‘पूरा देश एक पोल्ट्री फार्म की तरह है, और हम सब मुर्गियां ‘: मौजूदा दौर को बयां करतीं शुभ्रदीप’ की फिल्में

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shubhradeep chakarvorty: file photo
मनीष आज़ाद-

जब ‘इमरजेंसी’ की बरसी मनाई जा रही थी और आज के हालात की इमरजेंसी के दौर से तुलना की जा रही थी, तो एक फिल्मकार बहुत शिद्दत से याद आ रहा था। यह फिल्मकार है- ‘शुभ्रदीप चक्रवर्ती’। अगस्त 2014 में महज 42 साल की उम्र में मृत्यु हो जाने के पहले शुभ्रदीप ने अपनी दस्तावेजी फिल्मों के माध्यम से आज के फासीवादी दौर के प्रत्येक चरण को जिस साहस और बेबाकी से अपने कैमरे में कैद किया है, वह इस दौर को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

शुभ्रदीप चक्रवर्ती की पहली ही फिल्म ने लोगो का ध्यान खींचा था। यह फिल्म थी – ‘Godhra Tak: The Terror Trail’ इस डाक्यूमेन्ट्री में उन्होंने साफ साफ स्थापित किया कि साबरमती एक्सप्रेस के बोगी एस-6 में आग बाहर से नहीं बल्कि अंदर से लगी थी।

गोधरा कांड की जांच करने के लिए जब ‘बैनर्जी कमेटी’ बनी थी तब इस फिल्म को भी एक सबूत के तौर पर बैनर्जी कमेटी में शामिल किया गया था। इस फिल्म के प्रदर्शन के दौरान अहमदाबाद और जयपुर में उन पर हिन्दूवादी संगठनों ने हमले भी किये। एक बार तो उन्हे गिरफ्तार भी कर लिया गया था। हालांकि बाद में सबूतों के अभाव में उन्हे छोड़ दिया गया।

उनकी दूसरी फिल्म थी- ‘Encountered on Saffron Agenda‘। इसमें उन्होने गुजरात के फर्जी मुठभेड़ ( गुजरात पुलिस ने 2002 में समीर खान पठान, 2003 में सादिक जमाल, 2004 में इशरत जहां व जावेद शेख तथा 2005 शोहराबुद्दीन शेख को फर्जी मुठभेड़ में मार डाला था।) का पर्दाफाश किया था।

उनकी तीसरी फिल्म थी- ‘Out of Court Settlement‘ यह फिल्म ‘शाहिद आजमी’ (शाहिद आजमी पर तो फीचर फिल्म भी बन चुकी है।) जैसे उन तमाम वकीलों पर है जो निर्दोष मुस्लिमों का केस लड़ने और उन्हे अनेकों तरह की सहायता पहुंचाने के कारण हमेशा हिन्दुवादी संगठनों की हिट लिस्ट में रहते हैं। आपको पता ही होगा कि शाहिद आजमी की तो इसी कारण हत्या तक कर दी गयी थी।

उनकी चौथी फिल्म थी-‘After the Storm‘ यह फिल्म उन नौजवान मुस्लिमों पर है जो कोर्ट से तो बरी हो चुके हैं लेकिन जिंदगी को शुरु करने में उनका अतीत उनका पीछा नही छोड़ रहा है।

इसी फिल्म में 3 साल कैद के बाद बाइज्जत बरी हुए एक मुस्लिम से जब शुभ्रदीप यह सवाल पूछते हैं कि पुलिस आप जैसे निर्दोष लोगों को क्यों गिरफ्तार करती है? तो उस मुस्लिम नौजवान का जवाब आपको अंदर तक हिला देता है।

मुस्कुराते हुए वह कहता है- ‘पूरा देश एक पोल्ट्री फार्म की तरह है। और हम सब मुर्गियां हैं। सरकार इस पोल्ट्री फार्म की मालिक है। जब भी उसे भूख लगती है वह एक मुर्गी उठा लेती है।’ आज के दौर पर यह कितनी सटीक टिप्पणी है।

‘En Dino Muzaffarnagar’ उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई। लेकिन शायद यही फ़िल्म उनकी मौत का कारण भी बनी। शुभ्रदीप चक्रवर्ती को श्रद्धांजलि देते हुए मशहूर फिल्मकार आनंद पटवर्धन ने जो कहा, उससे इसके संकेत मिलते है। उन्होंने कहा- ‘शुभ्रदीप बहुत ही डिप्रेशन में थे क्योकि उनकी फिल्म को ‘सीबीएफसी’ ने पास करने से इंकार कर दिया था।’ कोर्ट से क्लीन चिट मिल जाने के बाद भी किसी न किसी बहाने इस फ़िल्म को पास नहीं किया गया’।

मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रतिबंधित होने वाली यह पहली फ़िल्म थी। शुभ्रदीप चक्रवर्ती की पार्टनर और फिल्म-मेकर मीरा चौधरी ने अपने एक हालिया इंटरव्यू में इस फ़िल्म को पास कराने के लिए अपने और शुभ्रदीप के संघर्षों का विस्तार से वर्णन किया है।

उनके अनुसार, ‘भाजपा के पिछले 6 सालों के कार्यकाल में करीब ऐसी ही 100 फिल्मों को प्रतिबंधित किया गया है। इन्हीं सब कारणों से शुभ्रदीप अपने अंतिम दिनों में बेहद तनाव में थे। कहा जाता है कि यह ‘ब्रेन हैमरेज’ का एक बड़ा कारण बन गया। एक तरह से इस व्यवस्था ने ही एक बेहद संवेदनशील फिल्मकार की जान ले ली और इसके साथ ही कई महत्त्वपूर्ण संभावित फ़िल्म का भी गला घोंट दिया।’

‘शुभ्रदीप चक्रवर्ती’ उन फिल्मकारों में थे जिनकी फिल्में बहुत साफ तौर पर राजनीतिक होती हैं और तात्कालिक चुनौतियों से सीधे मुठभेड़ करती हैं। इसलिए वे हमेशा प्रतिक्रियावादी ताकतों के निशाने पर रहेे।

उनकी लगभग सभी फिल्में यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व कलात्मक फिल्म समीक्षक हैं)


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