क्यों शाहिद जमील का इस्तीफा देना कोई छोटी घटना नहीं है: नजरिया

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गिरीश मालवीय-

शाहिद जमील उस वैज्ञानिक कमेटी का नेतृत्व कर रहे थे जो भारत मे मौजूद कोरोनोवायरस के वेरिएंट का पता लगाने के लिए सरकार द्वारा स्थापित की गई थी। दिसंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जीनोम सीक्वेंसिंग को लेकर एक कमेटी बनाई गई, जिसका नाम Indian SARS-CoV-2 Consortium on Genomics हैं, यानी INSACOG। यह वह फोरम है जिसके अंडर में देश की बड़ी 10 प्रयोगशालाएं थी, वह फोरम जो कोरोना के वैरियेंट्स पर विस्तृत और सटीक अध्ययन कर रही था।

बड़ी बात यह है कि INSACOG के प्रमुख शाहिद जमील ने ही मार्च की शुरुआत में सरकारी अधिकारियों को देश में कोरोनावायरस के एक नए और अधिक संक्रामक संस्करण के बारे में चेतावनी दी थी। वह इस बात पर लगातार चिंता जता रहे थे कि सरकार उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूतों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही। उन्होंने ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में एक लेख लिख कर कम कोरोना जांच कराने और साक्ष्यों के आधार पर नीति नहीं बनाने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की थी।

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इस लेख में उन्होंने कहा कि भारत मे ‘साक्ष्यों पर आधारित कोरोना नीति’ नहीं बनाई जा रही है भारत मे पहले फ़ैसले लिए गए और उसके बाद उसके हिसाब से आँकड़े जुटाए गए।……. वे सरकार को सलाह दे सकते हैं, पर नीतियाँ बनाना सरकार का ही काम है।

जब उन्होंने कड़े प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की तो सरकार ने ठीक उल्टा बड़ी बड़ी राजनीतिक सभाएं की आैर कुंभ का आयोजन करवाया।

उन्होंने लेख में कहा था कि ‘’मोदी सरकार को देश के वैज्ञानिकों की बात सुननी चाहिए और पॉलिसी बनाने में जिद्दी रवैया छोड़ना चाहिए. मुझे चिंता है कि नीति को चलाने के लिए विज्ञान पर ध्यान नहीं दिया गया. लेकिन मुझे पता है कि मेरा अधिकारक्षेत्र कहां तक है.’’

इसके अलावा उन्होंने भारत मे वैक्सीन पॉलिसी की भी निंदा करते हुए कहा कि शुरुआत में तो यह ठीक चल रहा था लेकिन ‘मार्च के मध्य में सिर्फ 1.5 करोड़ डोज़ ही डिलीवर हुईं. इससे सिर्फ 1 फीसदी जनसंख्या को ही वैक्सीनेट किया जा सकता था. वैक्सीनेशन की ड्राइव भारतीय नेतृत्व के उस मैसेज से लड़खड़ा गई, जिसमें कहा गया था कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, यह उनके निजी विचार हैं)


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