#FarmersProtest: जहां दंगे के बाद बरसे थे भाजपा को वोट, वहां योगी सरकार को बताएंगे ‘हैसियत’

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पश्चिमी उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में दंगों के जख्म अभी भी नहीं भरे हैं। इन जख्मों पर फाहा रखने के साथ एकजुटता का संदेश और योगी सरकार को उसकी हैसियत बताने पांच सितंबर को देशभर से किसान मुजफ्फरनगर में जुटने जा रहे हैं। यह वही मुजफ्फरनगर है, जहां दंगों के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को वोट बरसे और पश्चिम यूपी में रालोद का परंपरागत वोट तक खिसक गया था। इसी धरती पर पांच सितंबर को किसान महापंचायत करके भाजपा विरोधी मिशन यूपी का आगाज होगा। उम्मीद की जा रही है कि यह पंचायत अब तक का सबसे बड़ा किसान जमावड़ा होगा।

किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं का मजाक और सांप्रदायिक माहौल बनाने वालों को करारा जवाब देने, किसान आंदोलन को बदनाम करने वालों को चेतावनी देने और आने वाले चुनाव में पांसा पलटने में किसानों की मुजफ्फरनगर महापंचायत मील ऐतिहासिक साबित हो सकती है। संयुक्त किसान मोर्चा भाजपा और उसके सहयोगी दलों के नेताओं के खिलाफ ज्यादातर राज्यों में और खासकर दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में विरोध तेज कर रहा है।

अकाली दल भी हाल ही तक भाजपा का एनडीए में सहयोगी होने और किसान विरोधी काले कानूनों का समर्थक होने के कारण पंजाब में किसानों के आक्रोश का खामियाजा भुगत रहा है। हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में भाजपा के मुख्यमंत्रियों को कई आगामी कार्यक्रमों के संबंध में किसानों ने अल्टीमेटम जारी किया है। हरियाणा के रेवाड़ी के किसानों ने मुख्यमंत्री को 5 सितंबर को रेवाड़ी में निर्धारित कार्यक्रम में आने के प्रति आगाह किया है और कहा है कि किसान निश्चित रूप से काले झंडे लेकर विरोध करेंगे।

हिमाचल प्रदेश में किसानों ने सीएम जयराम ठाकुर को शिलाई में आगामी कार्यक्रम में भाग लेने के खिलाफ चेतावनी दी है। उनकी मांगों में खरीद केंद्र और एपीएमसी मंडियों की स्थापना, सेब, टमाटर, अदरक, लहसुन आदि के लिए लाभकारी मूल्य की गारंटी भी शामिल है। पंजाब के होशियारपुर में कल केंद्रीय राज्यमंत्री सोम प्रकाश का स्थानीय किसानों ने काले झंडे दिखाकर विरोध किया। एसएडी नेताओं सुखबीर सिंह बादल और अन्य के खिलाफ जारी विरोध प्रदर्शन पहले ही व्यापक रूप ले चुके हैं।

एसकेएम नेताओं ने राजनीतिक दलों से अपील की है कि वे अभी चुनावी अवस्था में न आएं। “आमतौर पर, चुनाव से संबंधित प्रचार और प्रसार चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू होते हैं, जबकि हम विभिन्न दलों से असामान्य स्तर की गतिविधि देख रहे हैं, जो पहले से ही बिना किसी कारण के चुनाव अवस्था में आ रहे हैं। इससे केवल यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह एक किसान-विरोधी साजिश है, जो महत्वपूर्ण संघर्ष, जिसके लिए किसान महीनों से लड़ रहे हैं, से ध्यान भटकाने के लिए रची जा रही है। अगर वे वास्तव में किसानों के संघर्ष के समर्थक हैं, तो उन्हें अभी चुनाव प्रचार से दूर रहना चाहिए”।

