आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा देश : लेकिन क्या आप ‘राष्ट्रीय ध्वज’ बनने और उसके ‘डिजाइनर’ की कहानी जानते हैं ?

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द लीडर। भारत को अंग्रेजों से आजादी मिले 75 साल पूरे होने जा रहे हैं। जिसे लेकर आज देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। और हर घर तिरंगा लगा रहा है। क्या आप जानते हैं कि, किसी भी देश का ध्वज उसका चेहरा और उसकी पहचान होती है। राष्ट्र को ऊर्जा के सूत्र में बांधने वाला प्रतीक, राष्ट्रीय ध्वज ही होता है। भारत के स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर हर घर में तिरंगा फहराने की तैयारी हमारे देश में चल रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों में करोड़ों तिरंगे बनाए जा रहे है। लेकिन इन सबके बीच एक चेहरा है। जिसे हम और आप भूल चुके है। और वो चेहरा उस डिजाइनर का है। जिसने राष्ट्र ध्वज को डिजाइन किया था।


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आपसे एक सवाल है क्या आप पिल्ली वैंकैया को जानते है। और अगर नहीं जानते तो भारत के हर घर तिरंगा अभियान में शामिल होना बेकार है। तिंरगा फहराने से पहले इस व्यक्ति के बारे में जानिए। तिरंगा बनने की कहानी और उसके डिजाइनर नायक की कहानी। देश के हर उस परिवार को पता होनी चाहिए जो 13 से 15 अगस्त के बीच अपने घर में तिरंगा फहराने की तैयारी कर रहा है।

पिंगली वेंकैया ने तैयार किया तिरंगे का मूल डिजाइन

हमारा राष्ट्रध्वज अन्य देशों की भांति बेहद अलग और अनोखा है। जो तिरंगा देश की आनबान और शान का प्रतीक है। उस तिरंगे का मूल डिजाइन पिंगली वेंकैया ने ही तैयार किया था। पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र पदेश के मछली पटनम शहर में हुआ। मद्रास से अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी चले गए। भारत लौटने के बाद उन्होंने एक रेलवे गार्ड के रूप में और फिर बेल्लारी में एक सरकारी कर्मचारी के रूप में काम किया।

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा

युवा अवस्था में उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना के रूप में युद्ध लड़ने के लिए दक्षिण अफ्रीका भेजा गया। युद्ध के दौरान उन्होंने देखा की ब्रिटिश सैनिकों में राष्ट्रीयता की भावना भरने में उनके ध्वज यूनियन जैक की एक बहुत बड़ी भूमिका है। वो उन्हें इंसपायर करता है। इस बात से वो इतना प्रभावित हुए कि, वो भारते के लिए भी एक राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना कर ली। पिंगली वेंकैया भारत के लिए एक ऐसा ध्वज बनाना चाहते थे। जो देश के इतिहास को दर्शाए और उसकी आत्मा का प्रतीक बने।

इसके लिए उन्होंने 1916 से 1921 तक 30 से ज्यादा देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का अध्ययन किया। फिर वर्ष 1921 में विजयवाड़ा में हुए भारतीय कांग्रेस के अधिवेशन में पिंगली वेंकैया ने महात्मा गांधी को लाल और हरे झंडे का डिजाइन दिखाया। जिसमें लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता है। तब गांधी जी सुझाव पर उन्होंने शांति के प्रतीक सफेद रंग को भी राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। और इसमें चरखे को जोड़ा। क्योंकि महात्मा गांधी चरखे को ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ क्रांति का एक प्रतीक मानते थे।

चरखा भारतीय लोगों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है

महात्मा गांधी का कहना था कि, चरखा भारतीय लोगों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा देता है… और उस समय इस ध्वज को स्वाराज ध्वज कहा जाता था। इसके 10 साल बाद 1931 में कुछ बदलावों के साथ राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने का प्रस्ताव पास हो गया। जैसे कि झंडे में लाल रंग की जगह केसरिया रंग को जोड़ा गया। केसरिया रंग को त्याग, बलिदान और हिम्मत का प्रतीक माना जाता है।

साथ ही देश को केसरिया हरे और सफेद रंग की पट्टी पर चरखे वाला तिरंगा मिला। और फिर जुलाई 1947 में संविधान सभा में पिंगली वेंकैया के डिजाइन किए गए इसी तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया। लेकिन कुछ समय के बाद इस तिरंगे में कुछ बदलाव किए गए। इसमें चरखे को हटाकर अशोक चक्र शामिल किया गया। ये एक नीले रंग का चक्र था। जिसे धर्म चक्र भी कहते है। तब से तिरंगे का यही डिजाइन देश के गौरव का प्रतीक बना हुआ है।

