हीरा खनन के लिए मध्यप्रदेश के बक्सवाहा जंगल के 2.15 लाख पेड़ों की कटाई फिलहाल टल गई है। एनजीटी की ताजा सुनवाई में 27 पेज का आदेश दिया गया है, जिसमें चार सप्ताह में मध्यप्रदेश व केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा गया है। एनजीटी भोपाल में बुधवार को बकस्वाहा जंगल को लेकर लगी दोनों पीटीशन की संयुक्त सुनवाई हुई। संयुक्त सुनवाई में तीनों पिटीशनर- उज्जवल डॉ.पुष्पराग और डॉ.पीजी नागपाल की याचिका पर एसेल आदित्य बिरला हीरा कंपनी को हलफनामा देने के निर्देश पिछली पेशी पर दिए गए थे। बुधवार को दोनों पक्षों की बहस के बाद एनजीटी ने आदेश सुरक्षित कर लिया था, जिसे एक जुलाई को सुनाया गया। जिसमें जंगल की कटाई न करने के आरंभिक आदेश दिए गए हैं। अगली सुनवाई 27 अगस्त को होगी।
बकस्वाहा बचाओ आंदोलन के प्रमुख लोगों में एक याची व पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. पुष्पराग एडवोकेट ने बताया कि एसेल आदित्य बिरला हीरा कंपनी ने बुधवार को एनजीटी भोपाल में लगभग 30 पेजों का शपथपत्र प्रस्तुत किया। इस शपथपत्र में कंपनी ने स्वीकार किया कि कंपनी मध्यप्रदेश शासन को इस प्रोजेक्ट के बदले लगभग 27.52 करोड़ रुपए दे चुकी है। माइनिंग विभाग कंपनी को एग्रीमेंट से 3 साल के अंदर सारे क्लीयरेंस करा कर देगी ( यानी 2022 तक) इसे 2 साल के लिए बढ़ाया भी जा सकता है।
”एनजीटी के 1 जुलाई के अंतरिम आदेश में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मध्यप्रदेश के वन विभाग अधिकारियों को वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा-2 का पालन करने को निर्दिष्ट किया है। वन संरक्षण अधिनियम 1980 की धारा-2 यह प्रावधान करती है कि जंगल की जमीन किसी भी व्यक्ति/कंपनी को लीज पर नहीं दी जा सकती। यह धारा भूमि के हक अंतरण से इंकार करती है। भूमि के गैर वन उपयोग को रोकती है। पेड़ों को इसी शर्त पर काटने की अनुमति देती है, जब पेड़ों को काटकर उनके स्थान पर चाय, काफी, मसाले, रबड़, पाम, तेल, उद्यान या औषधि की खेती करनी हो। वन अधिनियम 1980 की धारा-2 हीरों के लिए पेड़ काटने की अनुमति नहीं देती।”
शपथपत्र मे कंपनी ने यह भी दावा किया कि हीरा निकाले जाने बाली साइट के 10 किलोमीटर की परिधि में कोई रिजर्व फॉरेस्ट या वाइल्ड लाइफ सेंचुरी नहीं है। फॉरेस्ट की रिपोर्ट में कोई भी विशिष्ट जानवरों की उपस्थिति नहीं बताई गई है। अभी फॉरेस्ट का क्लीयरेंस नहीं हुआ है इसलिए प्रकरण प्री मिच्योर है। पर्यावरण जंगल सहित सभी अनुमतियों के बिना कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा।
दाखिल शपथपत्र में कहा गया कि कंपनी ने किसी पर्यावरण कानून का उल्लंघन नहीं किया है। ग्राउंड वॉटर का उपयोग सभी आवश्यक अनुमति लेकर ही किया जाएगा। लेकिन बिना सीजनल नाले को डाइवर्ट किये माइनिंग संभव नहीं होगी। निकाले गए ग्राउंड वॉटर को हम बारिश के पानी को वॉटर हार्वेस्टिंग करके रिप्लेस करेंगे।
कंपनी ने यह भी कहा कि बकस्वाहा के अगले 10-12 वर्षों में 2 लाख 15 हजार पेड़ काटे जाएंगे, जिनकी जगह 1.8 गुना ज्यादा 3 लाख 80 हजार पेड़ लगाने की योजना है, जिस पर कंपनी 15.8 करोड़ रुपए का खर्च करेगी, यानी कि प्रति पेड़ लगभग 415 रुपए हीरा खनन से क्षेत्र का विकास होगा। कंपनी ने बताया की इस कोर्ट में 2 व एक सुप्रीम कोर्ट में और एक हाईकोर्ट जबलपुर में इसी तरह के केस पेंडिंग हैं। हमें अनावश्यक परेशान करने को केस लादे जा रहे हैं।
बहस के दौरान बकस्वाहा जंगल पक्ष ने भी तर्क दिए। दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायाधीश शेओ कुमार सिंह व विशेषज्ञ मेंबर जस्टिस अरुण कुमार वर्मा ने 27 पेज के आदेश में शासन को नोटिस को जारी किए और पेड़ों की कटाई न होने देने के आरंभिक आदेश दिए गए।