दरगाह के मुफ्ती का बयान, आला हजरत ने गांधी से पहले शुरू कर दिया था असहयोग आंदोलन

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Eid Dargah Ala Hazrat

द लीडर. दरगाह आला हजरत पर दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हान रज़ा खां (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती व सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) की सदारत में फ़ाज़िले बरेलवी का 170 वां यौम-ए-पैदाइश (जन्मदिन) सादगी के साथ मनाया गया। इसे दुनियाभर में अकीदतमंदों ने ऑनलाइन सुना।


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इस कार्यक्रम की खास बात मुफ्ती मुहम्मद सलीम नूरी का बयान रहा, जिसमें उन्होंने नई बहस छेड़ने की कोशिश की. अपनी तकरीर में मुफ्ती सलीम ने कहा कि 1912 में ही अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग की आवाज बुलंद कर दी थी. कोलकाता में रहने वाले अपने खलीफा मुंशी लाल मुहम्मद खां के सवाल पर फतवा दिया दिया था, जिसमे अंग्रेजों के जजों को जज, हाकिमों को हाकिम, अंग्रेजों की कचहरी को कचहरी और उनके बनाए कानून को मानने से साफ इंकार कर दिया.


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आला हजरत ने फतवे में मुसलमानों से कहा कि अंग्रेजों की कोर्ट-कचहरी में अपना पैसा हरगिज़ खर्च न करें। उनकी बनाई चीजों का इस्तेमाल भी नहीं करें. अंग्रेजों के खिलाफ आला हजरत की नफ़रत का यह आलम था कि आप जब भी डाक टिकट का इस्तेमाल करते, मल्लिका-ए-विक्टोरिया के फोटो को हमेशा उल्टा लगाते थे। उनके बैंक से लेनदेन की भी मनाही कर दी थी. अपने बैंक खोलने पर जोर दिया था.


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उस वक़्त आला हजरत ने मुस्लिम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उलमा, दानिश्वरों में इश्क-ए-रसूल की बदौलत जोश भरने और रूहानी खानकाहों और दारुल इफ्ता के वजूद खत्म होने से रोकने में अहम किरदार अदा किया था. बता दें कि महात्मा गांधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन 1920 में शुरू किया था. कार्यक्रम में दुनिया से कोरोना के खात्मे व खुशहाली की दुआ की गई। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि यौमे पैदाईश का जश्न कोविड नियमों का पालन करते हुए मनाया गया.

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