कयामत जैसे हालात हैं, खुदारा करम, बेहद गमगीन हैं प्रोफेसर वसीम बरेलवी

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वसीम अख्तर

वह शब्दों के जादूगर हैं. उन्हें सदियों के फासले को दो लाइन में बयां करने का हुनर आता है. जितने अच्छे शायर उससे कहीं शानदार वक्ता. जिंदगी के किसी गोशे पर बात करें, जानकारी के कायल हुए बगैर नहीं रह पाएंगे. चीजों को बहुत ही दूरदर्शिता के साथ साफ कर देते हैं. अपने ही इस शेर की तरह-कौन सी बात कहां कैसे कही जाती है, यह सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है. जटिल से जटिल मसला रखें, सवाल करने वालों को लाजवाब कर देते हैं.

81 बरस की जिंदगी में हिंदुस्तान के तमाम अच्छे-खराब दौर देखे हैं. गदर के दौरान कुछ वक्त रामपुर जाकर गुजारा. इमरजेंसी की सख्ती का सामना किया. कभी कोई शिकवा नहीं किया. हालात को जिस तरह देखा वैसा नर्म अंदाज में बयां कर दिया. जब कभी दंगे भड़के झुलसने की परवाह किए बगैर नफरतों के शोले बुझाने सड़कों पर निकल आए. चाहे किसी धर्म या मजहब का मानने वाला हो, उसे मुहब्बत का दर्स दिया. यही अंतररराष्ट्रीय शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी कोरोना वायरस की दूसरी लहर में बेहद गमगीन हैं. द लीडर ने उनकी खैरियत जानने के लिए फोन किया तो चंद बातों में बहुत कुछ कह गए.


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वसीम साहब कहने लगे-हालात अच्छे नहीं दिख रहे. हर तरफ मौत का मंजर है. आजादी के इतने बरस बाद भी हम आबादी के एतबार से चिकित्सा के इंतजाम नहीं कर सके. अस्पताल छोटे और बेड कम पड़ रहे हैं. मरीजों की तादाद बहुत ज्यादा है. अपने अजीज को लेकर तिमारदार एक अस्पताल से दूसरे, तीसरे और चौथे में भटक रहे हैं. कुछ को मदद मिल जा रही है. बहुत से मायूस होकर थक जा रहे हैं. सबसे खराब बात यह कि इस खराब दौर में भी वसूली की शिकायतें सुनने को मिल रही हैं. दवा की कालाबाजारी, नकली इंजेक्शन बनाने, बेचने का शोर सुन रहा हूं.

फिक्रमंद होकर खुद से सवाल करता हूं-यह हमें क्या हो गया है? जब इंसान ही नहीं बचेंगे तो गलत तरीके से कमाया गया पैसा किस काम आएगा. कहां गए हमारे संस्कार, जो हमारे पुर्खे हमें सहेजने के लिए दे गए थे. क्यों हमारा जमीर हमें लज्जित नहीं कर रहा कि यह वक्त लोगों की मदद करने का है. पैसा है तो उससे और अगर शरीर में जान है तो श्रम से. इस वक्त किसी की जान बचाने का जरिया बनने से बेहतर दूसरा कोई काम नहीं हो सकता.


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वसीम साहब ने कहा-अब तो बस मैं यही कह सकता हूं, खुदारा करम, कयामत जैसे हालात अब और नहीं देखे जाते. अपने अल्लाह से, खुदा से, ईश्वर से यही दुआ है कि कब्रिस्तानों और श्मशानों में लंबी लाइन के नजारे अब और नहीं देखे जाते, ये बदल जाएं. बता दें कि वसीम बरेलवी ने अपनी विधायक निधि की पूरी रकम भी कोरोनाकाल में मरीजों के लिए चिकित्सा इंतजाम बेहतर बनाने के लिए दे दी है.

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