किसान आंदोलन का हश्र, क्या होगा? कम से कम अब तक तो ये साफ हो चुका है. दिल्ली पुलिस ने सिंघु बॉर्डर सील कर दिया है. गाजीपुर बॉर्डर पर बेहिसाब पुलिस बल तैनात है. उत्तर प्रदेश सरकार का हुक्म है कि पूरे राज्य से किसान आंदोलन खत्म कराए जाएं. अफसर एक्टिव हैं. तो क्या आज की रात किसान आंदोलन की आखिरी रात होगी! गुरुवार को किसान नेता राकेश टिकैत का फूट-फूटकर रोना और आंदोलन से न हटने की उनकी चुनौती कुछ संकेत देती है.
राकेश टिकैत ने देर शाम मंच से ऐलान किया कि न आंदोलन खत्म होगा और न ही मैं सरेंडर करूंगा. कानून वापस न हुए तो आत्महत्या कर लूंगा. चूंकि धरना स्थल की बिजली काट दी गई और पानी बंद कर दिया गया है. इसलिए जब तक गांव से पानी नहीं आएगा. प्यासा रहूंगा. उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया कि सरकार किसानों को मारकर भगाना चाहती है. ये सब सरकार की साजिश है.
जब तक सरकार से बात नहीं होगी धरणा प्रदर्शन समाप्त नहीं होगा। जब तक गांव के लोग ट्रैक्टरों से पानी नहीं लाएंगे, पानी नहीं पीऊंगा। प्रशासन ने पानी हटा दिया, बिजली काट दी, सारी सुविधा हटा दी: भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत, गाज़ीपुर बॉर्डर से pic.twitter.com/Hpzqj453fQ
— ANI_HindiNews (@AHindinews) January 28, 2021
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जोर-जोर से रोते हुए नजर आ रहे राकेश टिकैत ये सब ऐसे नहीं बोले रहे हैं. बल्कि उन्हें सरकार और प्रशासन के अगले कदम का आभास हो चुका है. खैर, उनके साथ कि किसान अभी गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हैं. हालात के मद्देनजर दूसरे किसान संगठन अपने तंबू समेटकर भाग चुके हैं. बॉर्डर पर सैकड़ों की संख्या में तैनात पुलिस बल को अफसरों के अगले आदेश का इंतजार है.
Uttar Pradesh government has ordered all DMs and SSPs to ensure the end of all the farmers' agitations in the state: Government officials pic.twitter.com/Pa9dVerZgZ
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) January 28, 2021
सीए-एनआरसी आंदोलन के हश्र से सबक नहीं लिया
ये वही किसान आंदोलन है, जो पिछले 2 महीनें से अपने अनुशासन और शांति के दम पर दुनिया भर में छाया रहा. मगर किसान नेताओं के 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड निकालने के एक गलत फैसले ने इसे तबाह कर दिया है. शायद, उन्होंने पिछले साल सीएए-एनआरसी के खिलाफ हुए आंदोलनों के हश्र से सबक नहीं सीखा.
मसलन, जब तक एक निश्चित स्थान पर आंदोलन चलता रहा, जैसे शाहीन बाग. उसमें हिंसा की गुंजाइश कम रही. जैसे ही आंदोलन शाहीन बाग से निकल दिल्ली के दूसरे स्थानों की तरफ बढ़ा. तबाह हो गया. ठीक, वैसा ही किसान आंदोलन के साथ हुआ.
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स्वराज इंडिया के योगेंद्र यादव, डॉ. दर्शनपाल सिंह, हन्ना मोल्लाह जैसे अनुभवी आंदोलनकारी इस बात को कैसे भूल गए कि जब लाखों की संख्या में दिल्ली में ट्रैक्टर आएंगे. और उसमें कोई हिंसा नहीं होगी. बेशक ये प्रायोजित ही सही. जैसा कि अब किसान नेता सरकार पर इल्जाम मढ़ रहे हैं.
जबकि सबसे शांतिपूर्वक और 6 साल में मोदी सरकार को पहली बार हिलाकर रख देने वाले इस आंदोलन का सत्यानाश करने का श्रेय किसान नेताओं के अति-उत्साह को ही जाता है. खैर, बनाया भी उन्होंने ही था.
चूंकि, सरकार के साथ किसान नेताओं की 11 दौर की बातचीत हुई. जिसमें हर बार सरकार ने साफ किया कि वो कानून वापस नहीं लेगी. किसान चाहें तो संशोधन की गुंजाइश है. किसान नेताओं को यह समझ लेना चाहिए था कि ऐसे हालात में खुली भीड़ को आमंत्रित करना खतरनाक होगा, जैसा हुआ भी.
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बाकी कसर मीडिया ने पूरी कर दी. हिंसा का पुट मिलते ही वो आंदोलन पर आक्रामक हो गया. राष्ट्रवाद का छौंका लगाकर जनभावनओं को किसानों के खिलाफ कर दिया. जबकि अभी ये जांच का विषय है कि हिंसा कैसे भड़की. दीप सिद्धू, जिसने लाल किले पर धार्मिक झंडा फहराया. वो विवादित है. सोशल मीडिया पर उसकी नेताओं के साथ तमात तस्वीरें सामने आई हैं.
बहराहल, 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड में भड़की हिंसा में सभी प्रमुख किसान नेताओं पर केस दर्ज किया जा चुका हैै. और उन्हें लुक आउट नोटिस भी जारी हो गया है. यानी किसान आंदोलन अब सरकार के चंगुल में फंस गया है. इससे बचकर जीवित रहने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. हां, राकेश टिकैत के आंसू कितना कमाल कर पाते हैं. ये देखना होगा. बहरहाल, किसान अभी डटे हैं. संयुक्त किसान मोर्चा पहले ही साफ कर चुका है कि आंदोलन जारी रहेगा. राकेश टिकैत भी अड़े हैं. यूपी सरकार भी अड़ती दिख रही है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)