द लीडर देहरादून। पहले दिन नौकरशाही में अपना सचिव चुनकर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह ने संदेश तो दे दिया है कि वह अपने हिसाब से चलेंगे। अब उनके मंत्री तय होने हैं। उनकी सूची पर दिल्ली में मंथन हो रहा है। कुछ पुराने मंत्री जिस तरह पैरवी कर रहे हैं उससे जाहिर है वे खतरे में हैं।
सतपाल महाराज को अगर संसद में जाना है तो संभव है वह नई टीम में न हों। मदन कौशिक की दिल्ली दौड़ के भी अर्थ निकाले जा रहे हैं और उनकी परफोर्मेंस , यानी उनके जिम्मे जो काम थे उनका मूल्यांकन किया जा रहा है। अपनी ही चलाने वाले दो और मंत्रियों की कुर्सी भी खतरे में बताई जा रही है। इनमें से कुछ को छेड़ने में नए संकट का रिस्क है इसलिये आलाकमान थोड़ा असमंजस में है।
कैबिनेट में 11 मंत्री बनाए जाने की गुंजाइश है। त्रिवेंद्र कैबिनेट में मुख्यमंत्री के अलावा छह कैबिनेट मंत्री और दो राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) थे। तीन खाली पद न भरना उनके जाने की सबसे बड़ी वजह थी। नए दावेदारों की लंबी कतार है। गढ़वाल से चमोली, उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग का प्रतिनिधित्व नहीं है। बदरीनाथ के विधायक महेंद्र भट्ट मंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं और इधर अपनी सीट तीरथ को ऑफर भी कर रहे हैं। देहरादून जिले से जो दावेदार हैं उनमें त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुन्ना सिंह चौहान, हरबंस कपूर, गणेश जोशी और प्रेमचंद अग्रवाल काफी वरिष्ठ हैं। त्रिवेंद्र को दिल्ली की सेवा में जाना है तो एक और जगह बनेगी।
अग्रवाल विधानसभा अध्यक्ष हैं। मंत्री बनते हैं तो किसी ऐसे को ये पद मिलेगा जो पुराना मंत्री हो। प्रकाश पंत के निधन के बाद से उनकी पत्नी चंद्रा पंत का नाम चल रहा है। पूर्व कैबिनेट मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल, डीडीहाट से बिशन सिंह चुफाल, काशीपुर से वरिष्ठ विधायक हरभजन सिंह चीमा, खटीमा से वरिष्ठ विधायक पुष्कर सिंह धामी का नाम दावेदारों में गिना जा रहा है।
सतपाल महाराज महाराज के अलावा कोंग्रेसी गोत्र के हरक सिंह रावत, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल, रेखा आर्य भी पुराने भाजपाइयों को खटकते हैं। त्रिवेंद्र के प्रिय धन सिंह रावत और अरविंद पांडेय भी अभी बहुत आश्वस्त नहीं हैं। शुक्रवार शाम तक तस्वीर साफ होने की उम्मीद है। सूत्र इतना इशारा कर रहे है कि इस सूची में कुछ तो चौंकाने वाला होगा। किसी और त्रिवेंद्र जैसी सज़ा मिल सकती है।