UP Politics : ‘कभी खुले आसमान पर वो लिख देते थे संदेशे, अब किसी और के पते पर बंद लिफाफे आते हैं’ : अखिलेश यादव

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यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और पूर्व सीएम अखिलेश यादव.

द लीडर : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आमतौर पर किसी दूसरे राजनीतिक दल के अंदरूनी पचड़ों पर बयानबाजी से दूर रहते हैं. लेकिन इस वक्त यूपी की सत्ताधारी पार्टी में या उसे लेकर जो राजनीतिक तापमान चढ़ा है. उसको लेकर बड़े फेरबदल की अटकलें लगाई जा रही हैं. इस बीच अखिलेश यादव ने सोमवार को एक शेर कहा है-, ” कभी खुले आसमान पर वो लिख देते थे ‘संदेशे’, अब किसी और के पते पर बंद लिफाफे आते हैं. ”

अब आप ये अंदाजा लगा सकते हैं कि अखिलेश यादव ने ये शेर किसे नज्र (संबोधित) किया है. दरअसल, दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जन्मदिना था. भाजपा के छोटे-बड़े सभी नेताओं ने उन्हें बधाई दी. लेकिन ट्वीटर या फेसबुक पर जिनके बधाई संदेशे नजर नहीं आए हैं. वे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह.

भाजपा के इन चोटी के नेताओं के बधाई संदेशे न आने पर राजनीतिक ताप बढ़ना वाजिब है. सो, तमाम मीडिया संस्थानों ने इस पर खबर भी बनाई. चूंकि 23 मई को प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा ने आगामी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बैठक की थी.

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के यहां आयोजित बैठक में मौजूद पार्टी के वरिष्ठ नेता. फोटो-साभार बीजेपी ट्वीटर

दूसरी ओर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले भी चुनावों को ध्यान में रखते हुए भाजपा की थाह ले रहे हैं. इसी क्रम में पार्टी के महासचिव बीएल संतोष को दूत बनाकर लखनऊ भेजा गया. वह लखनऊ आए. मंत्री विधायकों से बातचीत की. संगठन के नेताओं से भी फीडबैक लिया.

एक तरफ भाजपा यूपी का हाल जान रही है तो दूसरी ओर संघ भी सक्रिय है. ये सारी कसरत इसलिए भी है, क्योंकि संक्रमण की दूसरी लहर को राज्य सरकार ठीक से ढील नहीं कर पाई. और पंचायत चुनावों में भी उसका प्रदर्शन असंतोषजनक रहा था.

इसी 3 से 5 जून तक दिल्ली में संघ के शीर्ष पदाधिकारियों की बैठक होती है. जिसमें संघ सरचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले, सर कार्यवाह कृष्ण गोपाल, अरुण कुमार, रामदत्त, डॉ. मनमोहन वैद्य, मुकुंद सीआर, भैयाजी जोशी, रामदत्त चक्रधर समेत अन्य लोग शामिल होते हैं. दूसरी ओर जेपी नड्डा के यहां पार्टी के राष्ट्रीय महासचिवों और भाजपा के प्रदेश प्रभारियों की बैठकें चल रही होती हैं. ये सारी कसरत यूपी चुनाव के मद्देनजर है.


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इस सबके बीच ही यूपी को लेकर तमाम तरह की कयासबाजी का दौर बना है. ये आशंका तब से और बढ़ गई है, जब मुख्यमंत्री को पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा सोशल मंचों पर बधाई नहीं दी गई. इससे तमाम सियासी प्रश्न पैदा हुए हैं. जाहिर है कि राज्य की विपक्षी-समाजवादी पार्टी इस पूरे घटनाक्रम पर पैनी नजर बनाए हुए है.

यही वजह है कि जब भाजपा में यूपी को लेकर मंथन और अटलकें उफान पर थीं. तब 3 जून को अखिलेश यादव एक और शेर अर्ज करते हैं-, ”दिल्ली व लखनऊ के बीच फंस गए दूत, इधर एक मनाते हैं तो दूजे जाते हैं रूठ, दरार-रार पाटने के वास्ते ट्वीट करते झूठ.”

दरअसल, अखिलेश यादव के ट्वीटर हैंडल को ठीक से देखें तो वे शायरना अंदाज में सत्ताधारी पार्टी पर तीखा कटाक्ष करते आए हैं. बीती 31 मई को उन्होंने एक ट्वीट किया-, ” पेट्रोल, डीजल, एलपीपजी और दाल, सरसों, दूध और घी है, महंगाई ने कमर तोड़ दी, फिर भी कहें सब चंगा सी.”


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अखिलेश आगे कहते हैं-सुना है 30 दिनों में पेट्रोल और डीजल के दाम 16 बार बढ़े हैं. लगता है सेंट्रल विस्ता के प्रधान-निवास, कार्यालय, महाविमान व भाजपाई चुनाव खर्च का बोझ जनता के टैक्स के कंधों पर आ गया है.

अगले साल यूपी में चुनाव है. समाजवादी पार्टी बड़ी खामोशी के साथ जमीन पर काम करने में जुटी है. दूसरी ओर भाजपा में फेरबदल की अटकलों का आलम है.

 

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