किसे मिलेगा मुसलमानों का वोट? सपा ने बदली रणनीति तो बसपा ने चला नया दांव

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UP Nikay Chunav 2023 : उत्तर प्रदेश जो कि देश का सबसे बड़ा राजनीतिक सूबा है, कहा जाता देश का प्रधानमंत्री कौन होगा इस सूबे से ही तय होता है। यही कारण है कि ये प्रदेश हमेशा राजनीति के केन्द्र में रहता है या यूं कह लें कि देश की राजनीति यूपी के आस पास ही घूमती रहती है।
अब अगर बात उत्तर प्रदेश की सियासत की हो रही है तो यहां की सबसे खास बात ये है कि यहां लोग नाम सुनकर ही जान लेते है कि कौन किस पार्टी को वोट करेगा। मतलब यहां धर्म और जाति के नाम पर ये तय हो जाता है कि ये इस पार्टी का वोटर है लेकिन कभी कभी इसमें बदलाव भी होते हैं और जो इस बदलाव की धार में अपनी नाव ला पाता है वो बडे़ आराम से पार हो जाता है। इसी बदलाव को सही तरह से भांपने के लिए यूपी की सभी पार्टियां निकाय चुनाव में अपना दांव आजमा लेना चाहती हैं।
 यहां निकाय चुनाव के लिए नामांकन की तारीख खत्म हो चुकी है और अब प्रचार अभियान तेज होने लगा है लेकिन इस बार सबसे ज्यादा चर्चा समाजवादी पार्टी  और बीएसपी के फैसलों को लेकर हो रही है। क्योंकि इस बार देखा गया है इस चुनाव में दोनों ही दलों ने अपनी परम्परागत राजनीति से हट कर टिकट दिए हैं। अगर मुस्लिम टिकटों को ही देख ले तो सपा ने मेयर पद के लिए जहां चार प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है बीएसपी ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

समाजवादी पार्टी ने फिरोजाबाद से मशरुर फातिमा, सहारनपुर से नूर हसन मलिक, अलीगढ़ से जमीर उल्ला खां और मुरादाबाद से सैय्यद रईस उद्दीन को मेयर का उम्मीदवार बनाया है साथ ही पार्टी ने केवल एक यादव को टिकट देकर अपने कोर वोटर्स के साथ अन्य जातिगत समीकरणों को जोड़ने पर जोर दिया है। सपा ने केवल गाजियाबाद से यादव के मेयर का टिकट दिया है।

इसी को देखते हुए मायावती ने अखिलेश यादव के समीकरण को बिगाड़ने और अपना जनाधार बढ़ाने  के लिए निकाय चुनाव में बड़ा दांव चला है। बसपा ने 17 मेयर उम्मीदवारों में से 11 टिकट मुस्लिमों को दिए हैं। पार्टी ने पहले चरण के 10 सीटों पर उम्मीदवार का एलान किया था, इसमें छह मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे।इसके बाद दूसरे चरण के सात उम्मीदवारों में से पांच मुस्लिम को टिकट दिया।

बीएसपी ने अलीगढ़ में तो सपा के मुस्लिम उम्मीदवार के सामने अपना मुस्लिम उम्मीदवार ही उतारा है इसके अलावा बीएसपी ने मेरठ, शाहजहांपुर, गाजियाबाद, बरेली समेत कई सीटों से मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। इस रणनीति से बात साफ है कि मायावती सपा के कोर वोटर्स में सेंध लगाने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

बीएसपी के इस फैसले की मुख्य वजब बीते दिनों में सपा की बदली हुई रणनीति को ही माना जा रहा है क्योंकि सपा ने कोलकाता अधिवेशन के बाद अपने मुस्लिम और यादव के समीकरण को मजबूत करने लिए अनुसूचित जाति के वोटर्स को जोड़ने की रणनीति बनाई थी।

अब जब सपा बसपा के वोट बैंक को अपनी तरफ लाने की तैयारी में है तो बीएसपी ने भी अपना दांव चल दिया है और सपा के वोटर्स में सेंधमारी की तैयारी शुरू कर दी है। अब ये निकाय चुनाव के परिणाम के बाद ही पता चलेगा कि किसका दांव चला? उधर एक संभावना ये भी है कि सपा बसपा की आपस की वोट काटने की सियासत भाजपा को फायदा मिले।

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