रोहिंग्याओं पर बाढ़ का कहर, 11 की मौत, कई लापता, हजारों बेघर

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म्यांमार में नरसंहार के बाद दर-बदर हुए रोंहिग्या मुसलमानों की जिंदगी भी नाजी जर्मनी में रहे यहूदियों, आज के फिलिस्तीनियों या फिर अरबी यजीदियों की तरह गुजर रही है। बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर पनाह लेने वाले रोहिंग्याओं की जिंदगी अब बाढ़ से घिर गई है। जबकि उन लोगों की तो खबर ही नहीं आ रही, जिन्हें बांग्लादेश सरकार ने समुद्री टापुओं पर बसा दिया है।

बांग्लादेश में ताबड़तोड़ मानसूनी बारिश ने रातोंरात पानी को तेज बहने वाली नदियों की सी सूरत दे दी और उनकी धार का रुख रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर मुड़ गया। बांग्लादेशी मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, बारिश और भूस्खलन ने शरणार्थी शिविरों को पत्ते की तरह बहाना शुरू कर दिया और तेज धार में डूबकर 11 रोहिंग्या शरणार्थियों की मौत हो गई, जबकि कई लापता हैं। शिविरों के तबाह होने से हजारों लोगों का यह आसरा भी छिन गया और वे जहां-तहां सिर छुपाने को मजबूर हो गए हैं। अनुमान है कि इस आपदा से तकरीबन 13 हजार लोग बेघर हो गए हैं।

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कॉक्स बाजार में एक स्थानीय अधिकारी मामुनूर राशिद ने कहा कि मंगलवार को बलूखली और पालोंग खली शिविरों में छह लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक बच्चा भी शामिल है, बुधवार सुबह तक फिर पांच लोगों की मौत हो गई।

2017 के बाद से रोहिंग्या मुस्लिम समूह के 7 लाख 30 हजार से ज्यादा सदस्य म्यांमार में हत्याओं, बलात्कार और आगजनी के अभियान से बचने को असपास के देशों की ओर भागे। एक तरह से वे म्यांमार के नागरिक भी नहीं हैं और उनका कोई अपना देश नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र के दखल के बावजूद म्यांमार सरकार ने कोई राहत उनको देना मुनासिब नहीं समझा। भारत में उनका धरपकड़ अभियान चला, जबकि इंडोनेशिया और मलेशिया से मानव तस्करी होने की खबरें भी आती रही हैं। बांग्लादेश में सबसे ज्यादा रोहिंग्या पहुंचे, जिन्हें पिछले कुछ महीने पहले समुद्र के खतरनाक निर्जन टापुओं पर बसाने की कवायद की गई है।

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जिन लोगों को बांग्लादेश सरकार टापुओं पर नहीं बसा पाई, वे अभी भी शिविरों में रहकर जिंदगी-मौत के खेल का मोहरा बने हुए हैं। बीमारी, बारिश, आग की घटनाओं ने तमाम लोगों की जान ले ली। मार्च में 15 लोग मारे गए, जबकि दर्जनों बेघर हुए।

बांग्लादेशी मानवीय एजेंसी, बीआरएसी के कॉक्स बाजार क्षेत्र निदेशक हसीना अख्तर ने कहा कि बाढ़ से प्रभावित कई शरणार्थियों को भोजन की सख्त जरूरत थी क्योंकि सूप रसोई जैसी खाना पकाने की सुविधा नहीं थी। बुखार या सर्दी से बीमार लोगों के इलाज के लिए भी चिकित्सा सहायता की तत्काल आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने ट्विटर पर अपनी सहानुभूति में लिखा है, ‘गंभीर मौसमी घटनाओं के कारण शरणार्थियों की मौत से गहरा दुख। आपातकालीन दल शिविरों के आसपास मौजूद है और सरकार व राहत कार्य कर रहे संगठनों के साथ जुटे हैं’।

रोहिंग्याओं पर बाढ़ का कहर उस वक्त टूटा है, जब विश्व महामारी ने भी पैर पसार रखे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश में मंगलवार को 258 मौतों के साथ 15 हजार नए मामले किए गए हैं। कुछ अरसे पहले ही बांग्लादेशी सरकार ने घोषणा की थी कि वे जल्द ही 55 से ज्यादा उम्र के रोहिंग्या शरणार्थियों का टीकाकरण शुरू कर देंगे।

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