मुहम्मद आज़म ख़ान सियासत के अर्श से फ़र्श तक

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Azam Khan Ganga Ram Hospital
समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान. फ़ाइल फ़ोटो

वसीम अख़्तर
The Leader. रामपुर के नवाबों की ईंट से ईंट बजाने के बाद फ़र्श से उठकर सियासत के अर्श पर पहुंचने वाले मुहम्मद आज़म ख़ान के सितारे गर्दिश में हैं. अब वो अर्श से फ़र्श की तरफ़ बढ़ रहे हैं या बढ़ा दिए गए हैं. भारतीय जनता पार्टी ने उनसे सियासी अदावत निकाली है, यह आज़म ख़ान और उनके चाहने वालों का शिकवा है. इसके जवाब में सफ़ाई यह है कि जो कुछ हुआ वो आज़म ख़ान के कर्मों का फल है. ख़ैर ऊरूज के बाद ज़वाल का सामना तो शहंशाहों को भी करना पड़ा है. तारीख़ इस बात की गवाह है.

Azam Khan Farooq Abdullah
आज़म ख़ान और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला.

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रामपुर ही कि बात करें तो रियासत ख़त्म होने के बाद भी नवाबों की की तूती बोला करती थी. ख़ुद लड़े तो ख़ुद जीते, दामाद के लिए कह दिया तो अवाम दामाद को जिताकर देश के सबसे बड़े एवान में भेजते रहे. यहां तक कि आज़ादी के बाद जब कांग्रेस को मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के लिए सुरक्षित सीट की तलाश थी तो उन्हें रामपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया. नवाबों के कहने पर रियाया ने उन्हें भी जिताकर भेजा. जब वक़्त ने करवट बदलनी शुरू की नवाब ख़ानदान की बहू बेगम नूरबानो चुनाव हारीं, जिनके शौहर नवाबज़ादा ज़ुल्फ़िक़ार अली ख़ान उर्फ मिक्की मियां पांच बार रामपुर से मेम्बर पार्लियामेंट रहे और वो ख़ुद दो बार सांसद रहीं. उनके बेटे क़ाज़िम अली ख़ान उर्फ नवेद मियां पांच बार विधायक बनने के बाद आख़िरी चुनाव हारे तो ज़मानत भी ज़ब्त करा बैठे. उनके साथ उनके बेटे हमज़ा मियां भी मात खा गए. इस तरह नवाब ख़ानदान का सियासी पतन हो गया. इधर नवाबों का रुतबा कम हो रहा था तो सियासी फ़लक पर आज़म ख़ान के सितारे जगमगा रहे थे.


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एक वक़्त वो भी आया जब आज़म ख़ान ख़ुद विधायक के बाद रामपुर से सांसद बने तो बेटे अब्दुल्ला आज़म विधायक हो गए थे और आज़म ख़ान की पत्नी डॉ. तज़ीन फ़ातिमा को समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा में भेज दिया. यानी प्रदेश के एवान से लेकर देश के एवान तक में आज़म ख़ान और उनका कुनबा आन-बान-शान से दाख़िल हो रहा था. इस सियासी मुक़ाम पर पहुंचने के बाद आज़म ख़ान का उतार शुरू हुआ. बेटे को कम उम्र में विधायक बनाने के इल्ज़ाम का मुक़दमा दर्ज होने के बाद वो बेटे अब्दुल्ला आज़म और पत्नी डॉ. तज़ीन फ़ातिमा के साथ जेल चले गए. वहां से बामुश्किल तमाम छूटे तो हेट स्पीच के मामले में तीन साल की रामपुर कोर्ट से सज़ा हो गई. जेल में रहकर जीती गई उनकी विधायकी चली गई. जानशीन मुक़र्रर करके अपनी जगह आसिम राजा शमसी को पहले लोकसभा और फिर विधानसभा का उपचुनाव लड़ाया को दोनों बार भाजपा के हार का सामना करना पड़ा.


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अब छजलैट में जाम लगाने के मुक़दमे में मुरादाबाद की स्पेशल एमपी एमएलए कोर्ट ने उन्हें और बेटे को भी सज़ा सुना दी है. हालांकि सज़ा दो साल की है लेकिन इतने भर से अब्दुल्ला आज़म की विधायकी जाने का इंतज़ाम हो गया, क्योंकि खतौली के भाजपा विधायक विक्रम सैनी को दो साल की सज़ा होने पर ही विधायकी से हाथ धोना पड़ा था. मतलब साफ है कि आज़म ख़ान और उनके परिवार के किसी सदस्य के पास अब किसी भी एवान में दाख़िल होने की अथॉरिटी नहीं रही. अब यह आज़म ख़ान की आधी सदी की सियासत का दि एंड है या क़ुदरत ने उनकी तक़दीर में ख़राब के बाद अच्छे दिनों की इबारत अभी बाक़ी रखी है, यह वक़्त बताएगा. फ़िलहाल तो आज़म ख़ान के लिए सख़्त इम्तहान की घड़ी है, तब जबकि ग़ुस्सा उनका मिजाज़ है और अब तो सेहत भी साथ नहीं दे रही. उनके लिए सब्र ही बचता है और ऐसा कर भी रहे हैं. गोपालदास नीरज की इन पंक्तियों की तरह-कारवां गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे. आज़म ख़ान और उनका परिवार इस ग़ुबार के छटने की दुआ ही कर सकता है. बिला शुबह वो अपने रब से यह इल्तिजा कर भी रहे होंगे…