RJD : लालू प्रसाद और रघुवंश बाबू के रिश्ते की वो गांठ, जिसे खोलने को तमाम प्रपंच रचे गए

अतीक खान


मोदी लहर में देश की शायद ही ऐसी कोई पार्टी हो, जिसके नेता भाजपा की कश्ती पर न सवार हुए हों. ऐसे दौर में रघुवंश प्रसाद सिंह का ये दम भरना कि, अपने दामन पर दलबदलू का दाग लगाने से अच्छा विपक्ष में रहना है. ये आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव से उनके 32 सालों के बेजोड़ आत्मीय रिश्ते का प्रमाण है.

रघुवंश प्रसाद सिंह, जिन्हें रघुवंश बाबू के तौर भी जाना जाता है-कि आज पहली पुण्यतिथि है. साल 2020 को आज ही के दिन 74 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने उन्हें याद किया है.

रघुवंश बाबू सियासत में आने से पहले प्रोफेसर हुआ करते थे. 1977 में पहली दफा विधायक चुने गए और जननायक कर्पूरी ठाकर की सरकार में मंत्री बने. वे वैशाली लोकसभा सीट से पांच बार संसद भी पहुंचे. साल 1990 में जब बिहार में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व में आरजेडी की सरकार बनी. रघुवंश प्रसाद वो चुनाव हार गए थे. बाद में उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया गया.


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रघुवंश प्रसाद एचडी देवेगौड़ा सरकार में आरजेडी कोटे से मंत्री भी रहे. मनमोहन सिंह की यूपीए-वन सरकार में वह 2004 से 2009 तक ग्रामीण विकास मंत्री रहे. उन्हीं के नेतृत्व में यूपीए ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना-मनरेगा को धरातल पर उतारा.

तब, जब अमेरिका में छाई मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था डगमगाने की आशंकाएं जताई जा रही थीं. तब रघुवंश बाबू ने मनरेगा योजना को सफल तरीके से लागू कराया था. इसको लेकर 2009 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से उनकी कैबिनेट में शानदार काम करने वाले नेताओं के बारे में पूछा गया-तो मनमोहन सिंह ने जो पहला नाम लिया. वो रघुवंश बाबू का था. इसी से उनके काम करने के अंदाज का अंदाजा लगाया जा सकता है.

जेपी आंदोलन में लालू-रघुवंश का मिलना

बात 1974 की है. ये वो दौर था, जब लालू प्रसाद यादव पटना यूनिवर्सिटी के छात्र थे. उस वक्त राज्य में भ्रष्टाचार को लेकर सरकार के खिलाफ आक्रोश की चिंगारी सुलग रही थी. जिससे बिहार आंदोलन का जन्म हुआ. इसे जय प्रकाश नारायण (जेपी) आंदोलन और संपूर्ण क्रांति के नाम से भी जाना जाता है. उस वक्त पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ ने छात्रों का एक सम्मेलन किया.

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और लालू प्रसाद यादव बिहार छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष चुने गए. जेपी के नेतृत्व में छात्रों ने इस आंदोलन को लीड करके न सिर्फ बिहार बल्कि देश के हर हिस्से तक पहुंचाया था. बताते हैं कि इसी आंदोलन में लालू प्रसाद और रघुवंश बाबू का पहली दफा मिलना हुआ था. और ये साथ ताउम्र बना रहा. जब राष्ट्रीय जनता दल की नींव रखी गई, तो रघुवंश बाबू इसके संस्थापक सदस्य बने.

मौत से पहले रघुवंश बाबू का इस्तीफा पत्र

पिछले साल सितंबर में बिहार विधानसभा चुनाव का रण सजा था. लालू प्रसाद यादव जेल में सजा काट रहे थे. और रघुवंश प्रसाद अस्वस्थ थे. 10 सितंबर को एक चिट्ठी वायरल हुई. वो रघुवंश बाबू की ओर से थी. जिसमें केवल एक वाक्य लिखा था. वो ये कि, जननायक कर्पूरी ठाकुर के देहांत के बाद 32 सालों तक आपके साथ खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. ये चिट्टी लालू प्रसाद यादव के नाम, रघुवंश बाबू के इस्तीफे की थी. इसके चंद रोज बाद ही रघुवंश बाबू का देहांत हो गया था.

चुनावी रण के बीच आई उनके इस्तीफे की इस चिट्ठी पर तब सवाल भी उठे थे. जो वाजिब भी थे. इसलिए क्योंकि स्वस्थ रहते हुए कभी भी उन्होंने पार्टी से अलग होने की बात नहीं की. लेकिन जैसे ही वे अस्वस्थ होकर अस्पताल के बिस्तर पर पहुंचे. लालू प्रसाद यादव का साथ छोड़ने का पत्र सामने आ गया. बहरहाल, आरजेडी ने अपने नेता रहे रघुवंश बाबू को उतनी ही आत्मीयता के साथ उनकी जयंती पर याद किया है.

 

Ateeq Khan

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