द लीडर | वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे का काम सोमवार को ही पूरा हो गया है. इस बीच प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) को लेकर देशभर में बहस छिड़ी है। 26 अप्रैल को वाराणसी की एक स्थानीय अदालत द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी मंदिर की वीडियोग्राफी और सर्वेक्षण के आदेश के बाद यह सर्वेक्षण कार्य किया गया है। हालांकि, मुस्लिम पक्ष और कई सियासी नेताओं ने मस्जिद के सर्वेक्षण पर आपत्ति जताई है और पूजा स्थल अधिनियम, 1991 और इसकी धारा 4 का हवाला देते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है।
एक्ट कब बना? -1991
मकसद- 1947 जैसी धार्मिक स्थलों की स्थिति
चुनौती दी- विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ
चुनौती कब- 14 जून 2020
चुनौती कहां- सुप्रीम कोर्ट
सुनवाई- अभी तक नहीं
क्या है प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991?
देश में पूजा स्थलों की सुरक्षा को लेकर 1991 में कानून बनाया गया था। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991। ये एक्ट किसी भी धार्मिक स्थल के धार्मिक स्वरूप को बदलने से रोक लगाता है। ये एक्ट तत्कालीन नरसिम्हा राव की सरकार के वक्त बनाया गया था। ये एक्ट किसी भी पूजा स्थल के रूपांतरण पर रोक लगाते हैं और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र के रखरखाव के लिए एक तरह से सुरक्षा प्रदान करते हैं जैसा कि 15 अगस्त, 1947 और उससे जुड़े या प्रासंगिक मामलों के लिए था।
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क्या है एक्ट का मूल स्वरूप
जहां पर कोई पूजा करता हो उसको लेकर 1991 में एक कानून बनाया गया। उस वक्त अयोध्या विवाद अपने चरम पर था, लेकिन तबतक मस्जिद को गिराया नहीं गया था। इसी दौरान पीवी नरसिम्हाराव की सरकार ने संसद में एक कानून पास किया, जिसमे कहा गया कि हम एक तारीख तय कर देते हैं, जिसके बाद के किसी भी धार्मिक स्थल के मूल स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। कानून के तहत 15 अगस्त 1947 के बाद किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदला नहीं जाएगा। इस कानून का लक्ष्य सभी धर्म के धार्मिक स्थल फिर चाहे वो मंदिर हो, मस्जिद हो या चर्च हो,उसके मूल स्वरूप को आजादी के बाद जैसा है वैसा ही रखा जाएगा और इसके ढांचे में बदलाव नहीं किया जाएगा।
बाबरी मस्जिद विवाद के समय आया एक्ट
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के सेक्शन 4(1) यह कहता है कि 15 अगस्त 1947 को अगर किसी मंदिर को मस्जिद बना दिया गया तो वह मस्जिद ही रहेगा और मस्जिद को मंदिर बना दिया गया तो वह मंदिर ही रहेगा। यानि आजादी के बाद अब इसके स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। अगर किसी भी विवादित ढांचे के स्वरूप में बदलाव के लिए कोर्ट में मामला आता है तो उस मामले की सुनवाई जुलाई 1991 के बाद नहीं की जा सकती है। इस तरह के मामले को खारिज कर दिया जाएगा।
हिंदू पक्ष की और क्या हैं दलीलें?
ज्ञानवापी मामले में कानून लागू होगा या नहीं इस पर तमाम पक्षों की अपनी-अपनी राय है। हिंदू पक्ष का कहना है कि 1991 में ही यह मामला कोर्ट में पहुंच चुका था। ऐसे में इस पर यह फैसला लागू नहीं होता है। वहीं, दूसरे पक्ष का कहना है कि जब कानून बन चुका है तो उसके दायरे में सभी स्थल आएंगे।
आइये जानते हैं किन धार्मिक स्थलों पर विवाद?
- ज्ञानवापी मस्जिद, वाराणसी
क्या है विवाद?
मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा
- शाही ईदगाह मस्जिद, मथुरा
क्या है विवाद?
मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा
- कुतुबमीनार, दिल्ली
क्या है विवाद?
मंदिरों को तोड़कर मीनार बनाने का दावा
नाम बदलकर विष्णु स्तंभ रखने की मांग
- ताजमहल, आगरा
क्या है विवाद?
शिव मंदिर की जगह पर ताजमहल बनाने का दावा
- अटाला मस्जिद, जौनपुर
क्या है विवाद?
अटला देवी का मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने का दावा
- भोजशाला, धार
क्या है विवाद?
पूरा परिसर हिंदुओं को सौंपने की मांग
नमाज पढ़ने से रोक की मांग