सपा की “विजय रथ” यात्रा क्या बीजेपी को दिखा पाएगी बाहर का रास्ता ?

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द लीडर | देश की सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के चलते सियासी हलचल तेज़ हो गई है. प्रदेश की हर गली में राजनीति गरमाई हुई है. तमाम राजनीतिक दलों में आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया है. इसी कड़ी में यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मिशन-2022 के तहत बीजेपी को पछाड़ने के मकसद से ‘विजय रथ’ निकाल कर चुनावी बिगुल फूंका है. कानपुर के गंगा तट पर स्थित जाजमऊ से यह ‘विजय रथ’ यात्रा शुरू हुई.

विजय रथ यात्रा के पीछे क्या है मकसद 

इस विजय रथ की सबसे ख़ास बात यह रही कि, इस यात्रा की इस यात्रा की शुरुवात पांच साल के बच्चे खजांचीनाथ ने किया. खजांचीनाथ के माध्यम से अखिलेश ने मोदी के नोटबंदी पर हल्ला बोला. दरअसल 2016 में नोटबंदी के दौरान कानपुर देहात की एक महिला ने बैंक में लाइन लगने के दौरान ही पीड़ा से छटपटाते हुए बच्चे को जन्म दिया था. यही बच्चा खजांचीनाथ है और उन्हें यह नाम तब ख़ुद अखिलेश यादव ने दिया था.

कानपुर-लखनऊ एनएच हाइवे-27 से कोई दो किलोमीटर तक 80-90 गाड़ियों के क़ाफ़िले में अखिलेश यादव का ‘विजय रथ’ आगे बढ़ा जो बाद में प्रयागराज होते हुए कानपुर इटावा आने वाले एनएच-2 से भी गुज़रा और कोई 10 से 12 किलोमीटर की दूरी तय करके घाटमपुर की ओर मुड़ गया.


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समाजवादी पार्टी के मिशन 2022 में अटकलें

दरअसल, पिछली बार हुए विधानसभा चुनाव में सपा के वोट बैंक बिखर जाने के कारण अखिलेश को हार का सामना करना पड़ा था. इस बार भी ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि, सबसे ज्यादा वोट कटने की उम्मीद जिस पार्टी की है, वह सपा ही है. ऐसा इस लिए है क्योंकि इस बार एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया था.

ओवैसी की इस घोषणा के बाद यह कहा जाने लगा कि, सपा से मुस्लिम वोट कहीं न कहीं कट कर ओवैसी के खेमे में जा सकते हैं. इसके अलावा इस बार सपा का सिर्फ बीजेपी से ही नहीं बल्कि कई अन्य पार्टियों के साथ भी कड़ा मुकाबला होने वाला है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पार्टी आम आदमी पार्टी भी यूपी चुनाव में अपनी किस्मत आज़माने के लिए ज़मीन पर उतर रही है. चुनावी मैदान में इस बार सियासी पारा काफी गरमाने वाला है.

बात अगर देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की करें तो राजनीति का यह सूबा भी काफी सक्रिय नज़र आ रहा है. प्रियंका गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश में काफी अलर्ट नज़र आ रही हैं. हाथरस कांड से लेकर लखीमपुर खीरी कांड तक कांग्रेस ने प्रदेश में ज़मीनी स्तर पर आम लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाने की पूरी कोशिश की है. हालांकि बीते विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस को बीजेपी ने औंधे मुंह पटका था. हालांकि इस बार अभी से यह कह पाना मुश्किल है कि कांग्रेस किस हद तक यूपी में अपना वर्चस्व लहरा पाती है.

मोदी लहर से अखिलेश का सामना 

बीते विधानसभा चुनाव में सपा की हार का एक यह भी कारण बताया जाता है कि उस समय मोदी लहर अपने चरम पर थी. कहीं न कहीं अखिलेश यादव को भी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता ने सत्ता से बाहर कर दिया था. आज की तारीख की बात करें तो यूपी जैसे राज्य में पीएम की लोकप्रियता में काफी बदलाव हो चुका है. भुखमरी और गरीबी झेल रही जनता अब त्रस्त हो चुकी है.

लेकिन ख़ास बात यह है कि प्रधानमंत्री मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी है और योगी आदित्यनाथ का दिल गोरखपुर में बसता है. यह दोनों प्रदेश के दो मुख्य शहर माने जाते हैं. ऐसे में यह कह पाना कि लोकप्रियता कम होने से वोट बैंक में असर पड़ेगा सही नहीं है.

प्रधानमंत्री मोदी की ख़ास बात यही है कि वह आखिरी वक़्त में ऐसा राजनीतिक दांव खेल देते हैं जिसकी किसी को उम्मीद नहीं होती. ऐसा ही कुछ हमें 2019 के लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला था. नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के बाद प्रधानमंत्री की बहुत आलोचना हुई थी. लेकिन इसके बावजूद राममंदिर का सहारा लेकर मोदी फिर से सत्ता की कुर्सी पर काबिज़ हो गए थे.


