भारत के क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़े अहम दस्तावेज की तलाश काे लिखी गई खबर पर ‘द लीडर हिंदी’ को दो-दो लाख के तीन कानूनी नोटिस भेजे गए हैं। संस्थान के स्वामी, यूनिट के प्रमुख और लेखक आशीष आनंद को यह नोटिस 11 जून को भेजे गए। यह नोटिस रणजीत कुमार उर्फ रणजीत पांचाले ने अपने वकील रोशी सिंह के माध्यम से भेजे हैं।
नोटिस में क्या लिखा है और उसका हमारे लिए क्या अर्थ है, इसको विस्तार से बताने से पहले पत्रकारिता से जुड़ी साधारण सी जानकारी हम अपने पाठकों से साझा कर रहे हैं। वह यह, कोई भी रिपोर्ट या खबर लिखने में प्रकरण की प्रासंगिकता, उसको पढ़ने वाले वर्ग, मुद्दे की अहमियत को समझा जाता है, उससे जुड़े तथ्य जुटाए जाते हैं। खबर से संबंधित व्यक्ति या संस्थान का औपचारिक पक्ष भी लिया जाता है, जिससे खबर की विश्वसनीयता मजबूत हो। यह नियम सभी मीडिया संस्थानों पर लागू होता है।
दूसरी जानकारी है मानहानि से संबंधित। मानहानि के कुछ अपवाद होते हैं।
अपवाद 1 : सत्य बात का लांछन लगाया जाना या प्रकाशित किया जाना, जो लोक कल्याण के लिए अपेक्षित है, मानहानि नहीं है।
अपवाद 3 : किसी लोक कल्याण प्रश्न के संबंध में किसी व्यक्ति के आचरण के बारे में, और उसके शील के बारे में, जहां तक उसका आचरण प्रकट होता है न कि उससे आगे कोई राय, चाहे वह कुछ भी हो, सदभावपूर्वक अभिव्यक्त करना मानहानि नहीं है।.
अपवाद 9 : अपने या अन्य व्यक्ति के हितों की संरक्षा के लिए किसी व्यक्ति द्वारा सद्भावपूर्वक लगाया लांछन मानहानि नहीं है।
अपवाद 10 : सावधानी जो व्यक्ति की भलाई के लिए, जिसे की वह दी गई है या लोक कल्याण के लिए आशयित हो मानहानि नहीं है।
मानहानि से जुड़ा कानूनी पहलू यह भी जानने की जरूरत है कि मानहानि किसी के निधन के बाद भी हो सकती है, अगर उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया गया हो। निश्चय ही, यह दुर्गा भाभी की प्रतिष्ठा का ही प्रश्न है, अगर उनके लिखे पत्र को झूठ कहा जाए। उनके परिवारीजन, क्रांतिकारियों के परिजन, कोई सामाजिक संस्था या उनमें आस्था रखने वाला कोई व्यक्ति मानहानि का दावा कर सकता है।
‘द लीडर हिंदी’ ने 31 मई 2021 को एक रिपोर्ट प्रकाशित की। उस रिपोर्ट में विस्तार से बताया कि विख्यात क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के कुछ लेख गुम हैं। यह बात ‘द लीडर’ तक कैसे पहुंची! यह भी लेख में स्पष्ट है। उजागर हुए दुर्गा भाभी के पत्र में रणजीत कुमार उर्फ रणजीत पांचाले का नाम आया है। लिहाजा उनसे भी बात हुई।
रणजीत पांचाले को दो वाट्सएप किए गए और दो बार बात हुई। पहला वाट्सएप उनको इंटरव्यू के लिए किया गया, जिस पर उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि उनकी ”कोई उपलब्धि नहीं है, सिवाय इसके कि बरसों पहले एक किताब लिखी थी’‘।
इस बातचीत की कॉल रिकॉर्ड ‘द लीडर हिंदी’ के पास सुरक्षित है। दूसरा वाट्सएप मैसेज लेखक सुधीर विद्यार्थी से बातचीत के बाद किया गया। वाट्सएप में संदर्भ स्पष्ट था, जिसके बाद रणजीत पांचाले ने कॉल की।
इस बातचीत में उन्होंने पत्रकार आशीष आनंद को लेखक सुधीर विद्यार्थी का एजेंट कहने के साथ ही इस बात को बरसों बाद सार्वजनिक करने को ”बेहूदगी-बदतमीजी” कहा, इसे सुधीर विद्यार्थी की ”टुच्ची राजनीति” भी कहा। इस अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने पर भी पत्रकार ने उनसे शालीनतापूर्वक स्पष्ट रूप से पूछा, क्या उनके पास दुर्गा भाभी के लेख हैं? क्या वह यह लेख लाए थे?
