द लीडर : महात्मा ज्योतिबा फुले रुहेलखंड विश्वविद्यालय (MJPRU) के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर मुहम्मद इसरार खान ने उर्दू दिवस पर एक नज्म लिखी है. जिसमें उन्होंने उर्दू जबान को लेकर अपनी मुहब्बत और इसकी हालत, दोनों बयान करने की कोशिश की है. चूंकि वह अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं, और साहित्य में दिलचस्पी रखते हैं. उर्दू से इश्क का इजहार भी शायरी के अंदाज में किया है. पढ़िए उनकी ये नज्म. (Professor Mohammad Israr Khan)
सर पर रखा फ़रीज़ा कुछ यूँ अदा किया है !!
उर्दू ज़ुबाँ के हक़ में इक शे’अर लिख दिया है !!
टूटे हुए जिगर के टुकड़ों की ख़ैर माँगो !
उर्दू का घर सलामत दिल का यही ठिया है !!
हिंदी बहन के हाथों रिश्तों की लाज रखकर !
उर्दू ने ज़हर-ए-कारी चुपचाप पी लिया है !!३
यह बात बरहमन को अच्छी नहीं लगी है !
इस हाथ में ‘चिराग़ाँ’ इस हाथ में ‘दिया’ है !!
हाकिम का ग़म नहीं है अहल-ए-वतन से पूछो !
इक साथ में जिन्होंने इस ख़ाक़ को जिया है !!५
हर्फों में मुँह छिपाकर शर्मिंदा-ए-क़लम हूँ !
बाज़ार में खुले सर बिकने लगी हया है !!
बंदूक़ सर पे रखकर उर्दू को लूटते हो !
बोलूँ मैं किस ज़ुबाँ में हिन्दोस्ताँ नया है !!७
हरदम मुहब्बतों का दम घोटने की जिद है !
अहल-ए-वतन ने प्याला न जाने क्या पिया है !!
जिस दिन से यह सियासत दिल तोड़कर गई है !
‘इसरार’ मैंने अपना दामन नहीं सिया है !!९