लक्षद्वीप के प्रशासक बनकर गए गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री प्रफुल खोडा की नीतियों ने कैसे शांत टापू पर तूफान खड़ा कर दिया

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अतीक खान :


लक्षद्वीप, भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित राज्य है. जिसकी आबादी कोई 70 हजार के आस-पास है. आमातौर समंदर की तरह शांत रहने वाले इस टापू पर बेचैनी का आलम है. वो इसलिए क्योंकि लक्षद्वीप के प्रशासक प्रफुल खोडा पटेल कुछ नई नीतियां बना रहे हैं, जो स्थानीय लोगों को अहितकारी लग रही हैं. पिछले कई दिनों से ट्वीटर पर ‘सेव लक्षद्वीप’ ट्रेंड करने के बाद अब ये मुद्दा राजनीतिक विमर्श के केंद्र में आ चुका है. और कांग्रेस ने प्रफुल्ल खोडा को विशुद्ध राजनीतिक शख्सियत बताते हुए उनकी नियुक्ति पर ही सवाल खड़ा कर दिया है.

इसलिए पहले प्रफुल खोडा पटेल की पृष्ठभूमि पर बात करते हैं. पटेल संघ बैकग्राउंड से आते हैं. इनके पिता खोडाभाई रंचोड़भाई पटेल आरएसएस के नेता थे. प्रफुल खोडा पटेल ने 2007 में गुजरात की हिम्मतनगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. और 2010 में वह गुजरात में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार में गृहराज्य मंत्री रहे थे. उस वक्त गुजरात के गृहमंत्री अमित शाह हुआ करते थे.

5 दिसंबर 2020 को मोदी सरकार ने प्रफुल खोडा को लक्षद्वीप का 35वां प्रशासक नियुक्त किया. इसके बाद से ही इस शांत द्वीप पर अशांति के मेघ मंडराने लगे. लक्षद्वीप के सांसद मुहम्मद फैजल का आरोप है कि प्रशासक बनते ही पटेल अपना एजेंडा राज्य पर थोपने लगे.


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सबसे पहला जो काम उन्होंने किया, वो ये कि राज्य में लागू कोविड की बंदिशों को हटा दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोविड की पहली लहर में लक्षद्वीप संक्रमण मुक्त था. इसलिए क्योंकि बाहर से आने वालों को पहले सात दिन क्वारंटाइन किया जाता था. बाद में टेस्ट किया जाता. इस तरह लक्षद्वीप में एंट्री दी जाती थी. पटेल ने व्यवस्था खत्म कर दी. इसका नतीजा ये हुआ कि 24 मई तक लक्ष्य द्वीप में संक्रमण के 6,8497 केस थे. राज्य में आबादी के लिहाज से संक्रमण की दर काफी ऊंची है.

पटेल यहीं नहीं रुके. उन्होंने राज्य में शराब पर लागू प्रतिबंध हटा दिए. और गौमांस पर प्रतिबंध लगा दिया. यहां तक कि स्कूल में बच्चों को दोपहर में दिए जाने वाले मिड डे मील की खुराक से भी मांसाहार खत्म कर दिया गया. इसके अलावा केरल के बेपोर और कोचीन बंदरगाह से संबंध खत्म कर न्यू मैंगलोर बंदरगाह से नाता जोड़ा. इस सबको लेकर स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ जबरदस्त नाराजगी है.

प्रशासन पर आरोप है कि उसने मछुआरों के तटीय शेड को भी ध्वस्त कर दिया है. ये कार्रवाई तटरक्षक अधिनियम के अंतगर्त वैध ठहराई जा रही है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन राज्य पर हिंदुत्ववादी एजेंडा थोप रहा है. जिसका यहां के लोगों की आजीविका पर काफी नाराकत्मक असर पड़ेगा द्वीप होने के नाते यहां मांसाहार ही लोगों का प्रमुख भोजन है.


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ट्वीटर पर लक्षद्वीप ट्रेंड कर रहा है. राज्य के घटनाक्रम पर विपक्ष भी नजर बनाए है. कांग्रेस नेता अजय माकन ने प्रफुल खोडा की नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं. चूंकि खोडा लक्षद्वीप के साथ दादरा और नागर हवेली के भी प्रशासक हैं. माकन ने कहा कि ये पद प्रशासनिक अधिकारी का है. लेकिन खोडा, जोकि गुजरात जैसे बड़े राज्य के गृह राज्यमंत्री रह चुके हैं. उन्हें प्रशासक बनाया जाना, प्रोटोकॉल का उल्लंघन है.

माकन के मुताबिक प्रशासक के रूप में खोडा को केंद्रीय गृह मंत्रालय के ज्वॉइंट सेक्रेटरी को रिपोर्ट करनी होती है. जबकि वह खुद गृह विभाग संभाल चुके हैं. ऐसे में उन्हें प्रशासक बनाकर ज्वॉइंट सेक्रेटरी के अधीन किया जाना, उचित नहीं है.

माकन ने कहा कि ऐसा केवल इसलिए है क्योंकि खोडा को अपने राजनीतिक आकाओं की सोच को पूरा करना है. अभी दादरा नागर हवेली और लक्षद्वीप, दोनों जगहों पर भाजपा के कोई सांसद नहीं हैं. और प्रशासक के रूप में खोडा वहां पार्टी के लिए जगह बनाना चाहते हैं.

सांसद की मौत में उछला था खोडा का नाम

दादरा एवं नागर हवेली के सांसद मोहन सांझीभाई डेलकर फरवरी में मुंबई के मरीन ड्राइव स्थित एक होटल में मृत पाए गए थे. उनकी मौत को आत्महत्या माना गया था. चूंकि मोहन के कमरे से 15 पेज का एक सुसाइड नोट बरामद हुआ था. सांसद की मौत मामले में प्रशासक प्रफुल खोडा का भी नाम सामने आया था. ये आरोप लगा था कि उन्होंने सांसद को अपमानित किया था. माकन ने भी सांसद मौत मामले में खोडा के नाम सामने आने का जिक्र किया है. बहरहाल अब लक्षद्वीप पर सबकी नजरें टिक गई हैं.

 

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