अमेरिकी शासकों की सनक दिखाती मार्टिन स्कॉर्सेज़ी की फिल्म ‘शटर आईलैंड’

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अभिनव सिन्हा-

‘शटर आईलैण्ड’ एक मनोवैज्ञानिक फिल्म है जो कि कई स्तरों पर काम करती है और इसमें बहुस्वरीयता के ज़बर्दस्त तत्व मौजूद हैं। अगर उनमें निहित रूपकों और इस कल्पना के साथ यथार्थ की उस बाइनरी को देखें जो कि यह फिल्म हमारे सामने पेश करती है, तो फिल्म का संदेश बिल्कुल साफ़ हो जाता है। आबू ग़रीब, इराक़, अफगानिकस्तान आदि सबकुछ मिथ है और राजनीतिक पागलों की दिमाग़ की सनक है!

लेकिन हम फिल्म को देखते हुए जानते हैं कि इसमें कहानी और प्लॉट के बाहर बहुत-कुछ है; बल्कि कहना चाहिए कि फिल्म का असली संदेश इसकी कहानी में है ही नहीं। वास्तव में, इस फिल्म का संदेश लेडिस की फन्तासी में है, और इस बात में है कि जो वह सोच रहा है वह यथार्थ नहीं बल्कि फन्तासी है। यहां सबसे अहम बात यह है कि लेडिस की फन्तासी के तौर पर किस कहानी को चुना गया है।

लेडिस ने एक फन्तासी की दुनिया इसलिए रची थी ताकि वह अपने यथार्थ से मुक्ति पा सके, उससे दूर जा सके। ज़िस उपन्यास पर यह फिल्म बनी है उसका लेखक या फिल्म का निर्देशक इस काम के लिए कोई भी फन्तासी रच सकता था, जैसे कि लेडिस अपने आपको स्वयं एक डॉक्टर समझता या फिर नर्स समझता या कुछ और।

जो फन्तासी रची गई है, उसमें वह अमेरिकी फेडरल मार्शल (एक पुलिस वाला) है जो कि एक ऐसे संस्थान की जांच कर रहा है, ज़िसके बारे में उसे शक़ है कि वहां अमेरिकी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों के दिमाग़ों पर प्रयोग कर रही है; लेडिस की कल्पना में यह प्रयोग अमेरिकी सरकार द्वारा 1950 के दशक में भर्ती किये गये भूतपूर्व नात्सी डॉक्टर डा. नेरिंग द्वारा किये जा रहे हैं; इसमें उसे एक समाजवादी नौजवान मिलता है (नॉइस) जो उसे बताता है कि ऐशक्लिफ़ अस्पताल में उसके ऊपर भी प्रयोग किए गए हैं और वह किसी तरह से वहां से निकलकर एक सामान्य जेल में पहुंचा था; उसकी कल्पना में लेडिस का एक पुलिस वाला सहकर्मी उसे बताता है कि ऐशक्लिफ़ अस्पताल की फण्डिंग मैकार्थी काल की कुख्यात ‘हुआक’ (हाउस अनअमेरिकन ऐक्टिविटीज़ कमिटी) की ओर से आती है; और अपनी फन्तासी में जांच-पड़ताल करते हुए लेडिस को यह पूरा विश्वास हो जाता है कि ऐशक्लिफ अस्पताल में वाकई राजनीतिक विरोधियों के मस्तिष्क पर प्रयोग करके उन्हें राजनीतिक तौर पर निष्क्रिय और आज्ञाकारी बनाया जा रहा है।

लेडिस अपनी कल्पना में ही अमेरिकी सत्ता द्वारा किये जा रहे इस बर्बर प्रयोग की तुलना नात्सियों के यातना शिविरों और सोवियत संघ के गुलाग (इसके बिना हॉलीवुड कैसे रह सकता है; सोवियत संघ के फेटिश से वह मुक्त ही नहीं हो पा रहा है!) से करता है। यह पूरी फन्तासी तार्किक रूप से बिल्कुल पूर्ण है। और वास्तव में, अमेरिकी इतिहास में अमेरिकी पूँजीवाद द्वारा ऐसे बर्बर, अमानवीय कृत्यों के ठोस प्रमाण भी मौजूद हैं।

