रामदेव के पास हिंसा रोकने की दवा है तो खुद खाएं, अंधभक्तों को दें ! सीएम के डॉक्टर ने दिया मुंहतोड़ जवाब

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द लीडर डेस्क देहरादून।

पैथियों के विवाद के बीच अपनी विवादित दवा को देश के स्वास्थ्य मंत्री से प्रचार कराने और कोरिनिल किट हरियाणा को बेच कर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाने वाले बाबा रामदेव को अब उत्तराखंड की भाजपा सरकार के ही एक खास डॉक्टर ने मुंहतोड़ जवाब दिया है। उन्होंने रामदेव को खुले मंच पर बहस की चुनौती देते हुए उन्हीं की तंज भरी भाषा में कुछ जवाब भी दिए हैं।
रामदेव और हो सकता है उनकी मुरीद भाजपा के लिये यह चौंकाने वाली बात हो लेकिन ये सच है कि उन्हें उत्तराखंड के भाजपाई मुख्यमंत्री के चिकित्सक से  चुनौती मिली है।

डॉक्टर एन एस बिष्ट

अपने हुनर की वजह से अलग पहचान रखने वाले वरिष्ठ फिजीशियन डा. एनएस बिष्ट मुख्यमंत्री के चिकित्सक हैं। वैसे उनकी तैनाती जिला चिकित्सालय (कोरोनेशन अस्पताल) में है। रामदेव के एलौपैथी पर दिए गए बयान और आइएमए से पूछे गए 25 सवालों का संज्ञान लेते हुए उन्होंने एक वीडियो बनाकर यूट्यूब पर अपलोड किया है। इसमें उन्होंने वैज्ञानिक तरीक़े से रामदेव के सवालों का जबाव देते हुए तीखे तंज भी किए हैं । आयुर्वेद व योग पर किसी भी मंच पर संस्कृत भाषा में खुली बहस की चुनौती देते हुए उन्होंने कहा है कि उत्तराखंड  रामदेव की कर्मभूमि है, इसलिए उन्हें जबाव भी यहीं से मिलना चाहिए। यह अलग बात है कि इनमें ज्यादातर सवाल जबाव देने लायक भी नहीं है। डॉक्टर बिष्ट ने कुछ बातें दिलचस्प ढंग से रखी हैं।

क्योंकि एलोपैथी विज्ञान है

स्वामी रामदेव ने पूछा था कि यदि एलौपैथी सर्वशक्तिमान है तो फिर कोरोना से चिकित्सक मर क्यों रहे हैं। इस पर डॉ. बिष्ट ने जबाव दिया है कि एलौपैथी कोई पैथी नहीं बल्कि विज्ञान है। विज्ञान का न कोई सगा और ना ही पराया होता है। ना ही विज्ञान की कोई अपनी संस्कृति होती है। विज्ञान सभी के लिए बराबर है।

स्वामी अमर होते होंगे लेकिन डॉक्टर तो इंसान हैं!

उन्होंने कहा कि डाक्टर भगवान नहीं, बल्कि इंसान हैं। अन्य इंसानों की तरह उनका शरीर भी उन्हीं कोशिकाओं से बना होता है, जो जीवाणु या विषाणु से संक्रमित हो सकती हैं। हां, स्वामी लोग ईश्वर पुरुष हैं और शायद अमर रह सकते हैं। पर डाक्टर कोरोना से जूझेंगे भी, मरेंगे भी और अपने मरीजों को बचाएंगे भी।

शायद भक्त कम हो गए बाबा के!

उन्होंने व्यंग्य करते कहा है कि कोरोनाकाल में शायद स्वामी रामदेव के भक्त कम हो गए हैं। इसलिए वह चाहते हैं कि चिकित्सक उनकी चर्चा करें। उन्होंने कहा कि धनबल, लोकप्रियता आदि में वह बेशक हमसे काफी आगे हैं, लेकिन इस तरह की घुसपैठ का कोई फायदा उन्हें नहीं होने वाला क्योंकि चिकित्सक थोड़े स्वार्थी होते हैं। उनका पहला स्वार्थ पेशा और दूसरा मरीज हैं। इस तरह की बातों के लिए उनके पास समय नहीं है। वह एकाध दिन गुस्सा जरूर होंगे और फिर सब भूल जाएंगे। आप फिर ऐसी कोई बात करेंगे तो वह वापस पलटकर भी नहीं देखने वाले। कुछ चिकित्सक आपको मानते भी होंगे तो वह अब ध्यान देना भी छोड़ देंगे।

हिंसा रोकने की दवा है तो पहले खुद खाएं

इसी तरह स्वामी रामदेव के क्रूरता व हिंसा को रोकनी की दवा के बारे में पूछने पर डॉ. बिष्ट ने कहा है कि इसकी एलोपैथी में कोई दवा नहीं है। यदि आयुर्वेद में है तो उसका सबसे पहले प्रयोग स्वामी रामदेव को अपने ऊपर करना चाहिए और फिर उनके अंधभक्तों पर किया जाना चाहिए ताकि उन्होंने एलोपैथी से जुड़े चिकित्सकों पर जो जुबानी हिंसा की है उसका स्थाई इलाज हो सके।

फिर तो 25 बार नोबेल प्राइज मिलना चाहिए

जिन बीमारियों के स्थाई समाधान की बात बाबा कर रहे हैं, यदि वह सही और प्रमाणिक हैं तो उन्हें 25 बार लगातार नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए और विश्व के प्रथम नागरिक का दर्जा भी मिलना चाहिए।

चांद मंगल  पर लें रामदेव की मदद

ऑक्सीजन सिलेंडर के बिना ऑक्सीजन बढ़ाने उपाय उन्होंने खोजे हैं। चांद व मंगल ग्रह पर कालोनी बनाने की जो बात की जा रही है, वहां स्वामी जी की मदद ले ली जाय। उन्हें इयोन मस्क से मिल कर वहां कॉलोनी बसाने में मदद करनी चाहिये। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें बाबा रामदेव कह रहे थे कि-चारों तरफ ऑक्सीजन ही ऑक्सीजन का भंडार है, लेकिन मरीजों को सांस लेना नहीं आता है और वे नकारात्मकता फैला रहे हैं कि ऑक्सीजन की कमी है। रामदेव ने कहा था कि जिसका भी ऑक्सीजन स्तर गिर रहा है उसे ‘अनुलोम विलोम प्रामायाम’ और ‘कपालभाती प्राणायाम’ करना चाहिए।

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