द लीडर : नेपाल (Nepal) में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत-विरोधी आचरण से बाज नहीं आ रहे हैं. रविवार को नैशनल असेंबली (National Assembly ) की बैठक में ओली ने भारत से कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख क्षेत्र अपने कब्जे में लेने का संकल्प दोहराया है. पिछले साल भी ओली सरकार में भारत विरोधी स्वर सामने आए थे. (Nepal Pm Kalapani India)
नैशनल असेंबली की बैठक में उठाया गया ओली सरकार का ये कदम इसलिए भी चौंकाता है क्योंकि नेपाल में सियासी भूचला मचा है. पीएम ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने दिसंबर में संसद (Parliament) भंग कर दी थी. जिसका-विपक्ष (Opposition) ही नहीं, बल्कि ओली के नेतृत्व वाले सत्ताधारी दल का एक धड़ा विरोध में खड़ा है.

माई रिपब्लिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘ओली ने दावा किया है कि सुगौली समझौते के अनुसार महाकाली नदी के पूर्व स्थित ये तीनों क्षेत्र नेपाल के हैं. कूटनीतिक संवाद के जरिये इन्हें भारत से वापस लिया जाएगा. रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया कि 1962 में भारत-चीन जंग के बाद से भारतीय सैनिक जहां तैनात हुए, नेपाल शासकों ने उन क्षेत्रों को कभी हासिल करने का प्रयास नहीं किया.’
चीन के पाले में झुकते ओली
नेपाल में चीन (China) के बढ़ते दखल के कारण प्रधानमंत्री ओली की जबरदस्त आलोचना हो रही है. नेपाल के राजनीतिक हालात पर चीन लगातार नजर बनाए है. वो पीएम ओली और दूसरे धड़े के बीच सुलह के प्रयास में जुटा है. समझौते के लिए पहुंचे चीन के दूत के खिलाफ नेपाल में विरोध-प्रदर्शन किए गए हैं.
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नेपाल ने जारी किया था नक्शा
पिछले साल 2020 में नेपाल-भारत के बीच सीमा विवाद सामने आया था. ओली सरकार ने इसे सुलझाए बिना ही एक नया नक्शा जारी कर दिया था, जिसमें भारत के कुछ हिस्सों को नेपाल में दर्शाया गया था. इस सबसे बावजूद ओली सरकार का दावा है कि उनकी सरकार ने भारत-चीन दोनों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने पर जोर दिया है. ये अलग बात है कि अपने कार्यकाल में ओली चीन के ज्यादा निकट रहे हैं.