-शहादत दिवस-
द लीडर : अवतार सिंह संधू (पाश) एक क्रांतिकारी कवि और चिंतक थे. उन्होंने भगत सिंह-सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस-23 मार्च के मंजर पर एक कविता गढ़ी है. ता-उम्र खेत, खलिहान, अधिकार और समाज के सबसे वंचित-शोषित व्यक्ति की आवाज उठाने वाले पाश भी 23 मार्च को ही इस दुनिया से विदा हुए थे. एक खलिस्तानी समूह ने 23 मार्च 1988 को उनकी हत्या कर दी थी. पाश को भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के दम का क्रांतिकारी माना जाता है. पाश की लिखी पांच कविताओं से आप उनकी क्रांतिकारी शख्सियत का अंदाजा लगा सकते हैं-पढ़िए. (Poems Avatar Singh Sandhu Pash Bhagat Singh Revolutionary Ideas)
हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े
हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल अब भी चलता हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है
सवाल के कंधों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी
कत्ल हुए जज़्बों की कसम खाकर
बुझी हुई नजरों की कसम खाकर
हाथों पर पड़े गांठों की कसम खाकर
हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे तब तक
जब तक वीरू बकरिहा
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
जब तक बोने वाले खुद नहीं सूंघते
कि सूजी आंखों वाली
गांव की अध्यापिका का पति जब तक
युद्ध से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने भाइयों का गला घोंटने को मज़बूर हैं
कि दफ्तरों के बाबू
जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाकी है
जब बंदूक न हुई, तब तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वाले की
याद जिंदा रखने के लिए
हम लड़ेंगे
——————
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक्त निकाल लेना बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नजर में रुकी होती है
सबसे खतरनाक वो आंख होती है
जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता
सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती.
————
मैं घास हूं
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो हॉस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मेरा क्या करोगे
मैं तो घास हूं हर चीज पर उग आऊंगा
बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना जिला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी…
दो साल… दस साल बाद
सवारियां फिर किसी कंडक्टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहां हरे घास का जंगल है
मैं घास हूं, मैं अपना काम करूंगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊंगा.
—————–
भगत सिंह की शहादत पर पाश की कविता
उसकी शहादत के बाद बाकी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताजा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी की
देश सारा बच रहा बाकी
उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिडकी में
लोगों की आवाजें जम गयीं
उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आंसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की
उससे संबंधित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया
शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था
————
मैं पूछता हूं आसमान में उड़ते हुए सूरज से
क्या वक्त इसी का नाम है
कि घटनाएं कुचलती चली जाएं
मस्त हाथी की तरह
एक पूरे मनुष्य की चेतना ?
कि हर प्रश्न
काम में लगे जिस्म की गलती ही हो ?
क्यूं सुना दिया जाता है हर बार
पुराना चुटकुला
क्यूं कहा जाता है कि हम जिंदा हैं
जरा सोचो –
कि हममे से कितनों का नाता है
जिंदगी जैसी किसी वस्तु के साथ !
रब की वो कैसी रहमत है
जो कनक बोते फटे हुए हाथों-
और मंडी के बीचोबीच के तख्तपोश पर फैली हुई मांस की
उस पिलपली ढेरी पर,
एक ही समय होती है ?
आखिर क्यों
बैलों की घंटियां
और पानी निकालते इंजन के शोर में
घिरे हुए चेहरो पर जम गई है
एक चीखतीं खामोशी ?
कौन खा जाता है तल कर
मशीन मे चारा डाल रहे
कुतरे हुए अरमानों वाले डोलो की मछलियां ?
क्यों गिड़गिड़ाता है
मेरे गांव का किसान
एक मामूली से पुलिसए के आगे ?
क्यों किसी दरड़े जाते आदमी के चौंकने के लिए
हर वार को
कविता कह दिया जाता है?
मैं पूछता हूं आसमान में उड़ते हुए सूरज से