द लीडर. देवबंद में कुलहिंद राब्ता-ए-मदारिस इस्लामिया के राष्टीय सम्मेलन में जमीयतुल उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने मदरसों के सर्वे को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने एलान कर दिया है कि मदरसे किसी भी बोर्ड से नहीं जुड़ेंगे. न ही उन्हें सरकारी मदद की कोई ज़रूरत है. हम अपने बच्चों को ग़ुलाम नहीं बनाना चाहते. मदरसों को चलाने का बोझ क़ौम उठा रही है और आगे भी उठाती रहेगी.
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मौलाना मदनी ने सम्मलेन में एक और भी बड़ी बात रही कि बहुत से लोग देश के करोड़ों रुपये लेकर भाग गए लेकिन हम देश के साथ खड़े हैं, तब जबकि कौन किसे वोट देता है या नहीं देता, इससे हमारा मतलब नहीं है. पाठ्यक्रम में बदलाव को लेकर भी मौलाना मदनी से साफ़ कर दिया कि हम जानते हैं, मदरसों की तालीम कैसे बेहतर होगी. हमें लैपटॉप वाले लोग नहीं, मस्जिदों में चाहे वे जंगल में ही क्यों न हों, वहां भी नमाज़ पढ़ा सकें ऐसे लोग चाहिए हैं.
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उनकी इन तमाम बातों का जवाब मदरसा तालीमी बोर्ड के चेयरमैन डॉ इफ़्तेख़ार जावेद अहमद ने कड़े लफ़्ज़ों में दिया है, वह भी आला हज़रत की नगरी से. बोर्ड के चेयरमैन यहां दरगाह पर हाज़री देने के बाद एक होटल में मीडिया से बात कर रहे थे. उन्होंने कहा कि सरकार मदरसों के बच्चों के एक हाथ में क़ुरान, दूसरे में लैपटॉप देना चाहती है. जहां तक देवबंद के मौलाना अरशद मदनी के बयान का सवाल है तो इन ख़ानदानी लोगों को मुसलमानों को भला हो जाना इन्हें पसंद नहीं आ रहा है. फिक्रमंद हो गए हैं कि इन्हें फिर सलाम कौन करेगा. यह सोचकर ही तकलीफ़ में हैं. बोर्ड के चेयरमैन ने योगी और मोदी सरकार की मुसलमानों को लेकर मंशा भी साफ की है. यह भी कहा कि सरकार की योजनाओं का लाभ जिस अनुपात में मुसलमानों ने उठाया है, वो एक मिसाल है.