इजरायल से हारा कोरोना, मास्क हटाने का आदेश

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येरूसलम।
इजरायल से आई तस्वीरों ने उम्मीद दिखाई है कि एक बार फिर लोग घर से चेहरे पर मास्क नहीं मुस्कुराहट लेकर निकलेंगे। दरअसल, 81 फीसदी जनता के टीकाकरण के बाद इजरायल ने मास्क पहनकर निकलने की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है। इसके बाद अधिकतर लोगों ने चेहरे से मास्क उतार फेंका है। मास्क हटाने का आदेश देने वाला इजरायल संभवतः दुनिया का पहला देश है।
इजरायल में 16 साल से अधिक उम्र के 81 फीसदी नागरिकों और निवासियों को कोरोना का दोनों टीका लग चुका है। इसके बाद यहां यहां कोरोना संक्रमण और अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। हालांकि, विदेशियों की एंट्री और बिना टीका लगवाए इजरायली लोगों का प्रवेश सीमित है और उन्हें आते ही क्वारंटाइन किया जा रहा है। ऐसा कोरोना के बदलते रूपों से पैदा होने वाली चुनौती को लेकर किया जा रहा है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि इसने देश में नए भारतीय वेरिएंट के सात केसों का पता लगाया है, जिनकी जांच की जा रही है। प्रधानमंत्री बेन्जामिन नेतन्याहू ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ‘‘कोरोना वायरस से जीतने के मामले में हम इस समय दुनिया की अगुआई कर रहे हैं।‘‘

भारत ने मदद मांगी तो अमेरिका ने हाथ खड़े किए

वॉशिंगटन । भारत ने कोरोना वैक्सीन के लिए जरूरी कच्चे माल की आपूर्ति पर लगी रोक हटाने के लिये अमेरिका से आग्रह किया तो जवाब मिला कि इस वक़्त भारत को देने के हमारे पास कुछ नहीं है।व्हा

इट हाउस के प्रेस सेक्रेटरी जैन पास्की ने सीधा जवाब न देते हुए बस इतना कहा कि हम भारत की जरूरतों को समझते हैं। कोविड-19 रिस्पांस टीम के वरिष्ठ सलाहकार और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शस डिसीज के डायरेक्टर डॉ एंथनी फौसी ने कहा कि फिलहाल हमारे पास भारत के लिए कुछ नहीं है।

डॉ एंथनी फौसी से भारत में कोविशील्ड वैक्सीन तैयार करने वाले सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला की अपील के बारे में पूछा गया था। पूनावाला ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से कच्चे माल के निर्यात के नियमों में ढील देने की गुजारिश की थी, ताकि भारत की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू लगातार इस मुद्दे को अमेरिकी अधिकारियों के समक्ष उठा रहे हैं। उन्होंने अमेरिकी प्रशासन को भारत की स्थिति से अवगत कराते हुए कच्चे माल की जल्द से जल्द आपूर्ति करने की मांग की है। सरकार से जुड़े सूत्रों के अनुसार, बाइडेन प्रशासन ने नई दिल्ली को भरोसा दिलाया है कि जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास किया जाएगा।
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना संकट के मद्देनजर डिफेंस प्रोडक्शन एक्ट लागू किया था, इसके चलते अमेरिकी कंपनियों को पहले अपने देश की जरूरतों को पूरा करने पर फोकस करना पड़ता है। इस एक्ट की वजह से कंपनियों ने दवाओं से लेकर पीपीई किट तक के निर्माण में ‘अमेरिका पहले’ की नीति को अपनाया है। राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी ट्रंप के फैसले को लागू रखा हुआ है। अमेरिका फाइजर और मॉडर्ना वैक्सीन के उत्पादन में तेजी लाया है। इसकी वजह है 4 जुलाई तक पूरी आबादी को टीका लगाने का लक्ष्य है। नतीजतन भारत सहित कई अन्य देशों में वैक्सीन तैयार करने के लिए जरूरी कच्चे सामान की किल्लत देखी जा रही है।

चीनी वैक्सीन ‘साइनोवैक’ फिर से फिसड्डी

बीजिंग | कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में चीनी वैक्सीन साइनोवैक एक बार फिर से टेस्ट में फिसड्डी साबित हुई है। ब्राजील में स्वास्थ्यकर्मियों पर हुए परीक्षण में यह सार्स-कोव-2 वायरस के खिलाफ महज 50.39 फीसदी प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में कामयाब मिली है।
रियो डि जिनेरियो के हॉस्पिटल दास क्लीनिकास में 18 से 21 जनवरी के बीच 22402, जबकि 14 से 16 फरवरी के दरमियां 21652 स्वास्थ्यकर्मियों को ‘साइनोवैक’ की खुराक लगाई गई थी।
शोधकर्ताओं के मुताबिक ‘साइनोवैक’ की दोनों खुराक लगने के दूसरे और तीसरे हफ्ते में वायरस के खिलाफ क्रमश: 50.7 फीसदी व 51.8 फीसदी प्रतिरोधक क्षमता पैदा होने की बात सामने आई है। बड़ी संख्या में ‘पी-1’ संक्रमण के मामले मिलना इस बात का संकेत है कि वैक्सीन नए स्वरूप पर ज्यादा प्रभावी नहीं है। इससे यह भी साबित होता है कि नया स्वरूप क्षेत्र में तेजी से पांव पसार रहा है।

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