
द लीडर हिंदी: क़ातिलाना हमले के मामले में उम्र क़ैद की सज़ा उमूमन नहीं होती. ऐसा फ़ैसला बहुत कम केसेज़ में देखने को मिलता है. यूपी के ज़िला बरेली में अपर सत्र न्यायाधीश फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट रवि कुमार दिवाकर ने धारा 307 के एक मामले की सुनवाई करते हुए माना कि दिनदहाड़े जान से मारने की नियत से फ़ायर किया गया था. उसके लिए ज़ख़्मी अफ़ज़ाल को डेढ़ महीने से ज़्यादा अस्पताल में इलाज कराना पड़ा.
दौराने सुनवाई मुल्ज़िम ने घटना से इन्कार किया लेकिन पुलिस की तरफ से 11 गवाह पेश किए गए. उन पुलिस वालों को भी बुलाया गया, जो 2009 में घटना के दौरान बरेली में पोस्ट थे. अब तबादला होकर दूसरे ज़िलों में जा चुके हैं. गवाहों ने फ़ायर झोंकते वक़्त नईम को देखने और फिर भागने की बात कोर्ट में कही.
दूसरी तरफ नईम इन्कार करता रहा. उसके अधिवक्ता की तरफ से यह भी कहा गया कि घटना के पीछे का मोटिव भी साफ नहीं है. पुलिस ने चार्जशीट और गवाहों ने अपने बयान में बताया कि अफ़जाल के कहने पर नईम ने बबलू नाम के शख़्स को 5 हज़ार रुपये क़र्ज़ दिए थे. उसने नहीं लौटाए तो नईम ने अफ़ज़ाल से कहा.
दोनों में इसे लेकर कहासुनी हुई. उसके बाद ही नईम ने अफ़ज़ाल को कारचोब करते वक़्त कारख़ाने से नीचे बुलाकर 12 बोर के तमंचे से उस पर फायर किया. वो बचने के लिए भागा तो गोली उसकी पीठ में लगी. उसे पहले कैंट के सदर अस्पताल, फिर गंगाचरन, वहां से आरके नर्सिंग होम और हालत गंभीर होने पर लखनई के मेडिकल कॉलेज ले जाया गया.
जहां अफ़ज़ाल 45 दिन तक भर्ती रहा. अफ़ज़ाल के गहरे ज़ख़्म भर गए और नईम भी गिरफ़्तार होने के बाद जेल से ज़मानत पर छूट आया, पुलिस ने उस धारा 307 के साथ आर्म्स एक्ट में भी मुक़दमा दर्ज किया था. दोनों धाराओं में कोर्ट ने दोष सिद्ध पाया. लिहाज़ा धारा 307 में उम्र क़ैद और 50 हज़ार जुर्माना, धारा 3/25 में पांच साल की सज़ा और 20 हज़ार के जुर्माने से दंडित किया है. दोनों सज़ाएं साथ चलेंगी. अर्थदंड देने नहीं देने पर दो साल की अतिरिक्त सज़ा बामुशक़्क़त काटनी होगी. नईम का जेल में बिताया गया वक़्त मूल सज़ा में शामिल रहेगा. कोर्ट के सज़ा सुनाने के बाद उसे जेल ले जाया गया है.