में मुस्लिम कबाड़ी और फिर इंदौर में पानीपूरी वाले को कथित हिंदूवादी संगठनों से जुड़े लोगों ने निशाना बनाया. कुछ को पीटा तो कुछ को अपने इलाके में कारोबार न करने की हिदायत देकर भगा दिया. यूपी के मथुरा से एक मुस्लिम डोसा वाले को इसलिए हड़काया गया, क्योंकि वह दूसरे धार्मिक प्रतीक का इस्तेमाल करके कारोबार कर रहा था. (Allahu Akbar Har Har Mahadev)
इन सभी घटनाओं में एक समानता है. वो ये कि ये नफरत का शिकार सभी पीड़ित गरीब मुसलमान हैं-जो छोटे-मोटे काम करते हैं. और समाज के हर वर्ग के बीच जाते हैं. दूसरी-इनके साथ मारपीट या धमकाने की जो घटनाएं हुई हैं. उन सभी के वीडियो बनाकर वायरल किए गए हैं.
#किसान_महापंचायत_मुजफ्फरनगर को मिले जनसमर्थन और लोगों की उमड़ी जन सैलाब से लगता है 2013 में जहां से नफ़रत की शुरुआत हुई थी वहीं से भाईचारा शुरू हुआ है.
देश को जिस जगह से ग़ुलामी मिली थी, वहीं से आजादी मिलेगी. pic.twitter.com/a85w2vWfFk— Abdur Rahman (@AbdurRahman_IPS) September 6, 2021
इसलिए किसान महापंचायत के मंच से सांप्रदायिक नफरत के खिलाफ किसान नेता राकेश टिकैत ने जो आवाज उठाई है. वो समाज को जोड़ने की मजबूत कड़ी बन सकती है. इस पर तमाम एक्टिविस्ट, बुद्धिजीवी, प्रोफेसर भी एकमत नजर आ रहे हैं.
स्वराज इंडिया के संयोजक और संयुक्त किसान मोर्चा के नेता योगेंद्र यादव ने कहा, “जो घर में आग लगाकर अपनी रोटी सेके, वे दोस्त हैं या दुश्मन? ये देशद्रोही हैं. भारत मां के दो लाल, हिंदू और मुसलमान में जो झगड़ा करवाए. वो भारत मां का बेटा नहीं हो सकता. हम मिलकर मुजफ्फरनगर में ये कहते हैं-तुम तोड़ोगे, हम जोड़ेंगे. हम भारत को हिंदू-मुसलमान और जात-बिरादरी में तोड़ने नहीं देंगे.”