अमेरिका में स्वामीनारायण मंदिर निर्माण में दलितों से बेगारी कौन करा रहा है?

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नस्लभेद के खिलाफ जंग के चलते सुर्खियों रहे अमेरिका में स्वामी नारायण मंदिर निर्माण में भारत से ले जाए गए दलित मजूदरों से जातिगत भेदभाव, उत्पीड़न और बेगारी के मामले से भारत की जाति व्यवस्था पर नए सिरे से बहस छिड़ गई है। एफ़बीआई के छापे के बाद निर्माण कार्य रोक दिया गया है और कई एजेंसियों ने जांच शुरू कर दी है। जिला अदालत में 200 से ज्यादा मजदूरों की शिकायत पर कार्रवाई जारी है।

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इंडिया टुडे के पूर्व संपादक व दलित बुद्धिजीवी दिलीप मंडल ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दर्ज कराई। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स का लिंक शेयर करके लिखा-

”हिंदू सवर्ण अपनी सारी गंदगी लेकर अमेरिका पहुंच गए हैं। वहां वे दास प्रथा चला रहे हैं। दलित मज़दूरों को भारत से अमेरिका ले गए हैं। उनका पासपोर्ट ज़ब्त कर लिया है और उनसे गुलामों की तरह काम करा रहे हैं। अमेरिका के लोगों को अब उनका भगवान बचाए। दक्षिण एशिया बीमार हो चुका है। अब अमेरिका ने इनका समय रहते इलाज नहीं किया तो उनको कोई बचा नहीं सकता। ये सिर्फ बीजेपी या मोदी की बात नहीं है। ये हिंदुत्व है। हिंदुत्व ऐसा ही है।”

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स्वतंत्र पत्रकार व वामपंथी कार्यकर्ता इंद्रेश मैखुरी ने तफसील से अपने ब्लॉग नुक्ता ए नजर में तफसील से पूरा घटनाक्रम लिखकर इसे शर्मनाक घटना करार दिया है। उन्होंने लिखा है, अमेरिका की एक अदालत में दाखिल मुकदमें के अनुसार न्यू जर्सी में एक मंदिर के निर्माण के लिए इन दलित मजदूरों को भारत से धार्मिक वीजा पर अमेरिका ले जाया गया था। अमेरिका में प्रवेश करते वक्त इन मजदूरों को धार्मिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवकों के तौर पर प्रस्तुत किया गया।

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, बोचासनवासी श्री अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (बीएपीएस) के द्वारा न्यू जर्सी में बनाए जा रहे एक विशाल मंदिर के लिए इन मजदूरों को भारत से अमेरिका लाया गया था. मंदिर निर्माण 2014 में शुरू हो गया, लेकिन संस्था चूंकि इसको अमेरिका का सबसे बड़ा मंदिर बनाना चाहती है, इसलिए अभी भी निर्माण कार्य जारी है. अखबार के अनुसार मजदूरों को भारत से अच्छे वेतन और बढ़िया कार्यस्थितियों के वायदे के साथ अमेरिका लाया गया था. लेकिन वर्तमान में निर्माणाधीन मंदिर परिसर में ही लोगों की निगाहों से दूर इन्हें बंधक की तरह रखा जा रहा है.

अदालत में दर्ज शिकायत के हवाले से न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है कि इन मजदूरों से तेरह घंटे से अधिक काम करवाया जाता था और उन्हें 450 डॉलर मजदूरी दी जाती थी, जिसमें से अमेरिका में खर्च के लिए उन्हें सिर्फ 50 डॉलर दिया जाता था और शेष भारत में उनके खाते में जमा किया जाता था. अंग्रेजी न्यूज़पोर्टल- द वायर में प्रकाशित समाचार एजेंसी रायटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, न्यू जर्सी में न्यूनतम मजदूरी 12 डॉलर प्रति घंटा है,जबकि इन मजदूरों को जो दिया जा रहा है, वह 1.20 डॉलर प्रति घंटा बैठता है.

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न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार इन मजदूरों को बंधक की तरह रखा जाता था और बाहरी लोगों से बात करने की उन्हें अनुमति नहीं थी. हेलमेट न पहने होने जैसी मामूली बातों पर उनकी मजदूरी काट ली जाती थी. उन्हें बेहद साधारण खाना दिया जाता था. पिछले साल एक मजदूर की वहां काम करते हुए मौत भी हो चुकी है.

जो संस्था न्यू जर्सी में ही कई मिलियन डॉलर मंदिर के निर्माण पर खर्च कर रही है, उसने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए 29 लाख डॉलर का चंदा दिया है।

इसे अमेरिका में बेगारी का सबसे बड़ा मामला माना जा रहा है और इसकी जांच में अमेरिका की तीन बड़ी एजेंसियां- एफ़बीआई, श्रम विभाग और आंतरिक सुरक्षा विभाग लगा हुआ है.

अमेरिका में कानूनी रूप से प्राप्त धार्मिक स्वतंत्रता का प्रयोग जातीय शोषण करने के लिए किए जाने की यह शर्मनाक घटना है.


इस घटना के सुर्खियों में आने के बाद आर्गेनाइजर ने मजदूरों साथ हुई ज्यादती को अमेरिकी एजेंसी को दोषी ठहराया है।


बहरहाल, बहस इस मुद्दे पर आ खड़ी हुई है कि जब अमेरिका में जाति के आधार पर शोषण उत्पीड़न हो सकता है तो वर्ण व्यवस्था और जाति व्यवस्था की जननी धरती भारत में इसका क्या आलम होगा। ब्राह्मणवादी व्यवस्था को लेकर पक्ष-विपक्ष बहस में उतर चुके हैं।

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