आजादी के 74 साल बाद पहली बार UP के माधवगंज गांव में दुल्हा निकासी में घोड़ी चढ़ेंगे अनुसूचित जाति के अलखराम

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द लीडर हिंदी : एमएक्स प्लेयर की चर्चित वेब सीरीज आश्रम तो आपने देखी ही होगी. जिसमें दिखाया गया था कि किसी तरह एक गांव में ऊंची जाति के लोग अनुसूचित जाति के एक युवक के बरात में घोड़ी चढ़ने का निर्णय लेने पर उसका विरोध करते हैं. धमकाते हैं.

खैर, वो तो रील लाइफ थी लेकिन असल जिंदगी भी से जुदा नहीं है. आजादी के बाद देश में संविधान लागू हुआ. देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए. लेकिन देश के ग्रामीणों अंचलों में अशिक्षा के चलते आज भी समाज की घिसी-पिटी पुरानी सोच में बदलाव नहीं आया है.

उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के माधवगंज गांव से सामने आया हालिया मामला ही देख लें. जहां एक अनुसूचित जाति के युवक अलखराम ने पुरानी परंपरा को तोड़कर बरात में घोड़ी चढ़ने का निर्णय लिया तो उसे गांव के दबंगों से गला काटने और पूरे परिवार को अंजाम भुगतने की धमकी मिलने लगी.

मगर अलखराम को भारतीय संविधान पर पूरा भरोसा है और अपना हक पाने के लिए उसने थाना पुलिस और एसपी को पत्र देकर सुरक्षा की मांग की है. अलखराम अपने गांव के पहले अनुसूचित युवक होंगे जो आजादी के 74 साल बाद 18 18 जून को बरात में घोड़ी पर चढ़ेंगे.

ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहा घोड़ी चढ़ेगा अलखराम

उसने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए लिखा है कि बुंलेदखंड में ऐसा कोई राजनीतिक संगठन या पार्टी है जो दलित को घोड़ी चढ़ने का अधिकार दिला सके. इस पर सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत कांग्रेस, सपा और भीम आर्मी जैसी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से उसे मदद का आश्वासन मिलना शुरू हो गया है. रविवार को #घोड़ी_चढ़ेगा_अलखराम ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहा था.

द लीडर हिंदी को फोन पर बताया पूरा मामला

जब मामले की जानकारी ने के लिए द लीडर हिंदी की टीम ने अलखराम से फोन पर संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि मैं अनुसूचित समाज से ताल्लुक रखता हूं. गांव में चली आ रही पुरानी परंपरा और रीति-रिवाज के हिसाब से अनुसूचित जाति के लोगों को बरात निकासी के समय घोड़ी या किसी वाहन पर बैठने नहीं देते हैं.

मैंने गांव के कुछ लोगों से पूछा कि ये तो पुराने रीति-रिवाज हैं, अब समाज शिक्षित हो गया है. भारत के संविधान में समानता का अधिकार दिया गया है तो मैं भी चाहता हूं कि पैदल न निकल कर वाहन या घोड़ी पर चढ़कर बरात निकासी करूं. तो उस दिन कुछ नहीं हुआ, लेकिन अगले दिन धमकियां आने लगी. गांव के दबंग लोग आपस में ही धमकी देने लगे कि अगर अलखराम अगर घोड़ी पर चढ़कर निकलता है तो हम उसे जान से मार देंगे. उसका सिर काट देंगे और चली आ रही पुरानी परंपराओं को तोड़ेंगे तो हम बरातियों पर भी लाठी-गोली चलाएंगे.

मेरे साथ है पुलिस प्रशासन

इसके बाद मैंने पुलिस प्रशासन को इसकी लिखित सूचना दी. 1 जून को मैंने थाना प्रभारी और 2 जून को एसपी को मामले की जानकारी दी. इसके बाद मैंने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके राजनीतिक पार्टियों से मदद की गुहार लगाई. फिर राजनीतिक पार्टियां आने लगी. भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष आए और उन्होंने मदद का आश्वासन दिया. फिर कांग्रेस, सपा और भाजपा के विधायक का भी हर संभव मदद के लिए फोन आया था.

मामले में पुलिस का रिस्पांस कैसा रहा, इस सवाल का जवाब देते हुए अलखराम ने बताया कि थाना प्रभारी ने आश्वासन दिया है कि बरात निकासी में मैं घोड़ी पर चढ़कर जा सकता हूं और मेरे साथ पुलिस प्रशासन है.

