– विजय शंकर सिंह –
समझदार और विवेकवान सोच के लोगों के लिए यह बेहद चुनौतीपूर्ण क्षण है। सत्ता में आने वाले दल का बस एक ही एजेंडा है यूपी चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, किसी भी प्रकार से हो जाए। परंपरागत मीडिया तो उस एजेंडे पर लगा ही हुआ है, पर राहत की बात है कि सोशल मीडिया इस एजेंडे को पहचान चुका है। समझदारी और विवेक से काम लीजिए। असल मुद्दे पर सवाल उठाइए। धर्म के मुद्दों से दूरी बनाइए। विवादित और आग लगाऊ, ध्यान भटकाऊ मुद्दों पर मौन रहें और लक्ष्य स्पष्ट रखें। (Recognize This Danger)
धर्मांध घृणावाद आप के घर मे घुसने को आतुर है। नौकरी मांगती बेरोजगारों की फौज को धर्मांधता की अफीम चटाना जारी है। आप जितना ही समझदार और शांत बने रहेंगे यह उतने ही बौखलाएंगे। उनकी सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि लोग न बहक रहे हैं और न भड़क रहे हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम पर बस इतनी ही मर्यादा शेष बची है कि भगवा गमछे कंधे पर रखे, गले में लटकाए, कहीं एक अकेली लड़की को, खुले आम जयश्रीराम का नारा लगाते, दौड़ा लेना। फिर वे अपने आचरण पर शर्म नहीं, बल्कि, उसे हिंदुत्व कहते हैं और उस पर गर्व करते हैं। (Recognize This Danger)
अपने घर के युवा होते किशोरों को बचाइए कि वे पढ़ें लिखें, इस धर्मांध लफंगई और गुंडई से दूर रहें। यह एक ऐसी जमात तैयार की जा रही है जो आगे जाकर एक धर्मांध आतंकी जैसी ही बन जाएगी। इस वायरस से बचें।
संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि ‘धर्म संसद में कही गई भड़काऊ बातें हिंदुत्व नहीं हैं।’
कर्नाटक में जो कुकर्म राम के नाम पर भगवाधारी गुंडों ने किया है, क्या वह हिंदुत्व है मोहन भागवत जी?
उम्मीद है, आप कर्नाटक की उस घटना का भी समर्थन नहीं करेंगे। फिर, जो यह गुंडे कर रहे हैं, उनके खिलाफ, सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई को सरकार से कहिए।
यह मत कह दीजिए कि आपका और आरएसएस का सरकार और राजनीति से कुछ लेना देना नहीं है। यह बात अब किसी के गले नहीं उतरेगी। संघ हर चुनाव में भाजपा को जिताने के लिए पूरी ताकत झोंक देता है, यह सब जानते हैं। यदि आप इस गुंडई और भड़काऊ आचरण के खिलाफ हैं तो आप को खिलाफ खड़े दिखना भी होगा।
अब भी सत्तारूढ़ दल और संघ के मित्र बार बार कर्नाटक की घटना पर बहस को हिजाब पहनने या न पहनने पर केंद्रित कर रहे हैं। शातिराना ढंग से जय श्रीराम के नारे लगाती भगवा लपेटे अराजक भीड़ के आचरण को दरकिनार कर नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। हिजाब गलत है या सही, यह तय करने के लिए वह स्कूल और कॉलेज अधिकृत है, न कि उन्मादी भीड़। (Recognize This Danger)
किसे क्या पहनना है, कैसे पहनना है, कब पहनना है, यह वह खुद तय करेगा या वह संस्था, जहां कोई ड्रेसकोड निर्धारित है। जिसने ड्रेसकोड निर्धारित किया है, उसने उसके उल्लंघन पर सज़ा का भी विधान रखा होगा।
भारत की चिंतन और दर्शन परंपरा है। बहुलतावादी संस्कृति है, हज़ारों साल की साझी विरासत समेटे एक शानदार सभ्यता है। खतरे में रोजगार है, शिक्षा स्वास्थ्य और प्रगति के मुद्दे हैं। खतरे में युवाओं का कल है, देश का भविष्य है।
गौर से देखिए, आप के घर के वे युवा हैं, जिनका मस्तिष्क, धर्मांध कट्टरपंथियों के द्वारा भेजे जा रहे व्हाट्सएप संदेशों से योजनाबद्ध तरह से प्रदूषित और पंगु किया जा रहा है। इसके पहले कि यह आतंक आप के घर मे पैठे, आप इनका प्रवेश वर्जित कर दें। (Recognize This Danger)
(लेखक स्वतंत्र ब्लॉगर और रिटायर्ड आईपीएस हैं। यह उनके निजी विचार हैं)