द लीडर। अगले साल उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में चुनाव होने है। जिसको लेकर सभी पार्टियां जोरों शोरों से लगी हुई हैं। लेकिन 2022 का चुनाव नजदीक आते ही अब दलबदलू नेताओं का खेल जारी है। बता दें कि, अपने व्यक्तिगत हितों को देखते हुए नेताओं का दलबदल करना आम बात हो गई है। ये सभी नेताओं की बात है। चाहे वो उत्तराखंड के हो या उत्तर प्रदेश या भी कोई और प्रदेश..
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चुनाव से पहले नेताओं का दल बदलना जारी
फिलहाल हम बात कर रहे है उत्तराखंड राज्य की। जहां 2022 के चुनाव से पहले नेताओं का दलबदलना जारी है। चमोली में भाजपा के एक दलबदलू नेता ने इसी की पुनरावृति भी की है। जी हां बात कर रहे हैं विनोद कप्रवाण की। जो अपने व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए कभी इस दल तो कभी उस दल में शामिल हो रहे है। उनके इस तरह से दल को छोड़ना और फिर दल में शामिल होना का तात्पर्य कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा है कि, वह जनता के लिए कोई बलिदान दे रहे हो। नेता अपने फायदे के लिए राजनीति कर रहे हैं।
विनोद कप्रवाण ने एक बार फिर भाजपा का दामन थामा
बता दें कि, अब खबर ये चल रही हैं कि, भाजपा से रूठ कर आम आदमी पार्टी का दामन थामने वाले भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी के नजदीकी माने जाने वाले विनोद कप्रवाण ने शुक्रवार को देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर धामी पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज और बद्रीनाथ विधायक महेंद्र भट की मौजूदगी में एक बार फिर भाजपा का दामन थाम लिया है। इनका पहले भाजपा छोड़ने का कारण यह बताया जा रहा है कि, इनकी पार्टी में घोर उपेक्षा हो रही थी।
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गढ़वाल क्षेत्र में आम आदमी पार्टी को लगा बड़ा झटका
नेता कप्रवाण के आम आदमी पार्टी का दामन थामने के बाद चमोली में भाजपा को बड़े नुकसान का लगाया जा रहा था। वहीं उनके भाजपा में लौटने के बाद एक बार फिर चमोली में भाजपा को मजबूती मिलेगी। लेकिन आम आदमी पार्टी को गढ़वाल क्षेत्र में एक बड़ा झटका लगा है। बता दें कि, एक साल पहले भाजपा में तवज्जो न मिलने के चलते नेता कप्रवाण ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया था। आम आम आदमी पार्टी के सूत्रों के अनुसार, 2022 के विधानसभा चुनाव में बद्रीनाथ विधानसभा से टिकट को लेकर चल रही नूरा कुश्ती के चलते कप्रवाण एक बार फिर भाजपा में लौट आए है।
क्या एक बार फिर देवभूमि में खिलेगा कमल या…
इससे एक बात तो साफ है कि, विनोद कप्रवाण को न पहले भाजपा ने अहमियत दी और ना आम आदमी पार्टी ने। ऐसे में भाजपा में वापसी कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि वे उनकी मजबूरी हो गई थी। लेकिन जनता सब जानती है, दलबदलू नेताओं को भविष्य में कितना साथ देती है यह देखना बाकी है। फिलहाल सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष अगले साल चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए जनता को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। फिलहाल देखना ये होगा कि, क्या जनता दोबारा देवभूमि में कमल खिलाएगी या फिर दूसरी पार्टी पर अपना विश्वास जताएगी।
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