क्या देशभर में नए चिपको आंदोलनों की जरूरत है?

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रिद्धिमा पांडेय की उम्र 12 साल है। वे हरिद्वार में रहती हैं। वो अपनी भावी जिंदगी की सांसों के लिए लड़ रही हैं। वे हम सब की भावी जिंदगी की सांसों के लिए लड़ रही हैं। रिद्धिमा थानों के जंगलों में काटे जाने वाले दस हजार से ज्यादा पेड़ों की जिंदगी के लिए लड़ रही हैं। (Chipko Movements Across Country)
रिद्धिमा और उसके जैसे हजारों बच्चे इन पेड़ों की जिंदगी बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। उनकी इस लड़ाई में बहुत सारे युवा, बहुत सारे बुजुर्ग और नौजवान सभी शामिल हैं।
उत्तराखंड सरकार जौलीग्रांट एयरपोर्ट का आकार बढ़ाना चाहती है। इसके लिए उसे 243 एकड़ से ज्यादा का जंगल चाहिए। इस पूरी योजना के लिए दस हजार से ज्यादा पेड़ों की बलि ली जाने वाली है। इसमें सैकड़ों साल पुराने पेड़ हैं। यहां से हाथी गुजरते हैं। हिरन कुलांचे भरते हैं। तेंदुओं का यह आवास है।
https://youtu.be/YsdFDsOyul4
न जाने कितने पक्षियों ने इन पेड़ों पर घोसले बनाए हुए हैं। इन सभी की बलि दी जाने वाली है। पिछले शुक्रवार को थानों के जंगलों को बचाने के लिए एक बड़ी मुहिम आयोजित की गई। बहुत सारे बच्चों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधे हैं। उनकी रक्षा का वचन दिया है। अब आगे देखिए क्या होता है।
वैसे तो हम हाल के तमाम सालों में पेड़ों के जीवन की लड़ाई को हारा जाता हुआ ही देख रहे हैं। ऑरे के जंगलों को रातों-रात कटवा दिया गया। बुलेट ट्रेन के लिए पेड़ों और पर्यावास की बलि ली जाने वाली है। आखिर यह सबकुछ क्या इतनी जरूरी है? (Chipko Movements Across Country)
कोई एक सड़क बनती है। सरकार हमें बताती है कि पहले अलानी जगह से फलानी जगह जाने में आठ घंटे लगते थे, अब सिर्फ छह घंटे लगेंगे। यानी दो घंटे बचेंगे। लेकिन, इस दो घंटे को बचाने के लिए हजारों पेड़ों की बलि ले ली जाती है। उन्हें काट दिया जाता है। जंगल साफ कर दिए जाते हैं। आखिर ये दो घंटे बचाकर हम क्या करेंगे अगर प्रदूषण भरी, खराब हवा में सांस लेने से हमारी जिंदगी के दिन ही कम हो जाने वाले हैं।
आखिर किस बात की जल्दी है? आठ घंटे की जगह पर अगर छह घंटे में पहुंच भी गए तो वहां क्या करना है। गप्पे ही तो मारनी है। क्या यह इतना ही जरूरी है कि आप अपने भविष्य की जिंदगी को दांव पर लगाकर अभी के लिए दो घंटे हासिल करना चाहते हैं। क्या इस पर ज्यादा संतुलित दृष्टिकोण नहीं रखा जाना चाहिए। (Chipko Movements Across Country)
इस बात पर हमें गौर से सोचना चाहिए। आखिर किसे इतनी जल्दी है। फिर जल्दी भी आखिर किस कीमत पर। शायद हम एक बात भूलते जा रहे हैं। इंसान जंगल नहीं लगा सकता है। सिर्फ कुदरत ही जंगल पैदा कर सकती है।
हम ज्यादा से ज्यादा कुछ पेड़ों को रोप सकते हैं। लेकिन, उसे जंगल बनाने का काम सिर्फ कुदरत करती है। इसलिए जब एक जंगल काटा जाता है तो कुदरत के दिए एक अनमोल तोहफे से हम खुद को महरूम कर लेते हैं।

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