इस पर रणजीत पांचाले ने साफ कहा, ”मेरे पास उनका कोई लेख नहीं है, मैं कभी उनसे लेख नहीं लाया”। इस पूरी बातचीत की रिकॉर्डेड कॉल द लीडर हिंदी के यूट्यूब चैनल पर खबर के आधार पर बनी वीडियो में मौजूद है। इस वीडियो को यूट्यूब पर 6 जून को जारी किया गया।
-‘द लीडर हिंदी’ यूट्यूब चैनल पर प्रकाशित यह रिपोर्ट, देखें और सुनें-
यही बात रणजीत पांचाले ने काकोरी केस के क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री के बेटे उदय खत्री से उससे पहले ही कह दी थी। इसका अर्थ हुआ कि या तो रणजीत पांचाले ने जो पत्रकार से कहा, वह सही है या फिर क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी का सुधीर विद्यार्थी को लिखे पत्र में कही गई बात। ‘द लीडर’ के लेख पर पाकिस्तान में क्रांतिकारियों की विरासत को सहेजने वाले इम्तियाज कुरैशी ने भी प्रतिक्रिया दी, जिसे एक अन्य लेख में प्रकाशित किया गया।
रिपोर्ट का आधार क्या बना? सुधीर विद्यार्थी की ताजा प्रकाशित पुस्तक ‘समय संवाद’, जिसमें दुर्गा भाभी का वह पत्र छपा है कि रणजीत नाम के व्यक्ति उनसे लेख ले गए हैं, दो बार पत्र भेजने के बाद भी उन्होंने वापस नहीं किए हैं, यह पत्र भी काफी मुश्किल से लिख पा रही हैं, क्योंकि हाथ की हड्डी टूट गई है। ‘समय संवाद’ पुस्तक की समीक्षाएं भी कुछ जगह प्रकाशित हुईं, जो एक और आधार बनीं।
ऐसा वास्तव में हुआ या नहीं, यह जानने को रणजीत पांचाले से जानने की कोशिश हुई, जिन्होंने लेख लाने से की बात से साफ इनकार कर दिया। उनकी बात को भी प्रकाशित किया किया, उनकी कॉल रिकॉर्ड भी तथ्य बतौर सामने रखी गई। इसके साथ ही क्रांतिकारियाें के परिजनों- प्रोफेसर जगमोहन सिंह, क्रांति कुमार और उदय खत्री से इस सिलसिले में हुई बात को भी प्रस्तुत किया गया। इस बातचीत को यूट्यूब वीडियो में सुना जा सकता है।
पहली खबर, जिसमें दुर्गा भाभी का पत्र और बाकी सिलसिला लिखा है
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लेख और वीडियो का उद्देश्य देश के क्रांतिकारी इतिहास से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करना रहा, जिनकी अहमियत इसलिए बनती है कि सात लेख खुद दुर्गा भाभी के लिखे हैं, जो 1938 में लिखे गए, जब क्रांतिकारी आंदोलन के प्रमुख नायक नहीं रहे, न भगत सिंह, न चंद्रशेखर आजाद।
इस प्रकरण पर ताजा घटनाक्रम यह भी रहा कि क्रांतिकारियों के परिजनों ने बरेली जिले के डीएम को इस मामले में पत्र भेजकर तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है। उस पत्र पर भी द लीडर ने एक खबर प्रकाशित की है। यह खबर प्रतिष्ठित हिंदी अखबार अमर उजाला ने भी अगले दिन प्रकाशित की।
क्रांतिकारियों के परिजनों के पत्र पर ‘द लीडर’ और ‘अमर उजाला’ में प्रकाशित खबरें
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अब हम उस कानूनी नोटिस को भी पाठकों के सामने प्रकाशित कर रहे हैं, जिसमें उन्होंने कुछ नए तर्क गिनाए हैं। पूरा नोटिस गौर से पढ़ें। इसके साथ ही लिखे गए लेखों और वीडियो को जरूर देखें।
