द लीडर : क्रिकेट के नियम कायदे बनाने वाले मेरिलबोन क्रिकेट क्लब (MCC) ने विलो की जगह बांस के बल्ले के उपयोग को मंजूरी नहीं दी है.
एमसीसी के मुताबिक, क्रिकेट के खेल में अंग्रेजी विलो लकड़ी के उपयोग के विकल्प पर विचार किया जाना चाहिए. मगर बांस से बैट का निर्माण करने के लिए क्रिकेट के मौजूदा नियम में बदलाव की आवश्यकता होगी. इस मामले पर अगली बैठक में फैसला लिया जाएगा.
एमसीसी के कानून 5.3.2 के अनुसार बल्ले के ब्लेड में पूरी तरह से लकड़ी होनी चाहिए, जबकी बांस एक तरह की घास का रूप है. बांस के बैट को अनुमति देने के लिए कानून में बदलाव करना होगा. बांस को लकड़ी के रूप में मान्यता देनी होगी.
एमसीसी ने वर्ष 2008 और 2017 में बैट की सामग्री और इसके साइज के नियम तय किए गए थे. जिससे कि बल्ला ज्यादा पावरफुल ना हो जाए. नियम के मुताबिक बैट की लंबाई 38 इंच से ज्यादा और चौड़ाई 4.25 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए. वजन 2 से लेकर 3 पौंड के बीच होना चाहिए.
बांस के बने बैट का स्वीट स्पॉट कहीं बेहतर
इंग्लैंड के शोधकर्ताओं का दावा है कि बांस के बने बैट का स्वीट स्पॉट कहीं बेहतर है. बॉल बैट पर लगने के बाद स्पीड से दूर जाती है. इससे बड़े शॉट लगाने आसान होंगे. यॉर्कर पर भी बल्लेबाज आसानी से चौका जड़ सकेंगे.
विलो के मुकाबले बांस का बैट सस्ता
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के डॉ. दर्शिल शाह और बेन टिंकलर डेविस ने बांस के बैट पर रिसर्च की है. इसके मुताबिक, विलो के मुकाबले बांस का बैट सस्ता और 22 प्रतिशत ज्यादा सख्त होता है. इसलिए बल्ले पर लगने के बाद गेंद कहीं ज्यादा तेज गति से बाउंड्री की ओर जाती है. बांस के बैट से यॉर्कर पर चौके लगाना आसान हो जाएगा. विलो के मुकाबले बांस से बने बैट हर तरह के स्ट्रोक के लिए बेस्ट हैं.
बांस है सर्वसुलभ
डॉ . दर्शिल का कहना है कि विलो की लकड़ी इंग्लैंड और कश्मीर में सबसे ज्यादा पाई जाती है. इससे ही अभी बैट बनाए जाते हैं. विलो के पेड़ को बड़े होने में 15 साल लगते हैं. इससे यह आसानी से नहीं मिलता है. वहीं एक बैट बनाने में इसकी 15 से 30 प्रतिशत लकड़ी खराब हो जाती है. इसकी तुलना me बांस सर्व सुलभ पेड़ है. जो हर जगह मिल जाता है. बांस के पेड़ 7 साल में बड़े हो जाते हैं. चीन , जापान , साउथ अमेरिका में बांस के बैट काफी पॉपुलर है. लेकिन विलो के बैट की तुलना में बांस के बैट भारी होते हैं.
फिलहाल ऐसे बनते हैं क्रिकेट बैट
एमसीसी के मोरुडा नियम के अनुसार क्रिकेट का बल्ला विलो की लकड़ी से बनाया जाता है. विलो के पेड़ इंग्लैंड के ऐसेक्स और भारत में कश्मीर में ज्यादा पाए जाते हैं. विलो पेड़ का वैज्ञानिक नाम सैलिक्स ऐल्बा हैै. बैट बनाने के लिए जब विलो की लकड़ी को काटा जाता है तब इसका वजन 10 किलो होता है. छीलने के बाद यह केवल 1 किलो 200 ग्राम रह जाता है. फिर बैट को मजबूत बनाने के लिए एक खास मशीन से प्रेस किया जाता है. बैट पर अलसी का तेल लगाने से यह और मजबूत हो जाता है.
ऐसे बनता है बांस का बैट
गेरार्ड और फ्लैक ने बांस के बैट का प्रोटोटाइप तैयार किया. इसमें बांस को 2.5 मीटर लंबे हिस्से में अलग कर प्लेन किया गया. फिर घास और गोंद का इस्तेमाल कर ठोस तख्ता तैयार किया. ये अलग – अलग साइज में काटने के लिए तैयार थे. बांस के बने बैट में 5 घंटे नॉकिंग करने से ही उसकी सतह अन्य बैट ( प्रेस्ड बैट ) के मुकाबले दोगुनी सख्त हो जाती है.