द लीडर देहरादून।
उत्तराखण्ड में त्रिवेंद्र सरकार के दौरान गठित जिला विकास प्राधिकरणों को भंग कर दिया गया है। बुधवार को राज्यपाल की स्वीकृति मिलने बाद शहरी विकास सचिव विनोद कुमार सुमन ने इस आशय का आदेश जारी कर दिया है।
आदेश में कहा गया है कि अब 2016 के पहले के विनियमित क्षेत्रों को छोड़कर अन्य जिलों में अग्रिम आदेशों तक भवन निर्माण के लिए नक्शा स्वीकृत कराये जाने की प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया है। उत्तराखण्ड में भवन निर्माण के सम्बन्ध में 2016 से पहले की स्थिति को लागू कर दिया गया है।
इस तरह पहले से ही प्राधिकरणों की समाप्ति पर जोर देने वाले बंशीधर भगत ने शहरी विकास मंत्री बनने के बाद प्राधिकरण समाप्त कर केबिनेट मंत्री के रूप में अपनी पारी की शुरुआत की है।
गौरतलब है कि जिला विकास प्राधिकरणों के गठन के बाद से ही राज्य में, ख़ास तौर से पर्वतीय जिलों में, इनका विरोध जारी था। इसे लेकर आंदोलनों का सिलसिला भी चला आ रहा था। प्राधिकरण के नियमों ने पर्वतीय जिलों में आम आदमी के लिए छोटा-मोटा घर बनाना भी दूभर कर दिया था। घर बनाने की लागत भी बहुत ज्यादा बढ़ गयी थी। प्राधिकरण के मानकों की आड़ में विभाग के कर्मचारियों द्वारा मोटी राशि घूस के रूप में भी वसूली जाती थी। खुद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने अपने हालिया बयान में प्राधिकरणों के भ्रष्टाचार के अड्डे बन जाने की बात कही । मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद यह बात भी उठने लगी है कि अगर मुख्यमंत्री प्राधिकरणों में मौजूद भ्रष्टाचार को स्वीकार रहे हैं तो क्या वे इस पर भविष्य में कोई कार्रवाई भी करेंगे।