फिलिस्तीनी इस तरह करते हैं इस्राइली शासकों से मुकाबला

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आशीष आनंद-

अमेरिकी शह पर मजबूत इस्राइल अरब सेनाओं पर कई बार भारी पड़ा है, लेकिन फिलिस्तीनी जनता हार नहीं मानती। उनके पास मुकाबला करने का तरीका है इंतिफादा। अब तक दो इंतिफादा हो चुके हैं और तीसरे की चेतावनी चरमपंथी संगठन हमास ने अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से येरुशलम ले जाने के कदम के खिलाफ दी है। यह इंतिफादा है क्या, दाे बार कब और क्यों हुए, यह समझिए। (Intifada Fight With Zionist)

इंतिफादा का मतलब आमतौर पर ‘बगावत’ माना जाता है। अरबी भाषा में इस शब्द का मतलब “उथल पुथल” या किसी से “छुटकारा पाना” होता है। दशकों से इस्राएल और फिलिस्तीन के बीच लड़ाई में इंतिफादा शब्द का इस्तेमाल होता रहा है। इस तरह इस्राएली सेना के खिलाफ एक संगठित विद्रोह को व्यापक समर्थन मिलता है।

पहला इंतिफादा 1987 से 1993 तक चला। इसके बाद 2000 में शुरू हुआ इंतिफादा खासा खतरनाक था, जो चार साल तक चला, जिससे निपटने में इस्राइल के पसीने छूट गए। (Intifada Fight With Zionist)

पहला इंतिफादा

पहला इंतिफादा 8 दिसंबर 1989 को शुरू हुआ। इसकी वजह चार फिलिस्तीनी मजदूरों की मौत बनी, जिन्हें ले जा रही एक कार में एक इस्राएली सेना के ट्रक ने टक्कर मारी। फिलिस्तीनी मजदूरों की मौत के बाद इस्राएली सैनिकों के खिलाफ हिंसक दंगे शुरू हो गए। इस्राएली सैनिकों ने हिंसक विरोध दबाने के लिए गोलियां चलाईं, लेकिन इससे हिंसा और भड़क गई।

पहले इस मुहिम को आम लोगों ने शुरू किया, लेकिन जल्द ही फिलिस्तीनी लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) के नेता यासिर अराफत इससे जुड़ी गतिविधियों को निर्देशित करने लगे। इसी के साथ बहुत से फिलिस्तीनियों ने इस्राएल में जाकर काम करने, टैक्स देने और इस्राएली सामान खरीदने से इनकार कर दिया।

पहले इंतिफादा में ही हमास का जन्म हुआ और शेख अहमद यासीन ने मुस्लिम ब्रदरहुड और पीएलओ के धार्मिक सदस्यों की मदद से इस संगठन का गठन किया। (Intifada Fight With Zionist)

इस्राएल ने अधिकृत क्षेत्र में इंतिफादा रोकने को कर्फ्यू और बड़े पैमानों पर गिरफ्तारी, पिटाई और उत्पीड़न के तौर तरीके इस्तेमाल किए तो यह और गंभीर रूप लेता गया। बरसों तक चली हिंसा के बाद 1993 में इस्राएल सरकार और पीएलओ के बीच ओस्लो शांति समझौते के साथ पहला इंतिफादा खत्म हुआ। इसी समझौते के तहत फिलिस्तीनी प्राधिकरण का गठन हुआ और अधिकृत क्षेत्रों में उसे शासन का अधिकार मिला। लेकिन हमास ने इसे खारिज कर दिया।

पहले इंतिफादा में लोगों के मरने का साफ आंकड़ा नहीं है, लेकिन यह हथेली पर जान लेकर दुश्मन से भिड़ने जैसी स्थिति होती है। इस्राएल के एक एनजीओ बितसलेम का दावा है कि 1993 के अंत तक 1203 फलस्तीनी और 179 इस्राएली मारे गए। इंतिफादा से निपटने में इस्राएल की बर्बर कार्रवाई से उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर छवि खासी दागदार हो गई।

दूसरा इंतिफादा

28 सितंबर 2000 को इस्राएली राजनेता आरियल शेरोन ने इस्राएल के नियंत्रण वाले पूर्वी येरुशलम का दौरा किया तो दूसरा इंतिफादा भड़का। फिलिस्तीनी नेताओं ने इसे अधिकृत इलाके और येरुशलम के टेंपल माउंट पर मौजूद अल अक्सा मस्जिद पर इस्राएली दावेदारी के तौर पर देखा। इस दौरे के वक्त शेरोन इस्राएली संसद में विपक्ष के नेता थे, लेकिन इसके कुछ महीनों के भीतर ही वह प्रधानमंत्री चुन लिए गए।

हमास ने 6 अक्टूबर 2000 को “आक्रोश दिवस” मनाया और लोगों से इस्राएली सेना के ठिकानों पर हमला करने को कहा तो इस्राएल-फिलिस्तीन विवाद और तीखा हो गया। पहले इंतिफादा में फिलिस्तीनी इस्राएली सेना पर पत्थर और बोतल बम ही फेंकते थे, लेकिन दूसरे इंतिफादा में हमास और अन्य जिहादी समूह इस्राएली सेना के साथ बंदूकों और गोलियों के साथ मैदान में उतर गए और उन्होंने इस्राएली शहरों पर भी गोलाबारी की। दोनों ओर से जमकर खूनखराबा हुआ। (Intifada Fight With Zionist)

हमास ने आत्मघाती हमलावरों के जरिए इस्राएली आम लोगों को मारा। बसों, रेस्तराओं और होटलों को निशाना बनाया। बदले में इस्राएल ने गाजा पर हवाई हमले किए और अधिकृत इलाके में बड़े पैमाने पर सैन्य कार्रवाई की। इंतिफादा की वजह से ही इस्राइल ने ”आतंकवाद विरोधी अवरोध” नाम से एक बड़ी दीवार बनाई।

western wall

इस्राएली अखबार हारेत्स का अनुमान है कि पांच साल तक चली लड़ाई में 1330 इस्राएली और 3330 फलस्तीनी मारे गए। दूसरे इंतिफादा के खत्म होने की कोई औपचारिक तारीख नहीं है, लेकिन माना जाता है कि नवंबर 2004 में यासिर अराफात की मौत दूसरा इंतिफादा समाप्त होने निर्याणक पल था। हालांकि उनकी मौत के बाद महीनों तक इस्राइली सेना पर घातक हमले होते रहे। (Intifada Fight With Zionist)

फिलिस्तीनियों के लिए इंतिफादा में जान देना बहुत बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि इस्राइल ने उनकी जिंदगी पहले ही नर्क से बदतर बना दी है। लेकिन इंतिफादा का खौफ इस्राइली जनता में खासा पसर गया, खासतौर पर फिलिस्तीन पर सख्ती के समर्थक खाते-पीते उस वर्ग में, जो जियनवाद का कट्टर समर्थक है।


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