द लीडर. दरगाह हाफ़िज़ शाह जमालुल्लाह के सज्जादानशीन शाह फरहत अहमद जमाली के जनाज़े में भारी भीड़ दिखाई दी. दरगाह परिसर भरा रहा और बाहर भी उनके चाहने वाले आखिरी दीदार के लिए कतारबद्ध रहे. नमाज़-ए-जनाज़ा बेटे फाहद मियां ने अदा कराई. उसके बाद सुपुर्द-ए-ख़ाक किए गए. भीड़ खिराजे अक़ीदत पेश करने के साथ उनकी छोटी ज़िंदगी के बड़े कारनामों पर भी चर्चा करते रहे.
शेर की एक दिन की ज़िंदगी, गीदड़ की सौ साल ज़िंंदगी से बेहतर है. फरहत मियां के जीने का अंदाज कुछ इस तरह ही रहा. जब-जब नाहक़ दबाव बना तो वह रामपुर के बड़े नेताओं से टकरा गए.
नवाबों के खिलाफ भी खड़े हुए, तब जबकि दरगाह हाफ़िज़ शाह जमालुल्लाह में नवाबीन की पुरानी क़ब्रों के पत्थर गायब होने का मामला उठा और फरहत मियां पर मुकदमा हुआ तो उन्होंने खुद पर लगाए जाने वाले इल्जाम के खिलाफ मजबूती से आवाज उठाई.
पूर्व काबीना वज़ीर मुहम्मद आज़म खां से भी विवाद हुआ लेकिन जब सुलह हुई तो आज़म खां ने मंच से उनके बारे में कहा था-फरहत मियां में इतनी खूबियां हैं कि मैं तय नहीं कर पा रहा हूं, किस खूबी का ज़िक्र करूं.
सीएए-एनआरसी को लेकर आंदोलनों में भी मुखर रहे. यहां तक कि रामपुर के दूसरे उलमा के साथ उन पर भी मुकदमा दर्ज हो गया.
जब उन्होंने किसान आंदोलन का समर्थन किया तो उनकी गिरफ्तारी हो गई. गिरफ्तारी सीएए-एनआरसी को लेकर दर्ज मुकदमे में दिखाई गई. वह जेल चले गए लेकिन उनके तेवर तल्ख ही रहे.
रामपुर के सीनियर सहाफी आदिल मुजद्ददी बताते हैं कि फरहत मियां ने साफ कर दिया था कि उलमा साथ दें या न दें, हक़ बात मनवाए बग़ैर न कदम पीछे खींचे हैं और न खीचेंगे.
उन्हें जिंदगी में सबकुछ काफी पहले ही मिला. जब वालिद के इंतक़ाल पर सज्जादानशीन बनाए गए तो कमउम्र ही थे. शोहरत भी अपने जैसे दूसरे लोगों से पहले मिल गई. यहां तक तक कि मौत भी नौजवानी में ही आ गई.