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राम मंदिर को लेकर सियासत

उत्तर प्रदेश में राम मंदिर का मुद्दा आज से नहीं बल्कि बीते कई दशकों से हर बार चुनाव के दौरान सुर्ख़ियों में आता रहा है. भारतीय जनता पार्टी के चुनावी एजेंडे में अयोध्या और राम हमेशा रहे हैं. इसलिए हिंदुत्व की राजनीति करने वाली भाजपा के लिए अयोध्या महत्वपूर्ण है. सभी पार्टियां अयोध्या को एक फैक्टर बनाने की कोशिश में हैं, लेकिन यह दांव कितना कारगार होगा यह देखने की बात है.

2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, भाजपा ने मतदाताओं से वादा किया था कि,अगर पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में आती है तो वे अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू करेंगे. पांच अगस्त 2020 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उस वादे को पूरा किया जब उन्होंने मंदिर निर्माण की शुरुआत के लिए अयोध्या में भूमि पूजन किया.

मंदिर का निर्माण जोरों पर चल रहा है. इस मुद्दे को आगे कैसे राजनीति की चर्चा के केंद्र में रखा जाए इसके लिए भाजपा ने पूरी रणनीति भी तैयार कर ली है. भाजपा ने 2022 में 403 में से 300 से अधिक सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, इसलिए अयोध्या के जरिए चुनावी नैया पार करने की कोशिश है. इसी रणनीति के तहत अयोध्या में विकास कार्यों का जायजा खुद सीएम योगी लेते रहते हैं.

किसान आंदोलन से किसको नुकसान और किसको फायदा

उत्तर प्रदेश में इस समय किसान आंदोलन बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है. हमेशा से देखा गया है कि, सत्ता में बैठी जो भी पार्टी किसानों से टकराई है उसको किसानों नें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया है. ऐसी तमाम मिसालें भरी पड़ी हैं. इस बार किसानों की सीधी लड़ाई बीजेपी से है. एक साल से ज्यादा समय से चलते आ रहे किसान आंदोलन ने अभी तक दम नहीं तोड़ा है और यूपी के चुनाव में इस आंदोलन को यूपी की सियासत में टर्निंग पॉइंट माना जा रहा है. फिलहाल, वेस्ट यूपी में बन रहे माहौल से भाजपा के लिए मुश्किल बढ़ रही है और विपक्ष अपने लिए उम्मीद तलाश रहा है.

यूपी की सियासत का यह दिलचस्प पहलू है कि यहां सत्ता का ‘सूर्योदय’ पश्चिम से होता है. जिसके जीत का सूर्य पश्चिम में उगा, सत्ता का उजाला भी उसके ही हिस्से आता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में वेस्ट यूपी की 136 सीटों में भाजपा ने 102 पर जीत का परचम लहराया था. संयोग यह भी है कि आम चुनावों के शुरूआती चरण भी वेस्ट यूपी में ही होते हैं और यहां से बने माहौल का असर प्रदेश के दूसरे हिस्सों में भी पड़ता है.  किसान आंदोलन की सियासी महत्वाकांक्षा की लैब भी काफी हद तक वेस्ट यूपी ही है.


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मुस्लिम वोट बैंक पर सपा की कितनी पकड़ 

यूपी के सियासी माहौल में अखिलेश यादव मुस्लिम और यादव वोटों को अपना कोर वोटबैंक मानकर चल रहे हैं. 2022 में सत्ता में वापसी के लिए मुस्लिम-यादव वोटबैंक में अन्य ओबीसी के वोटों के कुछ हिस्से को जोड़ने की कोशिश में अखिलेश यादव जुटे हैं. बीजेपी के सूबे में सत्ता में होने के चलते, जिस तरह का माहौल बना हुआ है. उसमें अभी तक मुस्लिम के बीच सपा सबसे पहली पंसद मानी जा रही है, लेकिन कांग्रेस से लेकर बसपा और मुस्लिम पार्टियां यादव-मुस्लिम समीकरण को तोड़ने की कवायद में जुटी हैं.

बता दे की कुल 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी बीस से तीस फीसद के बीच है. 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान तीस फीसद से ज्यादा है. सूबे की करीब तीन दर्जन ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर जीत दर्ज कर सकते हैं

सूबे के 20 फीसदी के करीब मुस्लिम वोटर को साधने के लिए सपा से लेकर बसपा और कांग्रेस जुटी हैं तो असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन से लेकर डॉ. अय्यूब अंसारी की पीस पार्टी जैसी मुस्लिम पार्टियों की नजर भी इसी वोटबैंक पर है. वहीं, इस बार बीजेपी भी मुस्लिमों को गले लगाने की कवायद में है. ऐसे में सवाल उठता है कि यूपी के मुस्लिम मतदाताओं का 2022 के चुनाव में क्या रुख होगा?


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