नोटिस में जिन सवालों का ताल्लुक साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी से है, उसका जवाब वही दे सकते हैं। या फिर जो सवाल दुर्गा भाभी से है, उसका उत्तर वही दे सकती हैं, जो अब नहीं मिल सकते क्योंकि उनका 1999 में निधन हो चुका है।
बहरहाल, नोटिस में रखे गए पक्ष काे समझा जा सकता है। अगर यह पक्ष पहली ही बातचीत में रखा गया होता, तो उसे तब प्रकाशित किया गया होता। लेकिन रणजीत पांचाले ने दोबारा बात न करने को कहकर नंबर ही ब्लॉक करने को कह दिया।
नोटिस में यह बात अभी भी स्पष्ट नहीं है कि दुर्गा भाभी का साहित्यकार सुधीर विद्यार्थी को भेजा गया पत्र सही है या गलत। न ही इस पर कोई बात कही गई है कि दुर्गा भाभी ने रणजीत पांचाले को लेख वापस करने के लिए दो पत्र लिखे थे, उनमें क्या था। एक बात यह कही है कि ऐसा संभव है कि पुरानी बात होने की वजह से लेख लाने और लौटाने की बात याद न रही हो। फिर यह भी लिखा है कि दुर्गा भाभी को वो लेख मिल गए होंगे इसलिए 1986 में उनके भेजे पत्र में उसका जिक्र नहीं है। यह पत्र रणजीत पांचाले को द लीडर हिंदी में खबर प्रकाशित होने के बाद रिकॉर्ड खंगालने पर मिला है, ऐसा नोटिस में कहा गया है।
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इस पत्र से इतना तो साफ ही जाहिर हो रहा है कि यह रणजीत पांचाले के किसी पत्र के जवाब में लिखा गया है। दुर्गा भाभी ने उनके पत्र का दो टूक जवाब भेजा है। इसमें लेखों का जिक्र क्यों नहीं किया है, यह कोई और कैसे जान सकता है, सिवाय दुर्गा भाभी और रणजीत पांचाले के।
जिस तरह रणजीत पांचाले ने कयास लगाया है कि वो ”लेख उन्हें वापस मिल गए होंगे”, उसी तरह यह कयास यह भी लगाया जा सकता है कि रणजीत पांचाले ने अपने पत्र में जिस कार्यक्रम में आमंत्रित किया था, उसमें आने पर दे देने का वायदा किया हो, इसलिए जवाबी पत्र में उसका जिक्र नहीं आया हो। या फिर ऐसी ही कोई और बात हो।
रणजीत पांचाले अपने लिए कह रहे हैं कि ऐसा हो सकता है कि लाए हों और वापस कर दिए हों, इतने बरसों बाद याद नहीं रहा हो। क्या यही तर्क उनको दुर्गा भाभी पर भी नहीं लागू करना चाहिए, क्योंकि उस वक्त दुर्गा भाभी की उम्र लगभग 80 साल थी, जिसमें उन्होंने जिंदगी के थपेड़े झेले थे और अपने साथियों की कुर्बानियां देखी थीं।
उनका व्यक्तित्व उन लोगों के लिए इतना प्रभावशाली जरूर रहा होगा कि उनसे हुई मुलाकात, उनसे हुई बात, उनका चेहरा, उनका लिखा पत्र, उनका दिया उपहार, उनकी तस्वीर या ऐसी कोई यादगार कभी न भूल सके। लेकिन रणजीत पांचाले भूल गए, उनके भेजे पत्र, अपना भेजा हुआ पत्र भी। यहां तक कि इस बात के उजागर होने पर अपना पक्ष रखने की जगह नाराजगी जताना उनका पक्ष बन गया।
