रावण के वंशज ‘असुर’ जिंदा हैं, उनकी बात भी सुनें

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देशभर में दशहरे पर रावण के पुतले जलाए जाएंगे, बुराई पर अच्छाई की जीत बतौर इस जश्न को हमेशा की तरह बताया जाएगा। लेकिन इस जश्न में आदिवासियों का असुर समुदाय शामिल नहीं होगा। यह समुदाय अपने पूर्वज रावण का स्मृति दिवस मनाएगा। इस समुदाय के अलावा भी दर्जनों जगह रावण और महिषासुर की पूजा होगी। दशहरे के जश्न में डूबे रहने वाले हिंदी पट्टी में भी एक हिस्सा है, जो रावण के पुतले का सालाना दहन का विरोध कर रहा है या रावण का पूजन करेगा। (Ravana Descendants Asuras Alive)

झारखंड के नेतरहाट में पहाड़ों में रहने वाले असुर आदिवासी अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। खनिज निकालने वाली कंपनियों की वजह से उनका जीना दुश्वार हो चुका है, इसके बावजूद वे अपनी प्राचीन तकनीक को बचाने की कोशिश में जुटे रहने के साथ ही प्रकृति से घुलमिल कर रहते हैं। अपनी परंपराओं और पूर्वजों से मिली सीख को सहेजकर आगे की पीढ़ी में प्रसार कर रहे हैं। इसी बुनियाद पर वे दशहरे पर रावण के पुतले के दहन और जश्न को गलत मानते हैं।

इस समुदाय की मुखर आवाज सुषमा असुर कहती हैं, ”मैंने स्कूल की किताबों में पढ़ा है कि देवताओं ने असुरों का संहार किया, हमारे पूर्वजों की सामूहिक हत्याएं कीं.”

उन्होंने कहा, ”हमारे नरंसहार करके विजय स्मृति में ही हिंदू दशहरा जैसे त्योहार मनाते हैं। हम अगर अपने पूर्वज रावण-महिषासुर की शहादत को याद करें तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मानव संसाधन मंत्री रहीं स्मृति ईरानी की महिषासुर शहादत दिवस मनाने को गलत मानने पर भी सुषमा असुर जवाबी पत्र लिखकर ऐतराज दर्ज कराया। इस समुदाय से जुड़े लोग बताते हैं कि महिषासुर की पूजा झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत की भी कई जगह होती है। (Ravana Descendants Asuras Alive)

Mahishasur statue in Mysore

कर्नाटक के मैसूर में उनकी विशाल प्रतिमा भी लगी है। असुर बच्चे मिट्टी से बने शेर के खिलौनों से खेलते तो हैं, लेकिन उनके सिर काट कर, क्योंकि यह माना जाता है कि शेर दुर्गा की सवारी है, जिसने उनके पुरखों का नरसंहार किया।

झारखंड में नेतरहाट की पहाड़ियों पर बसे असुर आदिवासी 2011 से विजयादशमी के दिन महिषासुर शहादत दिवस मना रहे हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। सुषमा असुर का कहना है कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था। वह महिलाओं पर हथियार नहीं उठाते थे इसलिए दुर्गा को आगे कर उनकी छल से हत्या कर दी गई। आर्यों-अनार्यों की लड़ाई में महिषासुर मार दिए गए।

साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने रांची के मोराबादी मैदान में होने वाले रावण दहन के कार्यक्रम में शामिल होने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि रावण आदिवासियों के पूर्वज हैं और वे उनका दहन नहीं कर सकते।

सुषमा असुर कहती हैं, ”जिनकी तकनीक ने दुनिया को बदल दिया सभ्यताएं उन्हें राक्षस, दैत्य, असुर कहती है। एक तस्वीर के आधार पर दावा करती हैं कि लोहा बनाने वाले असुर समुदाय का यह स्केच 1872 का है। तब जमशेद टाटा लौह अयस्क क्षेत्र के व्यापारी नहीं थे, बल्कि अफीम का कारोबार किया करते थे।” (Ravana Descendants Asuras Alive)

sketch of asur adivasi: courtesy: asur adivasi wisdom akhra

यहां भी होती है रावण की पूजा

महाराष्ट्र के ही आदिवासी बहुल अमरावती जिले के मेलघाट और गढ़चिरौली जिले के धरोरा के कुछ गांवों में रावण और उसके पुत्र मेघनाद की पूजा होती है। यह परंपरा कुर्कू और गोंड आदिवासियों में पीढ़ियों से प्रचलित है। हर साल होली के त्योहार के समय कुर्कू आदिवासी रावण पुत्र मेघनाद की पूजा करते हैं। मध्य प्रदेश के विदिशा, इंदौर के परदेशीपुरा और दमोह नगर के वाल्मीकि समाज और कान्यकुब्ज ब्राहमण रावण मंदिर में पूजा करते हैं। कई क्षेत्रों में दशहरे पर रावण का श्राद्घ किया जाता है।

उत्तरप्रदेश में कानपुर के पास रावण मंदिर है, जो दशहरे के मौके पर साल में एक दिन के लिए खुलता है। इलाहाबाद में कटरा रामलीला के पहले दिन हर साल रावण जुलूस निकाला जाता है। तमाम लोगों का यह भी मानना है कि रावण की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश है। (Ravana Descendants Asuras Alive)

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में शिवनगरी के नाम से मशहूर बैजनाथ कस्बे के तमाम लोग रावण के भक्त हैं। कर्नाटक के कोलार जिले में लोग फसल महोत्सव के दौरान रावण की पूजा करते हैं और जुलूस निकाला जाता है। इस लंकेश्वर महोत्सव के जुलूस में भगवान शिव के साथ रावण की प्रतिमा भी होती है। इसी राज्य के मंडया जिले के मालवल्ली तालुका में रावण का मंदिर भी है।

राजस्थान के जोधपुर जिले के मंदोदरी क्षेत्र में रावण एवं मंदोदरी के विवाह स्थल पर रावण की चवरी नामक एक छतरी मौजूद है। पुरातत्व विभाग की देखरेख में उसका प्रबंधन हो रहा है। शहर के चांदपोल क्षेत्र में महादेव अमरनाथ व नवग्रह मंदिर परिसर में रावण के आराध्य देव शिव एवं आराध्य देवी खारान्ना की मूर्तियां पहले से हैं और इसी परिसर में अब रावण का मंदिर बनाया गया है।

स्रोत: असुर आदिवासी विजडम अखड़ा व इंटरनेट पर मौजूद सामग्री


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