मुसलमानों की टोपियों का किस्सा, जिनमें से कई हिंदुओं ने भी पहनीं

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डॉ. शारिक अहमद खान-

दिल्ली से क़रीब दो सौ बरस पहले एक मुग़ल शहज़ादा दो पल्ले की मसलिन की टोपी लगाकर लखनऊ आया और दोपलिया टोपी पर लखनऊ फ़िदा हो गया। लखनऊ ने जो दोपलिया टोपी बनानी शुरू की वो हाथ की सिली हुई चिकनकारी की सूती दोपलिया टोपियां थीं, जो बिल्कुल हल्की थीं और टोपी पर हाथ का चिकनकारी का काम था। इन टोपियों पर सोने के तारों और चांदी के तारों से भी कशीदाकारी होती। दोपलिया टोपी नुक्केदार भी होती थी, जो बीच में से ज़रा सी दबी होती थी और आगे-पीछे कोने उठे होते थे। पहले लखनऊ की दोपलिया टोपी नमाज़ पढ़ने की इस्लामी टोपी नहीं थी, हिंदू हो या मुसलमान, सब लखनऊ की पहचान दोपलिया टोपी को सिर पर धारण करते। बाद में मुसलमानों से ये टोपी जुड़ गई, वजह कि हिंदुओं ने टोपी लगाना छोड़ दिया और मुसलमानों ने नमाज़ पढ़ने की वजह से टोपी को अपनाए रखा। (Muslim Caps Worn Hindus)

लखनऊ में दोपलिया टोपी आने से पहले चौकोर चौगोशा टोपी का चलन था, जो उज़बेकिस्तान के फ़रग़ना से बाबर की सेना के साथ आई और लखनऊ में ऐसी मशहूर हुई कि हर सिर पर चौगोशा टोपी देखी जाती। नवाब वाजिद अली शाह ने एक टोपी ईजाद की थी, जो कार्डबोर्ड से बनती और विशेष रूप से नवाब जिसका सम्मान करते उसे वो टोपी पहना देते। उस टोपी का नाम आलमपसंद टोपी था।

TURKISH CAO\P

ख़ैर, मुसलमानों की टोपियों की बात की जाए तो रामपुर रियासत की टोपी भी बहुत मशहूर थी, जो वेल्वेट की होती। वेल्वेट को उस दौर में ख़ास सम्मान हासिल था। वेल्वेट की काली टोपियां देखने में भली लगतीं और बहुत नर्म होतीं। जब प्रथम विश्व युद्ध चल रहा था और ख़िलाफ़त मूवमेंट का दौर आया तो तुर्की टोपी मुसलमानों के बीच बहुत मशहूर हुई, जो लाल रंग की होती और उसके पीछे एक फु़ंदना लगा होता। (Muslim Caps Worn Hindus)

हैदराबाद रियासत में और लखनऊ के शिक्षित और एलीट मुसलमानों के बीच तुर्की टोपी का चलन ज़्यादा था। हैदराबाद रियासत ने तो इस टोपी को एक तरह से अपनी राजकीय टोपी का दर्जा दिया हुआ था क्योंकि वहां के कर्मचारियों को ऐसी टोपी पहनाना अनिवार्य था। जोश मलीहाबादी जब हैदराबाद में नौकरी करने गए तो उनसे भी तुर्की टोपी धारण करने के लिए कहा गया, जोश ने मना किया तो कहा गया कि नौकरी करनी है तो टोपी पहननी पड़ेगी। लिहाज़ा जोश ने मजबूरी में तुर्की टोपी पहन ली, क्योंकि उन्हें नौकरी करनी थी।

GANDHI CAP

मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने तुर्की टोपी पर जब अपने यहां रोक लगाई तो धीरे-धीरे तुर्की टोपी चलन से बाहर हो गई। आजकल जो जालीदार टोपी मुसलमानों के सिर पर दिखती है उस टोपी का नाम तकियाह है, ये अरब से आई टोपी है। पहले बकरी के बाल से ये जालीदार टोपी बिनी जाती और इस दौर में धागे से बिनी जाती है।

