कौन हैं गुल मकई…? जिनकी डायरी ने दुनिया भर में छेड़ दी थी लड़कियों की शिक्षा को लेकर नई बहस

साल था 2009… जब पहली बार गुल मकई की डायरी प्रकाशित हुई. जिसने पाकिस्तान की स्वात घाटी की कहानी दुनिया के सामने रखी कि कैसे वहां लोगों की जिंदगी तालिबानी आतंकियों के साए में गुजर रही थी. कैसे लड़कियों को शिक्षा तक का अधिकार नहीं मिल पा रहा था.

इस डायरी को एशिया समेत पूरी दुनिया में सराहा गया तो हर सप्ताह इसका प्रकाशन किया जाने लगा. यह डायरी का ही असर था कि करीब तीन महीने बाद पाकिस्तानी फौज ने स्वात घाटी को तालिबानियों से मुक्त कर दिया. जिससे एक बार फिर वहां जिंदगी पुराने ढर्रे पर लौटने लगी.

इस डायरी को लिखने और लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज बुलंद करने पर गुल मकई को 2012 में तालिबानी आतंकियों ने गोली मार दी. लंबे समय तक उन्हें अस्पताल में मौत से संघर्ष करना पड़ा. लेकिन गुल मकई ने हिम्मत नहीं हारी. वह स्वस्थ होने के बाद दोबारा लड़कियों की शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में लग गई है.

जिस गुल मकई ने लड़कियों की पढ़ाई के लिए नई बहस छेड़ दी. वह काेई और नहीं, बल्कि सबसे कम उम्र में नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाली मलाला यूसफजई है. संयुक्त राष्ट्र ने उनके सम्मान में हर वर्ष 12 जुलाई को मलाला डे घोषित किया है. क्योंकि इसी दिन उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में लड़कियों की शिक्षा पर मशहूर स्पीच दी थी और वह इसी दिन अपना जन्मदिन भी मनाती है.

आइए आपको बताते हैं कि मलाला ने कैसे और क्यों गुल मकई के नाम से डायरी लिखना शुरू की थी? और इसका क्या असर हुआ.

किसने सोचा डायरी लिखवाने का आइडिया

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2008 में पाकिस्तान के स्वात इलाके में तालिबानी चरमपंथी हावी थे. कुछ सरकारी इमारतों को छोड़कर उनका हर जगह क़ब्ज़ा हो गया था. जिससे हालात बदतर होते गए थे. तालिबानी चरमपंथियों ने लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस पर बीबीसी उर्दू के पत्रकार अब्दुल हई काकड़ को लगा कि जिन पर यह सब गुज़र रही है, उनकी आवाज़ को सामने लाया जाए.

कैसे हुई डायरी की शुरूआत

मलाला के पिता ज़ियाउद्दीन को अब्दुल पहले से जानने थे, जो स्वात में एक स्कूल का संचालन करते थे. अब्दुल ने मलाला के पिता से बात की तो उन्होंने एक बच्ची का नंबर उन्हें दिया. पहले तो वह बच्ची डायरी लिखने को राज़ी हो गई, मगर बाद में तालिबान के डर से मना कर दिया. अब्दुल ने जब मलाला के पिता से दोबारा संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि उनकी बेटी मलाला भी तालिबान के शिक्षा पर रोक लगाने से दुखी है. अगर उन्हें एतराज न हो तो मलाला डायरी लिख सकती है.

इसलिए मलाला को दिया गुल मकई नाम

इसके बाद उन्होंने मलाला से डायरी के बारे में बात की. उस वक्त स्वात घाटी में इंटरनेट या फैक्स की सुविधाएं बहुत कम हुआ करती थीं इसलिए अब्दुल को फोन पर ही मलाला से बात करके डायरी के मैटर को उर्दू में ट्रांसलेट करना था. अब्दुल को लगा कि वह बीबीसी उर्दू के लिए लिखते हैं. खुफिया एजेंसियां उनके फोन रिकार्ड खंगालेंगी तो मलाला को खतरा हो सकता है. इसलिए अब्दुल पत्नी के फोन से मलाला को काॅल करते थे. उन्होंने ही मलाला को गुल मकई नाम दिया था. मक्के के फूल को पश्तो में गुल मकई कहा जाता है. मलाला ने अपने नाम का जिक्र करने से मना नहीं किया था, लेकिन अब्दुल ने उनकी सुरक्षा के लिए ऐसा किया था.

धीरे-धीरे डायरी साउथ एशिया में भी प्रकाशित होने लगी. साथ ही रेडियो पर भी जारी होने लगी. जिसका प्रभाव भी दिखने लगा. दो-तीन महीने बाद स्वात से पाकिस्तानी फौज ने तालिबानी चरमपंथियों को खदेड़ दिया और दोबारा से वहां जिंदगी पटरी पर लौटने लगी थी.

2012 में स्कूल से लौटते समय सिर में मार दी थी गोली

बता दें कि मलाला महज 10 साल की थी, जब उन्होंने गुल मकई के नाम से डायरी लिखनी शुरू की थी. इस डायरी में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने का प्रयास किया था. इससे नाराज तालिबानी चरमपंथियों ने 2012 में स्कूल से लौटते समय उनके सिर में गोली मार दी थी. ब्रिटेन में लंबे समय तक चले इलाज के बाद वह स्वस्थ्य हो सकीं.

2014 में मिला नोबेल अवार्ड

बच्चियों की तालीम की आवाज उठाने के लिए उन्हें 2014 में दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित नोबेल अवार्ड से सम्मानित किया गया था. उन्होंने सबसे कम उम्र में इस सम्मान को हासिल किया है. हालांकि, इसके बावजूद पाकिस्तान बहुत से दकियानूसी सोच वाले आदमी आज भी मलाला को इंटरनेट पर निशाना बनाते रहते हैं. उनका मानना है कि मलाला पश्चिमी देशों के इशारे पर काम कर रही है.

हर लड़की दुनिया बदल सकती

हाल ही में मलाला को ब्रिटेन की प्रतिष्ठित वोग मैगजीन ने अपने जुलाई अंक के कवर पेज पर जगह दी है. इसकी फोटो शेयर करते हुए उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, “मैं जानती हूं एक जवान लड़की जिसका कोई मिशन, कोई विचारधारा हो उसके दिल में कितनी ताक़त होती है. और मुझे उम्मीद है कि हर लड़की जो इस कवर को देखेगी उसे पता होगा कि वह भी दुनिया बदल सकती है.

Abhinav Rastogi

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