एमके-अल्ट्रा नामक एक ऐसा ही कार्यक्रम अमेरिकी सरकार ने 1950 के दशक में चलाया था, ज़िसमें राजनीतिक कैदियों पर प्रयोग किये जाते थे और उनमें मनोवैज्ञानिक यातना के ज़रिए व्यवहार-परिवर्तन किए जाते थे। यह कार्यक्रम सीआईए का था। उसके बाद भी अमेरिकी सरकार कम्युनिस्टों के दमन के लिए ऐसे तरीकों का बार-बार इस्तेमाल करती रही है। और फिल्म में लेडिस की फन्तासी बिल्कुल यही है।

हमें यह नहीं बताया जाता है कि उस समय तक ऐसी चीज़ें वास्तव में हो रही थीं। फिल्म की कहानी 1954 की है और लेडिस अस्पताल में 1952 से है। उस समय अमेरिकी सरकार के इन कुकर्मों के बारे में कोई विशेष जानकारी सामने नहीं आई थी। लेकिन लेडिस की यही फन्तासी है। और वास्तव में ऐसी चीज़ें हो भी रही थीं।

अंत में पता चलता है कि लेडिस जो कुछ सोच रहा था वह महज़ उसकी कल्पना की उड़ान थी। और यह कल्पना क्या थी? यह कल्पना थी अमेरिकी साम्राज्यवाद द्वारा किए जा रहे कुकर्मों के बारे में! यातना शिविर, राजनीतिक कैदियों पर बर्बर चिकित्सीय प्रयोग, उनमें व्यवहारगत परिवर्तन लाकर उन्हें आज्ञाकारी और दासवत बनान- यह सब कल्पना है! और निर्देशक इस कल्पना को बारीकियों में जाकर विकसित करता है।

जब चट्टान पर मौजूद गुफ़ा में टेड एक काल्पनिक महिला से मिलता है जो अपने आपको डा. रेचल सोलान्दो बताती है, तो वह उसे बताती है कि पूरे अस्पताल का स्टाफ सरकार की साज़िश के बारे में जानता है, और तुम किसी पर भरोसा नहीं कर सकते। एक भयावह माहौल पैदा किया जाता है। साम्राज्यवाद के प्रति भय का भाव पैदा किया जाता है। नायक सरकार के कुकर्मों का पर्दाफाश करने के प्रति कटिबद्ध है; लेकिन अन्त में सब बेकार! क्योंकि अन्त में पता चलता है कि नायक स्वयं एक पागल होता है।

वास्तविकता और कल्पना की इस बाइनरी का इस्तेमाल किसलिए किया गया है? जैसा कि हमने पहले कहा था कि फिल्म के प्लॉट और कहानी में ऐसा कुछ ख़ास नहीं है ज़िसे कि विनिर्मित किया जाय। दरअसल, इस फिल्म में जो विनिर्मित करने लिए है, वह यह बाइनरी ही है, जोकि लेडिस के यथार्थ और कल्पना के बीच पैदा की गई है। वास्तव में, यह उसके पागलपन का लक्षण है, सिम्प्टम है। अब इस बाइनरी और इस लक्षण को सामने रखते हुए यह सवाल पूछा जा सकता है कि फिल्म इसके ज़रिए किस चीज़ का रूपक पेश कर रही है, किस चीज़ को मेटाफराइज़ कर रही है?

यहीं पर फिल्म का संदेश आता है। और यही पर इस संदेश की समकालीनता प्रकट होती है। इस बाइनरी में कल्पना नुमाइंदगी करती है अमेरिकी साम्राज्यवाद के कुकर्मों के यथार्थ की, न सिर्फ 1954 के यथार्थ की बल्कि आज के यथार्थ की! यह महज़ इत्तेफाक नहीं है कि ऐशक्लिफ की भौतिक संरचना में कई ऐसे तत्व मिलते हैं जो कि अबू गरेब के यातना शिविर से मिलते-जुलते हैं। इस कल्पना में अमेरिकी साम्राज्यवाद के सभी कुकर्म यथार्थवादी तरीके से प्रस्तुत होते हैं। लेकिन अन्ततः कल्पना एक कल्पना होती है। और बाइनरी का दूसरा छोर क्या है? यथार्थ! यथार्थ में यह कल्पना करने वाला व्यक्ति कौन है- एक पागल! यह पागल पहले वाकई द्वितीय विश्वयुद्ध का अमेरिकी सैनिक था, जो कि दकाऊ के नात्सी यातना शिविर की मुक्ति में शामिल था। उसके बाद वह पुलिस की नौकरी भी करता है। लेकिन जब उसकी पत्नी उसके बच्चों की हत्या करती है, और वह अपनी पत्नी की हत्या करता है, उसके बाद से वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है और फिर उसे ऐशक्लिफ लाया जाता है।

