जस्टिस मार्केंडय काटजू
भाजपा पर अक्सर फासीवादी होने का आरोप लगाया जाता है. ये सच भी है. लेकिन ममता बनर्जी भी किसी फासीवादी से कम नहीं हैं. और वह असहमित-असंतोष को सहन नहीं कर सकती हैं. यहां तक कि जो भी उनकी आलोचना करता है. वो अक्सर जेल में बंद नजर आता है. जादौपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महामात्रा का ही उदाहरण ले लीजिए.
प्रोफेसर अंबिकेश को केवल इसलिए जेल में डाल दिया गया था, क्योंकि उन्होंने ममता बनर्जी के कुछ कार्टून सोशल मीडिया पर साझा कर दिए थे. दूसरा उदाहरण सिलादित्य चौधरी-जोकि एक किसान है-का सामने है. सिलादित्रू ने ममता से कहा था कि उन्होंने अपने चुनावी वायदे पर अमल नहीं किया है. इतने भर से चौधरी को माओवादी घोषित करार दे दिया गया. आखिरकार उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया.
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बहुत से लड़के, जिन्होंने ममता बनर्जी के सामने जयश्रीराम के नारे लगाए थे. उन्हें भी गिरफ्तार किया गया. ये सब ममता के इशारे पर हुआ. 2012 में जब कोलकाता के पार्क स्ट्रीट में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ. ममता ने उस घटना को मनगढ़ंत करार देकर किनारा कर लिया था. लेकिन जब एक बहादुर पुलिस अफसर दमयंती सेन ने इसकी जांच के आदेश पर जोर दिया तो ममता ने तत्काल उनका तबादला कर दिया था. ये सब घटनाएं बताती हैं कि ममता बनर्जी फासीवादी से कम नहीं है.
दरअसल, सच्चाई यह है कि ममता अभिमानी हैं. जनमानस की भारी समस्याओं के समाधान के लिए उनके दिमाग में कोई विचार नहीं है. सिवाय (रबींद्र संगीत की खुराक के अलावा) के. हालांकि पश्चिम बंगाल में 28 प्रतिशत मुस्लिमों ने उन्हें जमकर वोट दिया है. क्योंकि मुसलमानों का एक ही उद्देश्य है. वो ये कि किसी तरह भाजपा को हराना है. और कई हिंदू बंगालियों ने भी हाल के चुनावों में उनके लिए भी मतदान किया. ये सोचकर कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है पश्चिम बंगाल वास्तव पर दिल्ली से राज होगा. यानी गैर बंगाली लोगों द्वारा जो बंगाली भी नहीं बोलते हैं-वे बंगाल पर शासन करेंगे.
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लेकिन अब जब टीएमसी फिर से बड़े बहुमत के साथ सत्ता में आई है, तो जिन्न बक्से से बाहर आ गया है. जनवरी, 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद बर्बरता शुरू हुई थी. टीएमसी के गुंडों ने पहले ही अपना which खेला ’शुरू कर दिया है.
(लेखक सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रहे हैं.)