लंदन की सबसे बड़ी मस्जिद के इमाम को क्यों मिला ‘ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर’ सम्मान

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इस्लामोफोबिया से ग्रस्त लोगों का अक्सर प्रचार होता है कि मुस्लिम समुदाय आतंकवादी है या आतंकवादियों का सहयोगी है। लेकिन एक ऐसी घटना लंदन में हुई, जिसे सुनकर कोई भी चौंक जााएगा। सबसे बड़ी मस्जिद के इमाम ने मुसलमानों को कार से कुचलने वाले शख्स को भीड़ से बचाकर पुलिस को सौंपा। उसकी जान मॉब लिंचिंग में चली जाती, लेकिन इमाम दीवार की तरह भीड़ के आगे खड़े हो गए। इस घटना का असर उन सब पर हुआ, जिनको यह वाकया याद रहा या सुना। (Order Of British Empire)

यह वाकया ताजा हो गया, जब बकिंघम पैलेस में उन्हीं इमाम को प्रिंस विलियम ने उस घटना को याद कर ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर जैसे सम्मान से नवाजा।

घटना जून 2017 में उत्तरी लंदन के फिंसबरी पार्क हमले के नाम से जानी जाती है। मुस्लिम वेलफेयर हाउस के प्रवेश द्वार के पास एक फुटपाथ पर पैदल चलने वाली मुस्लिम भीड़ पर डैरेन ओसबोर्न नाम के शख्स ने कार चढ़ा दी। इस दुस्साहसी हमले में कई लोगों की जान पर बन आई और कोहराम मच गया।

हमलावर जब भागने को हुआ तो भीड़ ने उसे घेर लिया। ऐन इसी वक्त पर इमाम शेख मुहम्मद महमूद आ गए। डैरेन उनके पीछे था। इमाम भीड़ के सामने आ गए और कानून हाथ में न लेने और कायराना हरकत के जवाब में कायरता न दिखाने की दख्वास्त की। जबकि भीड़ गुस्से में थी। फिर भी वे तब तक भीड़ के सामने खड़े रहे, जब तक पुलिस नहीं आ गई। (Order Of British Empire)

इस हमले में 51 वर्षीय मकरम अली की हत्या और नौ लोगों के घायल होने का दोषी पाए जाने पर फरवरी 2018 में डैरेन ओसबोर्न को 43 साल की सजा दी गई।

एक इंटरव्यू में इमाम महमूद ने कहा कि मुझे हीरो जैसे तमगा शोभा नहीं देता, मेरा ख्याल है कि उस वक्त जो किया वह कोई असाधारण बात नहीं है। डैरेन की जान बचाने के लिए यह स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। कायरतापूर्वक हमले के जवाब में कायरता दिखाना जायज नहीं है।

36 साल के इमाम शेख मुहम्मद महमूद मिस्र के अज़हरी संस्थान से दीक्षित हैं और फिलहाल लंदन की सबसे बड़ी मस्जिद के इमाम हैं। जन्म मिस्र के काहिरा में हुआ था। उनका परिवार 1986 में लंदन चला गया, जब वह छह सप्ताह के थे। (Order Of British Empire)

उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में जीव विज्ञान का अध्ययन किया और 2012 में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ कुछ समय के लिए काहिरा चले गए। फिर वे नौ महीने बाद लंदन लौट आए क्योंकि उन्हें लगा कि देश शैक्षणिक जरूरतों के लिए उपयुक्त नहीं है। बाद में उन्होंने बर्मिंघम स्थित यूरोपीय मानव विज्ञान संस्थान में इस्लामी धर्मशास्त्र का अध्ययन किया। फिर वह 2013 में मुस्लिम वेलफेयर हाउस के इमाम बने।


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