और यहां अपने मानसिक आघात से निपटने के लिए जो काल्पनिक समानान्तर दुनिया वह रचता है, उसमें यथार्थ और कल्पना के तत्व अन्तर्गुंथित हो जाते हैं। लेकिन इसमें जो शुद्ध कल्पना का तत्व है, वह अमेरिकी साम्राज्यवाद के कुकर्मों के बारे में है। ऐसे में, हमारे सामने यह फिल्म जो रूपक रखती है, उसका नतीजा या निष्कर्ष क्या है? वह यह है कि जो कोई व्यक्ति अमेरिकी बुर्जुआ जनवाद के इन पहलुओं की बात करता है, वह महज़ इनकी कल्पना कर रहा है। अमेरिकी जनवाद ऐसा नहीं करता! अमेरिका में ऐसा नहीं होता! निश्चित तौर पर, युद्ध के दौरान फिल्म में अमेरिकी सैनिकों को भी नात्सी सैनिकों का नरसंहार करते हुए दिखलाया जाता है। लेकिन साथ में नात्सियों द्वारा किये गए कत्ले-आम का चित्र भी हमारे सामने प्रस्तुत किया जाता है, जो कि इस नरसंहार का आंशिक और सशर्त वैधीकरण करता है। निश्चित तौर पर, फिल्म इस कृत्य को सीधे तौर पर सही नहीं ठहराती है।

ज़िन स्थितियों में आत्मसमर्पण करने वाले नात्सी सैनिकों का नरसंहार दिखाया गया है, वह भी ग़ौर करने लायक है। आत्मसमर्पण करने वाले नात्सी सैनिकों में से एक भागने की कोशिश करता है, ज़िस पर एक अमेरिकी सैनिक गोली चलाता है। इसके बाद पैदा हुई अराजकता में सभी अमेरिकी सैनिक आत्मसमर्पण कर चुके नात्सियों पर गोली चलाने लगते हैं और संयोगवश एक नरसंहार हो जाता है। इसके पहले अमेरिकी सैनिक नात्सी सैनिकों को गिरफ्तार करने के लिए उनकी कतारें लगवा रहे हैं, या उन्हें मारने के लिए, यह फिल्म में अस्पष्ट ही छोड़ दिया गया है। और इस घटना को लेकर नायक के मन में एक प्रकार का अपराध-बोध रह जाता है, ज़िसके कारण उसे बाद में शराब की लत भी लग जाती है।

इस लत के कारण ही वह अपनी पत्नी की आत्मघाती और पागलपन भरी प्रवृत्तियों पर ग़ौर नहीं करता, ज़िसकी कीमत अन्त में उसे अपने पूरे परिवार की मौत के साथ चुकानी पड़ती है। यही उसके मानसिक आघात का कारण बनता है, और इस मानसिक आघात के कारण ही वह अमेरिकी साम्राज्यवाद की अतियों और अत्याचारों की कल्पना रचता है। यहां ज़िस प्रकार की कारणात्मकता निर्मित की गयी है, वह स्पष्ट तौर पर यह दिखा रही है कि अमेरिका मुक्तिदाता के तौर पर अपने मिशन के दौरान युद्ध की परिस्थितियों में कुछ आकस्मिक स्थितियों में कुछ अतिरेक पर चला जाता है, लेकिन यह मुक्तिदाता के तौर पर उसके मिशन का एक अंग है।