तुर्की से लाल ख़िलाफ़त टोपी आने से सदियों पहले एक टोपी मुग़लिया दौर में आई थी, जो अक्सर मुग़ल बादशाहों के सिर पर भी रहती और क्योंकि राजपूतों का मुग़लों के साथ राजकाज में संबंध था तो उन्होंने भी इस टोपी को धारण किया। वो टोपी नज़र टोपी कहलाती। एक तरह की बनी-बनाई पगड़ी जैसी होती और उसमें आगे नीले रंग का नगीना लगा रहता।

मौलाना रूम के अनुयायियों ने सिक्के-कुलाह नाम की लंबी टोपी को मुस्लिम वर्ल्ड में प्रचलित किया और वो टोपी हिंदोस्तान भी आई, उस टोपी को ख़ासतौर से सूफ़ी अपने सिर पर धारण करते। मौलाना रूम की टोपी तीन-चार बालिश्त तक ऊंची होती। मिर्ज़ा ग़ालिब जैसी नुकीली टोपी लगाते वो मध्य एशिया में पहनी जाने वाली टोपी थी।

EX PM VP SINGH

जाड़े के मौसम में कारकुली टोपी लगाने का चलन पुराने दौर से है, ये वही टोपी है जैसी पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह लगाते थे और फ़ारूक अब्दुल्ला लगाते हैं। (Muslim Caps Worn Hindus)

कारकुली टोपी कश्मीरी टोपी होती है लेकिन ये उज़्बेकिस्तान के कारकुल शहर से आई जो बुख़ारा के इलाक़े में है। कारकुल एक भेड़ की प्रजाति है और उसी प्रजाति के नाम पर उस शहर का नाम कारकुल है। कारकुली टोपी उसी भेड़ के बाल से बनी टोपी होती जो कश्मीर में आकर दूसरे किस्म के भेड़ों के बाल से बनने लगी।

हिंदोस्तान में सिर्फ़ पुरूष ही टोपी धारण करते हैं लेकिन तुर्कमेनिस्तान समेत कई देशों में महिलाएं भी सिर पर नमाज़ की टोपी लगाती हैं जो पुरूषों की टोपी से भिन्न होती है। यहां महिलाओं की टोपी चलन में नहीं आ सकी। पुराने दौर में बस कव्वाली के मुक़ाबलों में कव्वाल महिलाएं टोपी लगाया करतीं।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने एक नई टोपी ईजाद की और वो टोपी थी शेरवानी के साथ की टोपी, जो उसी रंग की और उसी कपड़े की होती है जिस रंग की शेरवानी होती है। इस टोपी की सिलाई रामपुरी वेल्वेट की टोपी की तरह होती है।

TURBAN CAP

जो खद्दर की गांधी टोपी है, उसे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हकीम अजमल ख़ान चलन में लाए। हकीम अजमल ख़ान रामपुरी टोपी लगाते थे। उन्होंने पहली बार रामपुरी टोपी जैसी खद्दर की टोपी बनवाई और पहनी जो गांधी जी को पसंद आई और खद्दर की टोपी का चलन कांग्रेस में हो गया। (Muslim Caps Worn Hindus)

दक्षिण भारत के मुसलमानों में ओमानी टोपी का चलन ख़ूब है जो हाथ के काम की गोल टोपियां होती हैं, क्योंकि समुद्री मार्ग से पुराने दौर में दक्कन में व्यापार होता और ओमान के व्यापारी ख़ूब आते, लिहाज़ा उनके द्वारा पहनी जाने वाली ओमानी टोपी दक्षिण में ख़ूब प्रचलित हुई।

बहरहाल, मुसलमानों में सिर पर धारण करने की टोपियां बहुत हैं। कई टोपियां तो फ़िरक़े के हिसाब से भी होती हैं और सब में ज़रा-ज़रा सा अंतर होता है।

(लोकमाध्यम ब्लॉग से साभार)


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