सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा- मोदी सरकार में लोकतांत्रिक विवेक की कमी, UN में म्यांमार मामले को लेकर भारत का पक्ष चौंकाने वाला

द लीडर हिंदी : राज्यसभा सदस्य, पूर्व केंद्रीय मंत्री सुब्रमण्यम स्वामी ने रविवार को एक बार फिर मोदी सरकार को निशाने पर लिया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के खिलाफ पारित किए गए प्रस्ताव में भारत के हिस्सा नहीं लेने पर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया है.

उन्होंने इस मुद्दे को लेकर यह तक कह दिया कि मोदी सरकार में लोकतांत्रिक विवेक की कमी है. भारत ने पहले इजरायल और अब म्यांमार के मामले में यूएन में परहेज किया.

सुब्रमण्यम स्वामी ने रविवार को ट्वीट करते हुए लिखा कि यह चौंकाने वाला और मोदी सरकार की लोकतांत्रिक विवेक की कमी है कि हमने चीन समर्थक बर्मी सेना द्वारा म्यांमार में लोकतंत्र की हत्या और आंग सान सूकी की गिरफ्तारी पर संयुक्त राष्ट्र के निंदा प्रस्ताव, वोटिंग में भाग नहीं लिया. हमने पहले इजरायल और अब म्यांमार से परहेज किया. क्या हमने अपनी विवेक शक्ति खो दी है?

शुक्रवार को पेश किया प्रस्ताव

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGC) ने शुक्रवार काे एक प्रस्ताव पारित करते हुए म्यांमार में सैन्य शासन के तख्तापलट (Military Coup in Myanmar) की निंदा की थी. UNGC ने म्यांमार के खिलाफ हथियारों पर प्रतिबंध लगाने और लोकतंत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को बहाल करने की मांग की.

इस प्रस्ताव के लिए UNGC ने मतदान कराए. इसमें भारत सहित 35 देशों ने हिस्सा नहीं लिया था. भारत की ओर से इस प्रस्ताव पर कहा गया है कि ये ड्राफ्ट प्रस्ताव उसके विचारों को प्रतिबिंबित नहीं करता है.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने कहा कि यह जल्दबाजी में लाया गया प्रस्ताव है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के ‘म्यांमार में स्थिति’ (Myanmar Related Resolution in UN) मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में 119 देशों ने वोट किया है.

जबकि कई देश इसमें शामिल नहीं हुए. इनमें म्यांमार के पड़ोसी देश भारत, बांग्लादेश, भूटान, चीन, नेपाल, थाईलैंड और लाओस शामिल हैं. वहीं, बेलारूस ने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया.

भारत ने कहा- पड़ोसी देशों से परामर्श नहीं

संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत ने कहा कि इस प्रस्ताव को लेकर पड़ोसी देशों से परामर्श नहीं किया गया. यह न सिर्फ गैर जरूरी है, बल्कि म्यांमार के वर्तमान हालात का समाधान निकालने के लिए आसियान देशों के प्रयासों को भी प्रभावित कर सकता है. वोटिंग में शामिल न होने के फैसले पर बताया कि पड़ोसी होने के नाते भारत म्यांमार के ‘राजनीतिक अस्थिरता के गंभीर प्रभावों’ को समझता है. साथ ही इसके म्यांमार की सीमा से बाहर फैलने को लेकर भी चिंतित है. भारत ने प्रत्येक मुद्दे का शांतिपूर्ण तरीके से हल निकालने की बात कही.

तख्तापलट के बाद भारी विरोध

बीती एक फरवरी को म्यांमार में तख्तापलट हुआ था. सेना ने बलपूर्वक चुनी हुई सरकार को हटाकर एक साल तक सैन्य शासन की घोषणा कर दी. म्यांमार की स्टेट काउंसलर और शीर्ष नेता आंग सान सू की (Aung San Suu Kyi) सहित अन्य नेताओं को नजरबंद कर दिया गया.

सेना की तख्तापलट कार्रवाई को लेकर पूरे देश में विरोध शुरू हो गए. लोकतंत्र की बहाली और नेताओं की रिहाई के लिए मांग उठने लगी तो सेना ने सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. म्यांमार की सड़के खून से लाल हो गईं. सेना विरोध करने वालों को कुचलने में लगी है.

उधर, आंग सान सू की के 76वें जन्मदिन पर शनिवार को म्यांमार में जनता ने अहिंसावादी फ्लावर प्रोटेस्ट शुरू किया है. लोग हाथ में फूल पकड़ पैदल मार्च करने निकले. वहीं, कुछ ने बालों में फूल लगाकर सैन्य शासन का विरोध जताया. इसके साथ ही आंग सान सू की रिहाई की मांग की.

Abhinav Rastogi

पत्रकारिता में 2013 से हूं. दैनिक जागरण में बतौर उप संपादक सेवा दे चुका हूं. कंटेंट क्रिएट करने से लेकर डिजिटल की विभिन्न विधाओं में पारंगत हूं.

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