इसका दूसरा कारण यह भी है कि इस मिशन को अंजाम देने वाले लोग इंसान हैं, ज़िनमें अच्छाई और बुराई दोनों की प्रवृत्तियां मौजूद हैं। कई मौकों पर चीज़ें इन व्यक्तियों की अच्छाइयों या बुराइयों से निर्धारित होती हैं, न कि अमेरिकी सत्ता के इरादों से। इसलिए ऐसे में जो परस्पर क्षति (कोलैटरल डैमेज) होता है, उससे बचा नहीं जा सकता है। लेकिन कुछ लोग इन अनिवार्य बुराइयों का सामान्यीकरण करते हैं और उसे अमेरिकी जनवाद पर थोप देते हैं। जैसा कि फिल्म में टेडी डेनियल्स उर्फ एण्ड्रू लेडिस करता है। उसकी इस कल्पना को मसाला देने का काम एक अन्य आपराधिक पागल नॉइस करता है, जो कई बार अपराधों को अंजाम दे चुका है। इसे लेडिस एक समाजवादी युवा मानता है, ज़िसे कि अमेरिकी सरकार ने ऐशक्लिफ में इसलिए भेजा है कि उसके ऊपर प्रयोग करके उसे आज्ञाकारी और दासवत बनाया जाय।

ऐसे में, अप्रत्यक्ष तौर पर फिल्म का संदेश यह बन जाता है कि अमेरिकी साम्राज्यवाद पर ज़िन अपराधों का आरोप लगाया जाता है, दरअसल वे कल्पनाएं हैं। वे मानसिक निर्मितियां हैं। और ऐसी कल्पनाएँ करने वाले लोग पागल हैं, जो कि निजी मानसिक आघात के कारण व्यवस्था के विरोधी बन गये हैं।

फिल्म ऐसे लोगों को शैतान या दरिंदे के रूप में पेश नहीं करती। फिल्म इन लोगों के प्रति दया का भाव पैदा करती है। मिसाल के तौर पर, फिल्म के अन्तिम दृश्यों में जब लेडिस लाइट हाउस पर पहुँच जाता है और वहां उसे अपनी फन्तासी और मतिभ्रम की असलियत के बारे में पता चलता है, तो दर्शक और कुछ नहीं कर पाता, बस नायक के साथ एक सहानुभूति और उसके प्रति एक दयाभाव का अनुभव करता है। वह चाहता है कि टेडी डेनियल्स ही सही हो, और ऐशक्लिफ वाकई एक षड्यंत्र का ही हिस्सा हो।

यह दर्शक की इच्छा या आकांक्षा बन जाती है। लेकिन इन आकांक्षाओं पर फिल्म अन्त तक आघात करती रहती है, और बताती है कि सच यही है कि टेडी डेनियल्स वास्तव में लेडिस है, जो कि एक पागल है। उस पर आप दया अवश्य कर सकते हैं, लेकिन उसका एक ही सम्भव अन्त है। उसकी कोई मदद नहीं कर सकता है। और फिल्म के अन्त में लेडिस को लोबोटोमाइज़ करने के लिए ले जाया जाता है।

यह ऐसे सभी लोगों का इलाज है जो आज अमेरिकी समाज में अपनी अन्तश्चेतना के साथ समझौता नहीं कर रहे हैं। जो अमेरिकी साम्राज्यवाद और देश के भीतर अमेरिकी सत्ता की दमनकारी नीतियों का विरोध कर रहे हैं। जो आबू गरेब पर सवाल खड़ा कर रहे हैं, जो सीआईए के गुप्त तानाशाहाना गतिविधियों पर उंगली उठा रहे हैं, और जो इराक़ और अफगानिस्तान पर अमेरिका द्वारा थोपे गये आपराधिक युद्धों पर सवाल उठा रहे हैं। अमेरिकी साम्राज्यवादी की अमानवीयता और बर्बरता उनकी कल्पना है। निश्चित तौर पर, यह भले लोगों की कल्पना है, लेकिन ये भले लोग असुधारणीय रूप से मानसिक रोगग्रस्त हैं!

यहां पर एक और चीज़ ग़ौर करने वाली है। ऐशक्लिफ़ में जो मनोचिकित्सक मौजूद हैं, उनके बीच एक बहस चल रही है। ऐसे पागलों के इलाज के लिए कौन-सी रणनीति अपनायी जानी चाहिए? क्या उन्हें सीधे लोबोटोमाइज़ कर दिया जाना चाहिए, जैसा कि डा. नेरिंग का मत है? या फिर उन्हें बातचीत और दवाइयों द्वारा ठीक करने का प्रयास किया जाना चाहिए, जैसा कि डा. कॉली का विचार है?

