खुर्शीद अहमद
–घोड़ों पर सवार होकर हमारे बुजुर्ग सेंट्रल एशिया से आए. उनके एक हाथ में तलवार, तो दूसरे में कुरान थी. ये एतिहासिक किस्से सुनकर हमने कभी पलटकर नहीं पूछा कि फिर लगाम कौन से हाथ में थी? जिस तरह बॉलीवुड फिल्म में अभिनेता धर्मेंद्र शेर के मुंह में हाथ डालकर पटक देते हैं. और हम तालियां बजाने लग जाते. वैसे ही अपने बुजुर्गों के इस इतिहास पर भी खुश हो जाते हैं.
मुस्लिम इतिहासकारों ने इतिहास में विविधता के रंग भरे हैं. राजा और बादशाहों की तारीख तो सभी लिखते हैं. मुसलमानों ने सीरत लिखी. अंसाब यानी वंशों का इतिहास लिखा. सभ्यता, मानव विकास, अर्थशास्त्र की तारीख लिखी. अल असफहानी ने किताबुल अगानी लिखकर कला-शेर व शायरी और गाने-बजाने की तारीख लिख डाली. इल्मे हदीस वालों ने यानी मोहिद्दसीन ने अख्लाक-व्यवहार पर लिखा. और भी कई चीजों पर. (Muslim History Quran Sword)
लेकिन अफसोस कि ये किताबें उर्दू या हिंदी में उपलब्ध नहीं है. जो कुछ हैं भी तो उनसे संबंधित क्षेत्रों में काम करने वाले ही उनसे वास्ता रखते हैं. बाकी मैदान खाली था. जिस पर किस्सा-गो, जोशी तकरीर और नॉवेल लिखने वालों कब्जा जमा लिया.
उन्होंने इतिहास को ऐसे पेश किया, जैसे कोई बॉलीवुड फिल्म हो. जिसमें धर्मेंद्र शेर के मुंह में हाथ डालकर पटक देते हैं. सन्नी देवल नल उखाड़ लेते हैं. उसी तरह हमारे बुजुर्ग मध्य एशिया से जब आते थे, तो घोड़े पर सवार होकर आते. उनके एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में कुरान होती. ये सुनकर हम खुश हो जाते हैं. लेकिन कभी भी ये पलटकर नहीं पूछा कि अरे मियां-एक हाथ में तलवार दूसरे में कुरान, तो घोड़े की लगाम कहां रहती थी. (Muslim History Quran Sword)
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जब हीरो थे तो हीरोईन और विलेन भी चाहिए. हीरोईन के लिए यूहद व नसारा की लड़कियां होतीं. जो मुसलमानों के अख्लाक बिगाड़ने के लिए उन्हें इश्क के जाल में फंसाती रहीं. और भी तमाम तरह की साजिशों की कहानियां गढ़ी गईं.
ऐसी किताबों में कहा गया कि फलां बादशाह चटाई बुनते थे. और कोई बादशाह टोपी लिखकर तो कोई दूसरा काम करके खर्च चलाया करते थे. इस पर कभी ये नहीं सोचा कि बादशाह की ये खूबियां नहीं बल्कि कमियां हैं. ऐसे बादशाह तो अपनी जिम्मेवारियों के प्रति लापरवाह माने जाने चाहिए. (Muslim History Quran Sword)
इस तरह के इतिहास लेखन और बयानबाजी पर सर सैयद अहमद खां का ध्यान गया. उन्होंने इसके खतरे को भांपा और रोकने की कोशिश की. खुद भी सही इतिहास लिखा और अपने साथी, जिनमें अल्लामा शिबली नोमानी, प्रोफेसर आर्नोल्ड हैं, उनसे सही इतिहास लिखवाया.
मसलन, मुसलमानों की तरक्की व पिछड़ने पर डिप्टी नज़ीर अहमद को लिखने के लिए प्रेरित किया. तारीख से छेड़छाड़ किए बगैर कहानियां लिखने को प्रेरित किया शिबली नोमानी ने. यहां तक कि आजमगढ़ में दारुल मुसन्नफीन क़ायम की जिसका, मकसद भी इतिहास की किताबों से कचरा साफ करना था. (Muslim History Quran Sword)
किस्सा-गो, आलिम व मुस्लिम बुद्धिजीवी हर जगह हैं. लेकिन पंजाब में कुछ ज्यादा हैं. कारण क्या है, नहीं पता. लेकिन यूट्यूब व सोशल मीडिया के सहारे हम तक पहुंच गए हैं. हमें नशेड़ी बना दिया है. हम इनकी कहानियों के नशे में रहते हैं. सही इस्लामी तारीख बर्दाश्त नहीं कर पाते. (Muslim History Quran Sword)
दूसरी ओर कुछ बुद्धिजीवी हैं जो हीनभावना से ग्रस्त हैं. उन्हें हमारी अच्छी चीजें भी बुरी लगती हैं. इन बुद्धिजीवियों को हमारे अच्छे खाने व अच्छा पहनने तक से परेशानी होती है. यह इतिहास में मनमानी पहले ग्रुप से ज्यादा करते हैं. पर उनसे कम खतरनाक हैं क्योंकि इनकी सुनता कोई नहीं है.
इस लिए जब आप तारीख पढ़िए या सुनिए तो थोड़ा दिमाग का भी इस्तेमाल किजिए. बयान करने वाले या लिखने वाले की शख्सियत के प्रभाव में कम आइए.
खुर्शीद अहमद मूलरूप से यूपी के निवासी हैं और खाड़ी में कार्यरत हैं. इस्लामिक स्टडीज में स्नातक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)