लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने पर ओवैसी हमलावर : पीएम मोदी को बताया मोहल्ले के चाचा

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द लीडर | केंद्र सरकार ने लड़कियों के शादी की न्यूनतम कानूनी उम्र को बढ़ाकर पुरुषों के बराबर करने का फैसला किया है. इसका मतलब है कि पहले लड़कियों के शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल थी लेकिन अब इसे बढ़ाकर 21 साल किया जा सकता है. वहीं केंद्र इस फैसले का जहां कई लोगों ने स्वागत किया है वहीं कई लोगों ने इसका बहिष्कार भी किया है. इसी कड़ी में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए कहा कि पितृसत्तात्मकता मोदी सरकार की नीति बन चुकी है.

उन्होंने अपने एक ट्वीट में कहा, “महिलाओं के लिए शादी की न्यूनतम उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल करने के प्रस्ताव को मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है. ऐसी पितृसत्तात्मकता मोदी सरकार की नीति बन चुकी, इससे बेहतर करने की उम्मीद भी हम सरकार से करना छोड़ चुके हैं.”


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मोहल्ले के चाचा है मोदी सरकार

अमेरिका के कई राज्यों में शादी की उम्र 14 साल है. यूके और कनाडा में यह उम्र 16 साल है. न्यूजीलैंड में 16-19 साल में परिजनों की सहमति से शादी की जा सकती है. इन देशों ने मानव विकास में सुधार किया. ताकि मनमाने ढंग से शादी की सीमा करने के बजाय उन्हें फैसला लेने के काबिल बनाया जा सके. मोदी सरकार मोहल्ले के चाचा की तरह व्यवहार कर रहे हैं. वे यह करते हैं, कि हम क्या खाएं. हम किससे शादी करें. किस भगवान की पूजा करें.

‘सारे अधिकार हैं तो शादी का क्यों नहीं?’

सरकार के इस फैसले पर AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने गुस्सा जाहिर किया है. उन्होंने ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा और कहा कि सरकार पहले बताए कि 18 साल के बच्चों के ह्यूमन डेवलपमेंट के लिए आखिर क्या किया गया. साथ ही उन्होंने कहा कि 18 साल के नागरिक को सारे अधिकार दिये हैं, यहां तक कि लीविंग रिलेशन से जुड़ा कानून सरकार ने ही बनाया है.

‘सांसद-विधायक चुनने का हक’

ओवैसी ने कहा कि 18 साल के पुरुष और महिलाएं वोट देकर देश का प्रधानमंत्री चुन सकते हैं, सांसदों और विधायकों का चुनाव कर सकते हैं तो शादी क्यों नहीं कर सकते? उन्होंने कहा कि कानून होने के बाद भी अदालतों में दहेज एक्ट के कितने केस चल रहे हैं, कितनी महिलाओं के पति उन्हें दहेज के लिए मारते-पीटते हैं, कानून के बाद भी यह सब हो रहा है.

कानूनी उम्र मानदंड नहीं

ओवैसी ने कहा कि महिलाएं और पुरुष 18 साल की उम्र में गंभीर चीजों में भी बालिग माना जाता है. तो फिर शादी के लिए अंतर क्यों? कानूनी उम्र सिर्फ मानदंड नहीं है. शिक्षा, आर्थिक प्रगति और मानव विकास सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक लक्ष्य होना चाहिए. एआईएमआईएम चीफ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को वयस्कों के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है. अपने बारे में फैसला लेने की आजादी इस मौलिक अधिकार के लिए अहम है. इसमें एक साथी चुनने का अधिकार और बच्चे पैदा करने का फैसला लेने का अधिकार शामिल है.


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