‘मैं मर नहीं रहा, स्वतंत्र भारत में पुर्नजन्म लेने जा रहा हूं’- काकोरी के पहले शहीद राजेंद्र लाहिड़ी

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फांसी की सजा मिलने के बाद भी राजेंद्रनाथ लाहिड़ी हमेशा की तरह अपना सारा समय व्यतीत करते थे। उनकी दिनचर्या में कोई भी बदलाव नहीं आया। इसे देख जेलर से उनसे सवाल किया- पूजा-पाठ तो ठीक हैं, लेकिन ये कसरत क्यों करते हो? अब तो फांसी लगने वाली है? राजेंद्रनाथ ने कहा- अपने स्वास्थ के लिए कसरत करना मेरा रोज़ का नियम हैं और मैं मौत के डर से अपना नियम क्यों छोड़ दूं? कसरत इसलिए करता हूं कि मुझे दूkसरे जन्म में विश्वास हैं और मुझे दूसरे जन्म में बलिष्ठ शरीर मिले, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य को मिट्टी में मिला सकूं….(Rajendra Lahiri Martyr Kakori)

यह थे क्रांतिकारी बिस्मिल-अशफाक के साथी, काकोरी एक्शन के पहले शहीद राजेंद्रनाथ लाहिड़ी।

उनकी फांसी को लेकर जनता में बढ़ते रोष राजनैतिक दबाव से अंग्रेजी सरकार डर गई थी। उन्हें गोंडा कारागार भेजकर अन्य क्रांतिकारियों से दो दिन पहले ही 17 दिसंबर 1927 को फांसी दे दी। लाहिड़ी ने फांसी के फंदे को चूमते हुए गर्जना की- मैं मर नहीं रहा हूं, बल्कि स्वतंत्र भारत में पुनर्जन्म लेने जा रहा हूं।

राजेंद्रनाथ लाहिड़ी का जन्म बंगाल के पाबना जिले के भड़गा नामक गांव में 23 जून 1901 को हुआ। उनके पिता क्षिति मोहन और माता बसंत कुमारी थीं। क्षिति मोहन लाहिड़ी व बड़े भाई क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े थे। उन्हें अनुशीलन दल की गुप्त गतिविधियों में योगदान देने के आरोप में गिरफ्तार करके जेल भी भेजा गया।

शिक्षा के लिए राजेंद्रनाथ मामा के घर वाराणसी पहुंचे और ‘काशी हिंदू विश्वविद्यालय’ से इतिहास से एमए किया। उसी दौरान उनकी मुलाकात बंगाल के क्रांतिकारी व ‘युगांतर’ दल के नेता शचींद्रनाथ सान्याल से हुई।

सान्याल ने लाहिड़ी में आजादी के प्रति दीवानगी देखकर उन्हें अपने साथ रख लिया और उसके बाद उन्होंने बनारस से प्रकशित होने वाली पत्रिका बंग वाणी के संपादन का कार्यभार सौंप। इसके बाद लाहिड़ी ‘अनुशीलन’ समिति की वाराणसी शाखा के सशस्त्र विभाग का प्रभारी बना दिया गया। फिर क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने लगे। (Rajendra Lahiri Martyr Kakori)

ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति को गति देने के लिए धन की जरूरत पूरी करने को अंग्रेजी सरकार का ही खजाना जब्त करने की योजना गई। इस काम में लाहिड़ी को अहम भूमिका दी गई। रामप्रसाद बिस्मिल की अगुवाई में 9 अगस्त 1925 में काकोरी स्टेशन के पास एक्शन को अंजाम दिया गया। काकोरी एक्शन की कामयाबी के बाद बिस्मिल ने बम बनाने का प्रशिक्षण लेने के लिए लाहिड़ी को बंगाल भेज दिया।

एक दिन किसी साथी की जरा सी असावधानी से एक बम अचानक ब्लास्ट हो गया, जिसकी तेज़ धमाकेदार आवाज़ को पुलिस ने सुन लिया और तुरंत ही मौके पर पहुंचकर वहा मौजूद 9 लोगों के साथ राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। मुकदमे में उन्हें 10 साल की सजा सुनाई गई और बाद में अपील पर सजा पांच साल कर दी गई।

इधर एक-एक कर काकोरी एक्शन में शामिल प्रमुख क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और उन पर मुकदमा चलाया जा रहा था। तब राजेन्द्र लाहिड़ी को भी इसमें शामिल होने के कारण बंगाल से लखनऊ लाया गया। मुकदमे से क्रांतिकारों ने अंग्रेजी हुकूमत की बखिया उधेड़ दी। (Rajendra Lahiri Martyr Kakori)

आखिरकार, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और रोशन सिंह को लखनऊ की विशेष अदालत ने 6 अप्रैल 1927 को ब्रिटिश राज के खिलाफ़ सशस्त्र युद्ध छेड़ने का दोषी मानकर फांसी की सज़ा सुना दी। लाहिड़ी के अलावा बाकी तीन क्रांतिकारियों को 19 दिसंबर को फांसी दी गई।


 बम का दर्शन- क्रांतिकारियों का वह लेख जो महात्मा गांधी के लेख के जवाब में लिखा गया


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