ये सोचकर बहुत दुख होता है कि हिंदू भाई ही हमारा विरोध कर रहे हैं 

गांव में कौन दबंग लोग धमकी दे रहे हैं, ये सवाल पूछने पर अलखराम ने बताया कि है तो हिंदू भाई ही, मगर जाति में कुछ यादव और कुछ परिहार (क्षत्रिय) से ताल्लुक रखते हैं. हमारे हिंदू भाई ही हमारा विरोध कर रहे हैं ये सोचकर बहुत दुख होता है. एक समय था राजा-महाराजा का, जब अनुसूचितों पर अत्याचार होते थे. मगर आज हम आजाद देश में रहते हैं. संविधान में सभी को समान अधिकार दिए गए हैं.

मेरे समाज के लोग ही मेरा विरोध कर रहे

मुझे इस चीज का भी दुख है कि मेरे समाज के लोग ही मेरा साथ देने के बजाय उनका साथ दे रहे हैं. मेरा विरोध खुद कर रहे हैं. आज मेरे आसपास के जो व्यक्ति है क्योंकि मेरा मामला कुछ ज्यादा बढ़ गया इसलिए बगल में मेरे समाज का युवक भी चाहता है कि अपनी दूल्हा निकासी घोड़ी पर करें. मैं मध्यप्रदेश के बार्डर पर ििस्थत गांव में रहता हूं तो एमपी के भी दो गांव है सरसी और कैथो करके. सरसी में सुनील नाम का युवक और कैथो गांव का भी एक युवक दूल्हा निकासी के समय घोड़ी की मांग कर रहे हैं. सुनील की शादी 10 जून को होनी है.

समाज में एक जागृति आ रही

देखिए… अब समाज में भी एक जागृति आ रही है. वो अपने हक और अधिकारों की मांग कर रहे हैं. संविधान में जो उन्हें समानता का अधिकार दिया गया है वह उसे मांग रहे हैं.

दिल्ली में प्राइवेट जॉब करते हैं अलखराम

अलखराम ने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा हासिल की है. वह दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी जॉब करते हैं. फिलहाल वह शादी की तैयारियों को लेकर गांव में रह रहे हैं. उनके परिवार में माता-पिता के अलावा एक छोटा भाई है. उनकी तीन बहनें भी है, सभी की शादी हो चुकी है.

माधवगंज में है करीब 900 लोगों की आबादी

माधवगंज गांव की बात करें तो वहां करीब 900 लोगों की आबादी रहती है. इसमें सबसे ज्यादा यादव बिरादरी के लोग रहते हैं. इसके अलावा परिहार यानी ठाकुर बिरादरी के परिवार भी काफी संख्या में रहते हैं. इस गांव में अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या करीब 100 है.

सामाजिक कुरीतियों में आज भी उलझे हैं मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं. इनमें समानता, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अभिव्यक्ति की आजादी शामिल है. आजादी के 74 वर्षों के बाद भी अलखराम जैसे देश के युवा नागरिक को बरात में घोड़ी चढ़ने के लिए समाज से संघर्ष करना पड़ रहा है. यह संविधान की मूल भावना को ठेस पहुंचाने जैसा है. फिलहाल, अलखराम ने समाज की पुरानी सोच को करारा जबाव देने की तैयारी कर ली है. वह 18 जून को अपनी शादी के दिन दूल्हा निकासी घोड़ी पर चढ़कर करेंगे.

राजनीतिक पार्टियों से मिल रहा समर्थन

बरात में घोड़ी चढ़ने की ख्वाहिश पूरी हो सके, इसके लिए तमाम राजनीतिक दल के नेता अलखराम के लगातार संपर्क में हैं. उनकी शादी में भीम आर्मी के बुंदेलखंड प्रभारी कौशल वाल्मीकि और जिलाध्यक्ष सिकंदर बुद्ध शिरकत करेंगे. भीम आर्मी के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनय रतन और आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर को उन्हाेंने अपनी शादी का आमंत्रण पत्र भी भेजा है. कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव प्रदीप नरवाल भी उनका समर्थन कर चुके हैं. उन्होंने इस संबंध में ट्वीट भी किया था, जिसे रीट्वीट करते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने लिखा था कि कांग्रेस हर कदम पर पीड़ित, शोषित और वंचितों लोगों के साथ खड़ी है.

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