मुजफ्फरनगर में दुनिया के अब तक के सबसे बड़े किसानों के जमावड़े के आयोजन के लिए तैयारियां अंतिम चरण में हैं। 5 सितंबर को शहर के जीआईसी ग्राउंड में आयोजित की जा रही किसान महापंचायत में लाखों किसानों के शामिल होने की उम्मीद है, जहां से संयुक्त किसान मोर्चा के मिशन उत्तर प्रदेश की शुरुआत होगी। इस महापंचायत में भाग लेने के लिए पश्चिमी उत्तरप्रदेश के साथ-साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश के अन्य हिस्सों में दर्जनों लामबंदी बैठकें हो चुकी हैं। किसान, जाति और धर्म के मतभेदों को भुलाकर इस आयोजन में भाग लेने की योजना बना रहे हैं।

इस संयुक्त आयोजन के लिए किसान संगठन अपने-अपने कार्यकर्ताओं को बड़े उत्साह के साथ लामबंद कर रहे हैं। 5 सितंबर को होने वाले विशाल प्रदर्शन की तैयारी की बैठकों ने पहले ही एक झलक दे दी है। स्थानीय गांव वासी अन्य जगहों से आए किसानों के स्वागत की तैयारी कर रहे हैं और भंडारों के माध्यम से लाखों लोगों को खाना खिलाने की तैयारी चल रही है।

एसकेएम का कहना है कि इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन को हमेशा स्थानीय नागरिकों का समर्थन मिला है और आंदोलन ने भी उनसे समर्थन लेने की हर संभव कोशिश की है। मोर्चा में लंगर स्थानीय ग्रामीणों के योगदान से चलते हैं, चाहे वह गेहूं हो या दूध या सब्जियां। यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि भाजपा-आरएसएस द्वारा कुछ स्थानीय नागरिकों को हर मौके पर किसान आंदोलन के खिलाफ भड़काने की कोशिश जारी है। तथ्य यह है कि यह आंदोलन स्थानीय ग्रामीणों के साथ लगभग दस महीने तक शांतिपूर्वक और सौहार्दपूर्ण ढंग से चला है और यह अपने आप में स्थानीय नागरिकों से लगातार मिल रहे समर्थन का एक पुख्ता प्रमाण है।

नांगल गांव में कल ग्रामीणों द्वारा एक विशेष बैठक बुलाई गई जिसमें उन्होंने घोषणा की कि 5 सितंबर को गांव में कोई भी किसान विरोधी बैठक नहीं होने दी जाएगी। ऐसा यह जानकारी मिलने के बाद किया गया कि सिंघु बॉर्डर पर विरोध कर रहे किसानों का मुकाबला करने के लिए 5 सितंबर को एक बैठक आयोजित की जाएगी। नंगल ग्राम पंचायत ने इस संबंध में स्पष्ट निर्णय लिया है और ऐसी कोई भी बैठक नहीं होने देने का संकल्प लिया।

मोर्चा का कहना है कि किसान आंदोलन ने न केवल सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए किसानों और उपभोक्ताओं के साथ-साथ देश के श्रमिकों के हितों की रक्षा करने हेतु भी आवाज उठाई है, साथ ही उन पूंजीपतियों के खिलाफ भी संघर्ष किया है जिनके फायदे के लिए सरकार नीतिगत फैसले कर रही है।

इस पृष्ठभूमि में, किसानों ने विरोध करने के लिए अडानी और अंबानी के कई व्यापारिक स्थलों को चुना था। पंजाब के किला रायपुर में, भारत की खाद्य सुरक्षा के कॉर्पोरेट अधिग्रहण के खिलाफ किसानों के प्रतिरोध को सहन करने में असमर्थ अदानी को अपना सूखा बंदरगाह बंद करना पड़ा और इसकी घोषणा करनी पड़ी।

अब, पंजाब के भटिंडा में अपनी इकाई को बंद करने की घोषणा करने की वॉलमार्ट की बारी है। इससे पहले, अडानी के ठेकेदारों और मशीनरी आपूर्तिकर्ताओं ने भी किसानों के आंदोलन को अपना समर्थन व्यक्त करते हुए अदानी को अपनी सेवाएं देने से इनकार कर दिया था।

इस बीच, किसानों द्वारा अधिक से अधिक टोल प्लाजा मुक्त किए जा रहे हैं, जिससे आम नागरिकों को बड़ी राहत मिल रही है और बुनियादी ढांचे के नाम पर बड़े व्यापारी घरानों के पक्ष में सरकार द्वारा अपनाई गई बहु-कराधान नीति पर भी सवाल उठाया जा रहा है। मुक्त होने वाला नवीनतम टोल प्लाजा राजस्थान में अलवर जिले में है।