50 वर्षों तक आजादी की लड़ाई में शामिल हुए पिंगली वेंकैया

पिंगली वेंकैया की पहचान सिर्फ तिरंगे के डिजाइनर के रूप में ही नहीं है। उन्होंने इसके अलावा भी बड़ी बड़ी उपलब्धियां हासिल की है। वो एक स्वतंत्रता सेनानी थे। महात्मा गांधी के साथ 50 वर्षों तक आजादी की लड़ाई में शामिल होकर लड़ाई लड़ी। वो एक देश के डायमंड माइनिंग के एक्सपर्ट भी थे। लोग इनको डायमंड वैंकेया भी कहते थे। उन्होंने कॉटन की किस्मों पर अलग-अलग रिसर्च की। इसलिए बहुत सारे लोग उन्हे पट्टी वैंकेया भी कहते थे।

पिंगली वेंकैया को कई भाषाओं का ज्ञानी भी माना जाता था। अंग्रेजी, हिंदी के अलावा उर्दू और जापानी भाषा में पारंगत थे। उन्होंने जियोलॉजी में डॉक्टरेट किया हुआ था। और उन्होंने अपने गृहनगर मछलीपट्टनम में एक शैक्षिक संस्थान की शुरूआत की।


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लेकिन विडंबना देखिए, अपने ही गृहनगर मछलीपट्टनम में पिंगली वेंकैया का कोई भी मेमोरियल नहीं है। देश को राष्ट्रीय ध्वज देने वाले पिंगली वेंकैया कई वर्षों तक गुमनामी और गरीबी में जीते रहे। 1963 में विजय वाड़ा में उनका निधन हो गया। और देश उनके योगदान को भूल गया। उनके बारे में न तो किसी पाठ्य पुस्तक में पढ़ाया गया। न ही उनके जन्मदिन या पुण्यतिथि पर कोई सरकारी आयोजन हुआ। और कहते है जब उनका निधन हुआ था। तब वो बेहद गरीब थे। और उनपर बहुत बड़ा कर्जा था।

पिंगली वेंकैया के मौत के 46 वर्ष बाद पहली बार सरकार को उनकी याद आई। और 2009 में भारती डाक विभाग ने उनके नाम से एक डाक टिकट जारी किया। तब लोगों को उनके बारे में पता चला। और फिर 2014 में ऑल इंडिया रेडियो के विजयवाड़ा स्टेशन का नाम भी उनके नाम पर रखा गया। सही मायने में पिंगली वैंकेया भारत के रत्न है। जिनके डिजाइन किए हुए तिरंगे को हाथ में उठाकर हम जश्न मनाते है। लेकिन किसी सरकार को उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने का ख्याल ही नहीं आया।

पीएम मोदी ने राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर पिंगली वैंकेया को किया नमन

वहीं अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय ध्वज के डिजाइनर पिंगली वैंकेया को नमन किया। और उन्होंने ट्वीट कर कहा कि, हमारा देश उनके प्रयासो का हमेशा ऋणी रहेगा। जिसपर हमे बहुत गर्व है। प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा की तिरंगे से शक्ति और प्रेरणा लेते हुए हम राष्ट्र की प्रगति के लिए कार्य करते रहेंगे। और उन्होंने पिंगली वैंकेया के सम्मान में अपने सोशल मीडिया की प्रोफाइल तस्वीर पर अब तिरंगा लगा दिया है। और देशवासियों से भी ऐसा ही करने का आग्रह किया है।

एक स्वतंत्रता सेनानी थे पिंगली वैंकेया

सही मायने में पिंगली वैंकेया एक स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी के अनुयायी थे। और आजाद भारत को उन्होने सबसे बड़ा तोहफा दिया। इस राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर ये राष्ट्र ध्वज ही है। जो हमे राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को याद दिलाता है। और देश भक्ती की भावना जगाता है। भारत का राष्ट्रध्वज केवल कपड़े से बना कोई टुकड़ा नहीं है। इसमें वो भावना है जो महान क्रांतिकारियों को अपने बलिदान के लिए प्रेरित किया है।

ये तिरंगा ही है जिसे एक सैनिक अपने सीने से लगाकर देश सेवा का प्रण लेता है। और उसी तिरंगे में लिपटने की इच्छा लेकर देश के लिए सर्वोच्च बलिदान है। और ये तिरंगा ही है जिसे देखकर नागरिको को देश के विकास में अपना योगदान देने और अपनी आजादी का सम्मान करने की प्रेरणा मिलती है।


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