एक बात नोटिस में यह भी प्रमुख रूप से कही गई है कि अगर लेख वापस नहीं हुए होते तो दुर्गा भाभी इतनी प्रभावशाली महिला थीं कि वे मीडिया में आकर इस बात को रखतीं। यह सवाल भी दुर्गा भाभी से ही पूछा जा सकता है। वैसे, इस हकीकत को संवदेनशील लोग समझ सकते हैं कि 80 साल की बुजुर्ग क्रांतिकारी महिला कितनी मुखर हो सकती हैं।
बेशक, उनका व्यक्तित्व प्रभावशाली था, लेकिन उनकी उस दौर में कितनी पूछ थी कि ज्यादातर लोग तो उनसे मिल भी नहीं पाए। उस दौर में जब उनके एक साथी रहे डॉ.गया प्रसाद को आजाद भारत में जेल जाना पड़ा। तब मीडिया का दायरा कितना था, यह भी महत्वपूर्ण है। मीडिया के लिए वे कितनी महत्वपूर्ण रहीं, यह भी समझा जा सकता है।
इस मामले पर द लीडर हिंदी की बात दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर प्रोफेसर व विख्यात लेखक शमशुल इस्लाम से हुई, जिन्होंने दुर्गा भाभी से 1995 में बातचीत की और वह रिकॉर्डेड ऑडियो उनके पास है।
प्रोफेसर शमशुल इस्लाम बताते हैं, ”दुर्गा भाभी की जिंदगी के आखिरी वर्ष बहुत पीड़ादायी थे, वे मीडिया में आकर या कैसे भी खुद को जगजाहिर करने की हालत में नहीं थीं। एक हाथ से दूसरे हाथ में कौड़ी बदलते हुए उनका वक्त कट रहा था। बमुश्किल याददाश्त बची थी, जिसमें उन्होंने अपने कई लेखों का भी जिक्र किया, जो काेई ले गया और लौटाए नहीं। वो रणजीत थे या कोई और, यह बात भी अच्छी तरह से उनको याद नहीं थी।”
इसी बेचैनी का जिक्र द लीडर हिंदी ने अपने पहले लेख में किया है। जिसे बेचैनी बताने पर नोटिस में ऐतराज जताया गया है।
नोटिस में टूटे हाथ से लिखी चिट्ठी और आखिरी समय तक दुर्गा भाभी की बेचैनी को आम जनमानस को क्रोधित करने का षड्यंत्र बताया गया है। जबकि द लीडर हिंदी ने सिर्फ तथ्यों को रखा है। तथ्य जानकर किसको गुस्सा आएगा या नहीं, या खुशी होगी, यह पहले से तय नहीं किया जा सकता।
नोटिस में एक आरोप यह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान को ठेस पहुंचाई गई, जिसमें प्रकाशित किए गए लेख …क्यों आया पाकिस्तान से फोन, का जिक्र है। साथ में यह भी कहा गया कि रणजीत कुमार बीते 43 बरसों से लगातार लेखन कर रहे हैं। इससे उनकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है।
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लगातार लेखन कर रहे हैं, यह बात पहली बार बातचीत में भी रणजीत पांचाले ने स्पष्ट कर दी थी कि उन्होंने ”एक किताब के अलावा कुछ नहीं लिखा, वह भी बरसों पहले”। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनका नाम बदनाम हुआ, ऐसी बात भी नहीं है।
पाकिस्तान से फाेन इसलिए आया कि मामला क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी से जुड़ा था, जो सांडर्स वध के बाद कभी भगत सिंह को लाहौर से निकालकर कलकत्ता ले गई थीं।
बम का दर्शन- क्रांतिकारियों का वह लेख जो महात्मा गांधी के लेख के जवाब में लिखा गया
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