द लीडर हिंदी: क्यों थम गए तरक़्क़ी की दौड़ में ये बढ़े-बढ़े से क़दम, कभी सोचा है-शिकवे, शिकायतों के आगे जहां और भी हैं. वो जहां हम पहुंच नहीं पा रहे हैं. क्यों, इसलिए कि वहां जाने की कोशिश ही नहीं हो रही है. देश के 20 करोड़ से ज़्यादा मुसलमानों में वहां मौजूदगी दर्ज करा रहा है सिर्फ़ एक नौजवान, जहां से तक़दीर और तस्वीर बदलने का रास्ता हमवार होगा. द लीडर बग़ैर किसी लागलपेट आपको उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान लिए चलता है.
अगर वाक़ई चाहते हैं कि वो सब मयस्सर हो, जिसके शिकवे करते और मन में कसक लिए घूमते हैं, तो अपनी मेहनत, लगन, मशक़्क़त और जो कभी भी हार नहीं मानकर मज़बूत इरादों के बूते दीदावर कहलाए. प्रोफ़सर वसीम अख़्तर, जिन्होंने सरसय्यद अहमद ख़ान के बाद मुल्क को दूसरी बड़ी इंटीग्रेटेड यूनिवर्सिटी दी, IAS-IPS मेकर कहे जाने वाले जामिया मिल्लिया इस्लामिया की रेजिडेंशियल कोचिंग एकेडमी के हेड प्रोफ़ेसर आबिद हलीम, बरेली से लेकर लखनऊ और सीबीआई तक ड्यूटी की नई इबादत और ईमानदारी का सबक़ बने सूबे के पूर्व डीजीपी जावीद अहमद, मुनफ़रिद मिसालों से बहुत से ज़्यादा सुने और देखे जाने वाले कीजीएमयू के डॉ. कौसर उसमान, अपनी बात को यहां से शुरू करने वाले कि अल्लाह ने अपने रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जिनकी हम उम्मत हैं. उनसे पहला लफ़्ज़ ही कहा- पढ़ो. इल्म के सबब ही मुसलमानों ने दुनियाभर में तरक़्क़ी नया बाब लिख दिया.
इन दारुल उलूम नदवातुल उलेमा के रिएक्टर मौलाना बिलाल अब्दुल हई हसनी से रूबरू कराते हैं. इनके बाद इस बेहद शानदार महफ़िल के रूह-ए-रवां ग्रेविटी कोचिंग क्लासेज़ लखनऊ के डायरेक्टर मुहम्मद अशफ़ाक़ और एसोसिएशन ऑफ मुस्लिम प्रोफे़शनल AMP के प्रेसीडेंट मुनीर इदरीसी से भी मिलवाएंगे. कहीं जाइएगा नहीं. प्रोग्राम को देखकर और स्पीकर को सुनने के बाद समझ में आ गया होगा कि हमें करना क्या है, कहां उलझे हुए हैं. अपने देखने वालों से हमारी गुज़ारिश है कि इल्म के इन समंदर से क़ौम को सैराब करने के लिए हमारे इस वीडिया को ज़रूर शेयर कीजिए और वक़्त की पुकार को संजीदगी से सुनने की कोशिश कीजिए. बहुत देर हो चुकी, ख़ुदाया-अब बढ़े बनने के लिए वहां तक पहुंचिए और पहुंचाइए, जहां कि ये शख़्सियत पहुंचने के लिए कह रही हैं.
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