वास्तव में, लेडिस का केस इस बहस को सुलझाने का निर्धारक उपकरण बन जाता है। लेडिस के केस में डा. कॉली अपने तरीके की आखि़री आज़माइश करते हैं। डा. कॉली का मानना था कि अगर लेडिस को अपनी फन्तासी में जीने का अवसर दिया जाय और उसके साथ सहयोग किया जाय, तो अन्त में इस फन्तासी को वह ऐसे छोर तक ले जायेगा, ज़िससे कि अचानक उसे अहसास हो जायेगा कि उसकी कल्पना झूठी है, और वास्तव में दुनिया वैसी नहीं है, जैसा कि वह सोचता है!

डा. नेरिंग का शुरू से ही इस तरीके पर भरोसा नहीं है, और उसका मानना है कि ऐसे मरीज़ों (राजनीतिक विरोधियों) को सीधे लोबोटोमाइज़ कर दिया जाना चाहिए, यानी कि पहले ही निर्णायक कदम उठाकर उन्हें आज्ञाकारी और दासवत बना दिया जाना चाहिए।

अन्त में, डा. कॉली की योजना सफल नहीं हो पाती है। क्योंकि लेडिस अन्तिम दृश्य में यह समझ चुका होता है कि वास्तविकता क्या है और उसकी कल्पना क्या थी, लेकिन फिर भी वह ऐसा नाटक करता है, मानो वह फिर से अपनी फन्तासी की दुनिया में लौट गया है। इसका एक पाठ यह हो सकता है कि लेडिस के लिए अपने परिवार की मौत के मानसिक आघात के साथ जीना सम्भव नहीं था, इसलिए वह टेडी डेनियल्स के रूप में ही मरना चाहता है।

इसका एक दूसरा पाठ यह भी हो सकता है कि अमेरिकी समाज में अमेरिकी व्यवस्था के प्रति मौजूद राजनीतिक विरोध, विशेष तौर पर कम्युनिस्ट विरोध, अपनी अर्थहीनता को समझ लेने के बाद भी अपनी न “सुधरने” की ज़िद पर अड़ा रहता है, ज़िसके कारण अन्त में उसका एक अनुदारवादी समाधान निकालना पड़ता है, यानी कि राजनीतिक लोबोटोमाइज़ेशन, जो आबू गरेब जैसी जेलों और यातना शिविरों के रूप में भी हो सकता है। यहां डा. कॉली अमेरिकी राजनीति में, ख़ास तौर पर, डेमोक्रैटों के बीच मौजूद उदारवादियों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि डा. नेरिंग कट्टरपंथी रिपब्लिकनों का प्रतिनिधित्व करता है।

किसी भी प्रकार के ख़तरनाक राजनीतिक प्रतिरोध से बुर्जुआ जनवाद उदारतापूर्ण ढंग से नहीं निपट सकता, क्योंकि उनसे वैसे निपटा ही नहीं जा सकता है। उनसे निपटने के लिए डा. कॉली जैसे लोगों की ज़रूरत नहीं है, बल्कि डा. नेरिंग जैसे लोगों की ज़रूरत है। उनके तरीके अतिवादी हो सकते हैं, तकलीफ़देह हो सकते हैं, बुरे और अनुदार दिख सकते हैं! लेकिन अगर दुनिया के सबसे बड़े बुर्जुआ जनवाद को कम्युनिस्ट ख़तरे से बचाना है, अगर “तार्किक चयन करने वाले व्यक्ति” की सामूहिकता, समानता आदि के ख़तरनाक सिद्धान्तों से रक्षा करनी है, तो व्यवस्था की बागडोर को डा. नेरिंग जैसे लोगों के हाथों में सौंपना पड़ेगा।