एसकेएम ने कहा है कि करनाल हिंसा को लेकर किसानों की मांगों पर एक तरफ हरियाणा सरकार की चुप्पी और अन्य तरक्की संबंधी तबादलों के साथ पूर्व एसडीएम आयुष सिन्हा के तबादले से उनके संरक्षण और पदोन्नति, की कार्यवाही से स्पष्ट हो जाता है कि आयुष सिन्हा किसके आदेश पर काम कर रहे थे?

एसकेएम ने कहा, “हरियाणा सरकार के लिए करनाल की घटनाओं के संबंध में किसानों द्वारा रखी गई मांगों को पूरा करने का समय अब समाप्त हो रहा है, यह स्पष्ट है कि आयुष सिन्हा जैसे हत्यारे अधिकारियों के किसान विरोधी स्वामी कौन हैं, जिन्हें भाजपा-जजपा सरकार द्वारा संरक्षण दिया जा रहा है।

जैसा कि पहले ही घोषणा की गई है, एसकेएम 6 सितंबर तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर करनाल के लघु सचिवालय की घेराबंदी शुरू करेगा”। जानकार सूत्र बतलाते हैं कि उक्त अधिकारी के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया है।

एसकेएम ने कल मोगा में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पंजाब पुलिस द्वारा की गई हिंसा की कड़ी निंदा की। मटेवारा और मोगा में पुलिस द्वारा कई लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। एसकेएम ने किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को तत्काल वापस लेने और उन दोषियों के खिलाफ कड़ी पुलिस कार्रवाई की मांग की है, जिन्होंने कल मोगा में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर बेरहमीपूर्वक हमला किया था।

कृषि कानून न केवल दिल्ली और उसके आसपास, बल्कि अन्य राज्यों में भी चिंता पैदा करने वाला एक बहुचर्चित मुद्दा बन गया है। तमिलनाडु सरकार द्वारा हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा 3 कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए एक प्रस्ताव पेश करने और पारित करने, और 2019 के राज्य के अनुबंध कृषि कानून को निरस्त करने के लिए एक विधेयक पेश किया गया है । पुडुचेरी विधानसभा में कल उन्हीं कृषि कानूनों पर हंगामा और वाक-आउट देखने को मिला।

सीटू जैसे बड़े केंद्रीय श्रम संगठन ने 25 सितंबर के भारत बंद को सफलता बनाने की अपील की है। इसके अलावा देश के प्रमुख वामपंथी दलों ने भी प्रेस बयान जारी किया है। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा आहूत भारत बंद का समर्थन करने के लिए भाकपा, माकपा, एआईएफबी, भाकपा-माले और आरएसपी द्वारा संयुक्त बयान जारी किया गया है।

मोदी सरकार ने सभी किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी की घोषणा करने हेतु भारतीय किसान संघ द्वारा दिए गए अल्टीमेटम को अनसुना कर दिया है, देखना होगा भारतीय किसान संघ 8 सितंबर से पूरे देश में क्या और कैसी कार्यवाही करता है।

बहरहाल, दिल्ली के बॉर्डरों पर चल रहे किसान मोर्चों पर लगातार किसान शामिल हो रहे हैं। आज अखिल भारतीय किसान सभा के बिहार के 500 से अधिक किसानों का एक दल आंदोलन को मजबूत करने और अपने क्षेत्रों में आगे की लामबंदी के लिए प्रेरणा को वापस ले जाने के लिए गाजीपुर सीमा पर पहुंचा।

इसी तरह जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), जो किसान आंदोलन का एक सक्रिय और अभिन्न अंग रहा है, के किसान कुछ दिनों पहले गाजीपुर मोर्चा में भागीदारी करने के लिए महाराष्ट्र से पहुंचे हैं। उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र के वर्धा में 15 दिसंबर 2020 को शुरू किया गया एक पक्का मोर्चा निर्बाध रूप से जारी है, आज मोर्चे का 262 वां दिन था।


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