डा. कॉली के रास्ते की हार और डा. नेरिंग के रास्ते की विजय इसी बात का प्रतीक है। ये दोनों व्यवस्था का ही अंग हैं, दोनों डॉक्टर हैं, और दोनों अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। दोनों की पहुँच में भिन्नता है, और इन्हें देखकर (ख़ास तौर पर, जब तूफान की स्थितियों में वॉर्ड सी के मरीज़ों की सुरक्षा को लेकर उनके बीच बहस हो रही होती है) एकदम से बिल क्लिण्टन या ओबामा जैसे एक व्यक्ति और दूसरी ओर जॉर्ज डब्ल्यू. बुश या डिक चेनी जैसे एक व्यक्ति का ख़याल दिमाग़ में बरबस ही उभर आता है। उनकी पूरी तर्कपद्धति वही है।

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डा. कॉली मानवतावादी तरीके से उनकी जानें बचाने की बात कर रहे हैं, जबकि डा. नेरिंग की दलील है कि उनकी जान बचाने के चक्कर में अगर किसी बड़े नुकसान की सम्भावना हो तो उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। लेकिन किसी भी किस्म पर ढांचा सुरक्षित रहना चाहिए। इसलिए इस स्तर पर भी फिल्म का सन्देश बिल्कुल स्पष्ट है।

बुर्जुआ जनवाद उदारतावाद के बूते नहीं चल सकता, बल्कि व्यवस्था को लागू करने के लिए ठण्डी निर्णायकता रखने वाले व्यक्तियों के बूते चल सकता है, चाहे वे ऐसे कदम ही क्यों न उठायें जो कि कई बार बर्बर दिख सकते हैं। लेकिन ऐसा वे महज़ व्यापक कल्याण के लिए करते हैं, जैसे कि अमेरिका आबू गरेब जैसी जेलों में जो यातनाएं कैदियों को देता है, वे प्रत्यक्ष तौर पर बर्बर या क्रूर दिख सकती हैं, लेकिन वह अनिवार्य बुराई है। इसका कोई विकल्प नहीं है, और यह कार्रवाइयां व्यापक कल्याण के लिए की जाती हैं!

कुल मिलाकर, यह फिल्म साम्राज्यवाद, दमन, उत्पीड़न, शोषण और लूट को एक मिथक बना देती है। जो भी इन पर भरोसा करता है या ऐसे मिथक फैलाता है, वह आपराधिक रूप से पागल है। दूसरी बात, ऐसे पागलों का इलाज डेमोक्रैटों वाले उदारतावाद और मानवतावाद के बूते नहीं किया जा सकता है।

ऐसे पागल अक्सर भले लेकिन भटके हुए, मतिभ्रम के शिकार बेचारे लोग होते हैं। लेकिन, इनका कोई इलाज नहीं हो सकता और अगर इन्हें खुला छोड़ दिया गया कि वे अपनी फन्तासी में ज़ियें, तो वे सभ्य बुर्जुआ नागरिक समाज के लिए एक ख़तरा बन जायेंगे, जैसा कि डा. कॉली लेडिस को अन्तिम दृश्यों में से एक में बताते हैं, कि वह ऐशक्लिफ का सबसे ख़तरनाक मरीज़ है क्योंकि वह ‘ट्रेण्ड’ है, ‘चालाक’ है और उन्नत है।

इसलिए ऐसे मतिभ्रम के शिकार आपराधिक प्रवृत्ति वाले पागलों का एक ही इलाज है, कि उनके साथ सख़्ती के साथ पेश आया जाय। और यह काम अमेरिका के डेमोक्रैट नहीं कर सकते हैं। यह काम रिपब्लिकन ही करेंगे! एक दृश्य में लेडिस डा. कॉली को धन्यवाद देता है और कहता है, “आपने हमेशा मेरा साथ दिया है। जब किसी ने मेरा साथ नहीं दिया तो आपने दिया है।” यह बयान भी एक प्रतीकात्मक बयान है, ज़िसे आराम से समझा जा सकता है।

अमेरिका का कोई भी रैडिकल जो व्यवस्था परिवर्तन का पक्ष चुनता है, वह अपने पकड़े जाने, अपने सुधार की प्रक्रिया आदि के दौरान अमेरिका में मौजूद उदारवादियों (विशेषकर डेमोक्रैटों, और उसमें भी विशेषकर हॉलीवुड में भरे उदारवादी डेमोक्रैटों, जैसे जॉर्ज क्लूनी, हैले बेरी, आदि) को कभी भी ऐसा धन्यवाद ज्ञापन कर सकते हैं!

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